भारतीय कृषि पर निबंध (Indian Agriculture Essay In Hindi)

आज हम भारतीय कृषि पर निबंध (Essay On Indian Agriculture In Hindi) लिखेंगे। भारतीय कृषि पर लिखा यह निबंध बच्चो (kids) और class 1, 2, 3, 4, 5, 6, 7, 8, 9, 10, 11, 12 और कॉलेज के विद्यार्थियों के लिए लिखा गया है।

भारतीय कृषि पर लिखा हुआ यह निबंध (Essay On Indian Agriculture In Hindi) आप अपने स्कूल या फिर कॉलेज प्रोजेक्ट के लिए इस्तेमाल कर सकते है। आपको हमारे इस वेबसाइट पर और भी कही विषयो पर हिंदी में निबंध मिलेंगे, जिन्हे आप पढ़ सकते है।


भारतीय कृषि पर निबंध (Indian Agriculture Essay In Hindi)


प्रस्तावना

खेती और वानिकी के माध्यम से खाध पदार्थो का उत्पादन करना कृषि कहलाता है। कृषि प्रतेक मानव जीवन की आत्मा होती है। सम्पूर्ण मानव जाती का अस्तित्त्व ही कृषि पर निर्भर है और भारतीय कृषि देश की अर्थव्यवस्था की महत्वपूर्ण आधारशिला है।

हमारा देश कृषि प्रधान देश है। हमारे देश में कृषि करना केवल कृषि करना नहीं बल्कि एक कला है। कृषि पर ही पूरा देश आश्रित है। कृषि अगर नहीं, तो ना कोई अनाज होगा और ना ही हम मानव के लिए भोजन मिलेगा।

बिना कृषि के भोजन कहा से प्राप्त होगा। हमारे देश मे जमीन का कुल क्षेत्रफल का 11 प्रतिशत भाग ही कृषि करने योग्य है। जबकि भारत के 51 प्रतिशत क्षेत्रफल में कृषि की जाती है।

कृषि का अर्थ

कृषि का अंग्रेजी शब्द Agriculture है, जो की लेटिन भाषा के दो शब्द AGRIC+CULTURA से हुआ है। जिसमे AGRIC का शाब्दिक अर्थ मृदा या भूमि है, जबकि CULTURA का शाब्दिक अर्थ है कर्षण करना। अर्थात मृदा का कर्षण करना ही कृषि (AGRICULTURE) अथवा खेती कहलाता है।

कर्षण एक बहुत ही व्यापक शब्द है। जिसमे फसल उत्पादन, पशुपालन, मछली पालन व् वानिकी आदि सभी पहलुओं को सम्मिलित किया जा सकता है। कृषि एक प्रकार से एक कला, एक विज्ञान, एक वाणिज्य है। कृषि इन सब के जुड़ने से इनके योग से ही बनती है।

कृषि की परिभाषा

भूमि के उपयोग से फसल उत्पादन करना कृषि कहलाता है। कृषि वह कला है, जिसमे विज्ञान और उद्योग हे। जो मानव उपयोग के लिए पोधो व् पशुओ के विकास का प्रबंध करती है।

पी. कुमार एस. के.शर्मा तथा जसबीर सिंह के अनुसार

कृषि फसलोत्पादन से अधिक व्यापक है। यह मानव द्वारा ग्रामीण पर्यावरण का रूपांतरण है। जिससे कुछ उपयोगी फसलों एवं पशुओं के लिए सम्भव अनुकूल दशाएं सुनिश्चित की जा सकती है। इनकी उपयोगिता सतर्क चयन से बढ़ाई जाती है।

इनमें उन सभी पद्धतियों को सम्मिलित किया जाता है, जिनका प्रयोग कृषक कृषि के विभिन्न तत्वों को विवेकपूर्ण ढंग से संगठित करने और प्रशस्त उपयोग में करता है। अतः विस्तृत अर्थ में कृषि का अभिप्राय भौतिक वातावरण के पौधे, पशु पालन, वनारोपण, प्रबन्ध तथा मत्स्य पालन आदि करने से है।

इस प्रकार कृषि को ऊर्जा के रूपांतरण तथा पुनरोद्भव (regeneration) द्वारा भूतल पर जीविकोपार्जन (earning) हेतु फसलोत्पादन एवं पशुपालन क्रियाओं के रूप में देखा जा सकता है।

जवाहरलाल नेहरू जी के कृषि पर विचार

हमारे देश भारत के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू द्वारा उद्धत किया गया कि सब कुछ इंतजार कर सकता है, लेकिन कृषि इंतजार नहीं कर सकती। यह आश्चर्य की बात नहीँ है कि भारतीय सभ्यता में कृषक और कृषि गतिविधियों को पवित्र दर्जा दिया गया है। हिन्दू धर्म मे देवी अन्नपूर्णा आहार और पोषण की देवी हैं।

भारतीय कृषि का हमारी अर्थव्यवस्था में योगदान

कृषि हमारा प्राचीन और प्राथमिक व्यवसाय है। इसमें फसलों की खेती तथा पशुपालन दोनों ही सम्मिलित है। भारतीय अर्थव्यवस्था में कृषि का महत्वपूर्ण स्थान व् योगदान निम्नलिखित अर्थो से देखा जा सकता है।

हमारे देश की कृषि जंहा अपनी 2/3 जनसंख्या का भरण पोषण करती है, वही भारतीय कृषि से संसार की लगभग 17 प्रतिशत जनसंख्या का पोषण हो रहा है। भारतीय कृषि में लगभग 2/3 श्रम शक्ति लगी हुई है।

इसके द्वारा अप्रत्यक्ष रूप में भी अनेक लोगो को रोजगार मिला है। लोग या तो दस्तकारी में लगे है, या गाँवों में कृषि उत्पादों पर आधारित छोटे – छोटे उद्योग धंधो में लगे है। देश में वस्त्रो की जरूरतों को पूरा करने के लिए कच्चा माल कृषि से ही मिलता है।

कपास, जूट, रेशम, उन एवं लकड़ी की लुगदी से ही वस्त्रो का निर्माण होता है। चमड़ा उद्योग भी कृषि क्षेत्र की ही देंन है। कृषि उत्पादों पर निर्भर प्रमुख उद्योग वस्त्र उद्योग, जुट उद्योग, खाध तेल उद्योग, चीनी एवं तम्बाकू उद्योग आदि है। कृषि उत्पादों पर आधारित आय में कृषि का योगदान लगभग 34 प्रतिशत है।

भारतीय कृषि देश की बढ़ती जनसंख्या का भरण-पोषण कर रही है। कृषि पदार्थो से ही भोजन में कार्बोहाइट्रेड, संतुलित आहार हेतु प्रोटीन, वसा, विटामिन आदि प्राप्त होते है। संक्षेप में हम यहीं कह सकते है की भारतीय कृषि देश की अर्थव्यवस्था की महत्वपूर्ण आधारशिला है।

इसकी सफलता या विफलता का प्रभाव देश के खाध समस्या, सरकारी आय, आंतरिक व् विदेशी व्यापार तथा राष्टीय आय पर प्रत्यक्ष रूप से पड़ता है। इसीलिए कहा जाता है की मानव जीवन में जो महत्व आत्मा का है, वही भारत की अर्थव्यवस्था में कृषि का है।

कृषि की प्रमुख उपज

  • खरीफ की फसल
  • रबी की फसल
  • जायज फसले
  • खाधान्न फसले
  • नकद या व्यापारिक फसले

खरीफ की फसले

ये वो फसले है जो वर्षा ऋतू के शुरू (जून -जुलाई) में बोई जाती है और दशहरे के बाद शरद ऋतू के अंत (अक्टूबर – नवंबर) तक तैयार हो जाती है। जैसे चावल, ज्वार, मक्का, सोयाबीन, गन्ना, कपास, पटसन, तीली व् मूंगफली आदि।

रबी की फसले

ये वो फसले है जो शरद ऋतू के आगमन पर दशहरे के बाद (अक्टूबर – नवम्बर) में बोई जाती है और ग्रीष्म ऋतू के शुरू में (मार्च – अप्रेल) होली पर तैयार हो जाती है। जैसे गेंहू, चना, जौ, सरसो व् तम्बाकू आदि।

जायज फसले

यह फसले विशेषतः ग्रीष्म ऋतू में पैदा की जाने वाली सब्जियों और हरे चारे की खेती आदि है।

खाधान्न फसले

ये वो फसले है जो भोजन के लिए मुख्य पदार्थ का कार्य करती है। जैसे चावल, गेंहू, ज्वार, मक्का, बाजरा चना, अरहर व् अन्य दाल।

नकद या व्यापारिक फसले

ये वो फसले है जो प्रत्यक्ष रूप से भोजन के लिए पैदा नहीं की जाती। किन्तु उन्हें बेचकर नकद राशि प्राप्त की जाती है। जैसे कपास, जुट, चाय, कॉफी, तिलहन, सोयाबीन, गन्ना, तम्बाकू व् रबर आदि।

भारत में कृषि विकास हेतु किये गए सरकारी प्रयासों के अंतर्गत सन 1966-67 में हरित क्रांति द्वारा तकनीकी परिवर्तन कर कृषि क्षेत्र में नए युग का शुभारम्भ हुआ था। हरित क्रांति का तातपर्य कृषि उत्पादन में उस तीव्र वृद्धि से है, जो अधिक उपज देने वाले बीजो, रासायनिक उर्वरको व् नई तकनीकों के प्रयोग के परिणामस्वरूप हुई है।

कृषि के प्रकार

हमारे देश भारत मे कृषि के प्रकार कुछ इस प्रकार है।

  • स्थानांतरित खेती
  • गहन कृषि
  • निर्वाह खेती
  • बागवानी कृषि
  • व्यापक कृषि
  • वाणिज्यिक कृषि
  • एक्वापोनिक्स
  • गीले भूमि की खेती
  • सुखी भूमि की खेती

कृषि और भारतीय किसान

भाग्यवादी होना भारतीय किसान के जीवन की सबसे बड़ी विडंबंना है। की वह कृषि उत्पादन और उसकी बर्वादी को अपना भाग्य और दुर्भाग्य की रेखा मानकर निराश हो जाता है। वह भाग्य के सहारे आलसी होकर बेठ जाता है। वह कभी भी नहीं सोचता है की कृषि कर्मक्षेत्र है। जंहा कर्म ही साथ देता है भाग्य नहीं।

वह तो केवल यही मानकर चलता है की कृषि – कर्म तो उसने कर दिया है, अब उत्पादन होना न होना तो विधाता के वश की बात है, उसके वश की बात नहीं है। इसलिए सूखा पड़ने पर पाला मरने पर या ओले पड़ने पर वह चुपचाप ईश्वराधीन का पाठ पढ़ता है।

इसके बाद तत्काल उसे क्या करना चाहिए या इससे पहले किस तरह से बचाव या निगरानी करनी चाहिए थी इसके विषय में प्रायः भाग्यवादी बनकर वह निशिचन्त बना रहता है। कृषि में किसान का सबसे अधिक महत्व होता है। क्योंकि कृषि पर निर्भर किसान ही हैं, जो कृषि को एक महत्वपूर्ण स्थान देता है।

रूढ़िवादिता ओर परम्परावादी होना भारतीय किसान के स्वभाव की मूल विशेषता है। यह शताब्दी से चली आ रही कृषि का उपकरण या यंत्र है। इसको अपनाते रहना उसकी वह रूढ़िवादिता नहीँ है तो ओर क्या है।

इसी अर्थ में भारतीय किसान परम्परावादी दृष्टिकोण का पोषक ओर पालक है, जिसे हम देखते ही समझ लेते हैं। आधुनिक कृषि के विभिन्न साधनों ओर आवश्यकताओ को विज्ञान की इस धमा चौकड़ी प्रधान युग मे भी न समझना या अपनाना भारतीय किसान की परम्परावादी दृष्टिकोण का ही प्रमाण हैं।

इस प्रकार भारतीय किसान एक सीमित ओर परम्परावादी सिधान्तो को अपनाने वाला प्राणी है। अंधविश्वासी होना भी भारतीय किसान के चरित्र की एक बहुत बड़ी विशेषता है।अंधविश्वासी होने के कारण भारतीय किसान विभिन्न प्रकार की सामाजिक विषमताओं में उलझा रहता है।

हरित क्रांति से कृषि का आत्मनिर्भर बनना

भारत एक कृषि प्रधान देश है, लेकिन यही देश जब विदेशी आक्रमण के कारण, जनसंख्या के तेजी से बढ़ने के कारण, समय के परिवर्तन के साथ सिंचाई आदि की उचित व्यवस्था न हो सकने के कारण, नवीनतम उपयोगी औजारों व अन्य साधनों के प्रयोग न हो सकने के कारण तथा विदेशी शासकों की सोची- समझी राजनीति व कुचलो का शिकार होने के कारण कई बार अकाल का शिकार हुआ है।

जब लोंगो के भूखे मरने की नोबत आने लगी, तब देश को आत्मनिर्भर बनाने की बात सोची जाने लगी और एक नए युग का सूत्रपात हुआ। जो की हरित क्रांति का युग था। तभी हरित क्रांति ने शीघ्रता से चारों ओर फैलकर देश को हरा भरा बना दिया।

अर्थात खाद्य अनाजों के बारे में देश को पूर्णया आत्मनिर्भर कर दिया है। हरित क्रांति से हमारे देश की कृषि ने एक अलग ही मुकाम पा लिया है, जो कि कृषि के लिए एक अलग ही मुकाम बनाने में कामयाब हुआ है।

उपसंहार

कृषि हमारे देश की वो जड़ है, जिसके खत्म होते ही अनाज और बहुत सारे व्यक्तियो के रोज़गार का भी अतं हो जाएगा। क्योंकि कृषि करना ओर अनाज उगाना ना केवल किसान के लिए उसकी रोज़ी रोटी है, बल्कि उसके परिवार का भरण पोषण का एक बहुत जरुरी जरिया है। जिसके नहीँ होने से ना केवल उसके परिवार बल्कि पूरे देश पर इसका प्रभाव पड़ता है।


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