कृष्ण जन्माष्टमी पर निबंध (Krishna Janmashtami Essay In Hindi)

आज के इस लेख में हम कृष्ण जन्माष्टमी पर निबंध (Essay On Krishna Janmashtami In Hindi) लिखेंगे। कृष्ण जन्माष्टमी पर लिखा यह निबंध बच्चो (kids) और class 1, 2, 3, 4, 5, 6, 7, 8, 9, 10, 11, 12 और कॉलेज के विद्यार्थियों के लिए लिखा गया है।

कृष्ण जन्माष्टमी पर लिखा हुआ यह निबंध (Essay On Krishna Janmashtami In Hindi) आप अपने स्कूल या फिर कॉलेज प्रोजेक्ट के लिए इस्तेमाल कर सकते है। आपको हमारे इस वेबसाइट पर और भी कही विषयो पर हिंदी में निबंध मिलेंगे, जिन्हे आप पढ़ सकते है।


कृष्ण जन्माष्टमी पर निबंध (Krishna Janmashtami Essay In Hindi)


प्रस्तावना

जन्माष्टमी का त्योहार हमारे देश के एक छोर से दूसरे छोर तक बड़े उल्लास और आनंद के साथ मनाया जाता है। यह त्योहार होली, दिवाली, दशहरा आदि की तरह विशुद्ध रूप से धार्मिक त्योहार है।

यह पवित्रता, स्वच्छता और विषमता का प्रतीक है। इस त्यौहार से श्रद्धा और विश्वास के साथ साथ विभागों का उदय होता है। यह त्यौहार मुख्य रूप से आत्मविश्वास व आत्म चेतना का प्रेरक और संवाहक है।

जन्माष्टमी का त्योहार भाद्रपद के कृष्ण पक्ष के अष्टमी की रात्रि को मनाया जाता है। त्यौहार का आयोजन इसके प्रमुख तिथि से कई रोज पूर्व आरंभ हो जाता है। कृष्ण जी के बाल स्वरूप की आराधना उपासना के अंतर्गत उनके स्वरूप का चिंतन और मनन किया जाता है।

बालक श्रीकृष्ण की विभिन्न बाल लीलाओं को आधार बनाकर नाटक, परिसंवाद आयोजित किये जाते है। इनसे अधिक रोचक और आकर्षक प्रदर्शन और झांकियां हुआ करती हैं।

भगवान श्री कृष्ण जी के नाम

ये बात तो आप सभी जानते है की कृष्ण जी बाल्यावस्था से ही बहुत नटखट थे। उनकी लीलाएं इतनी प्यारी थी कि चाहे गोपियों को सताना, माखन चुराना हो, हर लीलाओं में उन्हें कई नाम प्रदान किए गए थे।

जैसे मुरलीधर, गोपाल, नटखट नन्दलाल, कान्हा, गोविंद, ऐसे भगवान श्री कृष्ण जी के 108 नाम है। महाभारत के युद्ध में भी भगवान श्री कृष्ण जी ने अहम भूमिका निभाई थी। इसका ज्ञात तो आपको होगा ही।

भगवान श्री कृष्ण जी ने “श्री भागवत गीता” का उपदेश प्रदान किया है। हमें उन उपदेशों को अपने जीवन में उतारना चाहिए ओर अपने जीवन में सुख और खुशियां प्राप्त करनी चाहिए।

सौभाग्य, यश, कीर्ति, पराक्रम़ ओर अपार वेभव के लिए भगवान श्री कृष्ण के नामों का हमें जाप करना चाहिए। कहा जाता है की उनके 108 नामों का जाप करने से व्यक्ति को सभी दुख ओर कष्टो से मुक्ति प्राप्त होती है ओर व्यक्ति के जीवन का उद्धार हो जाता है।

जन्माष्टमी मनाने के विषय में पौराणिक कथा

जन्माष्टमी मनाने के विषय में एक पौराणिक कथा है। श्रीमद् भागवत पुराण के अनुसार द्वापर युग में कंस नामक मथुरा का राजा बड़ा ही अत्याचारी और नृशंस था। वह जब अपनी बहन देवकी को विवाह के बाद उसके ससुराल पहुंचाने के लिए रथ पर ले जा रहा था।

तब उस समय यह आकाशवाणी हुई कि जिस बहन को तुम इतने लाड प्यार के साथ विदा कर रहे हो, उसी की आठवीं संतान तुम्हारे मृत्यु का कारण होगी। कंस इस आकाशवाणी को सुनकर बड़ा घबरा गया। उसने हडबड़ा कर अपनी बहन देवकी को जान से मारने के लिए तलवार खींच ली।

तब वासुदेव जी ने ध्रय देते हुए समझाया की जब इसके ही पुत्र से आपकी मृत्यु होगी, तो आप इसे बन्दी बना लीजिए और इसका जो भी पुत्र होगा, उसे यह आपको एक एक करके दे दिया करेंगी। उसके पश्चात आप जो चाहे वह कीजिएगा।

कंस ने वासुदेव की बातें मान ली और देवकी तथा वसुदेव को जेल में डाल दिया। इन पर कड़ी निगरानी रखने का सख्त आदेश भी दे दिया। कहा जाता है कि कंस ने देवकी के एक एक करके सात पुत्रों को पटक-पटक कर मार डाला।

आठवें पुत्र कृष्ण की जगह पर वासुदेव ने अपने मित्र नन्द की पुत्री को आकाशवाणी के अनुसार कंस को दे दिया। कंस ने पुत्र या पुत्री का विचार न करके क्रोध ओर भय के फलस्वरुप उस कन्या को जैसे ही पटकने के लिए प्रयास किया, वैसे ही वह कन्या उसके हाथ से छूटकर आकाशवाणी कर गई।

उस कन्या ने कहा की हे कंस जिसके भय से तुमने मुझे मारना चाहा है वह जन्म ले चुका है और गोकुल पहुंच चुका है। कंस इस आकाशवाणी को सुनकर सहम गया। कर्तव्य विमुख हो  कर वह क्रोध से विक्षिप्त हो उठा। उसने आदेश दे दिया कि आज के दिन जो भी बच्चे पैदा हुए हैं उन्हें मार डालो।

और ऐसा ही किया गया, उसने गोकुल में भी अपने प्रतिनिधियों और पूतना जैसी राक्षसी को भेजकर कृष्ण को मार डालने की कोई कसर नहीं छोड़ी। लेकिन कृष्ण तो परमब्रह्म परमेश्वर के अवतार थे, इसलिए उनका कुछ भी बाल बांका ना हो सका। इसके विपरित ना केवल कंस के प्रतिनिधि मारे गए, अपितु कंस की ही जीवन लीला समाप्त हो गयी।

जन्माष्टमी पर श्री कृष्ण की झांकियां

भगवान श्री कृष्ण की इस परम लीला की झांकी और प्रदर्शनी जन्माष्टमी के दिन प्रातः में प्रत्येक श्रद्धालुओं द्वारा जन्माष्टमी के पावन समय पर प्रस्तुत की जाती है। भगवान श्री कृष्ण के इस चरित्र और जीवन झांकी की रूप रेखा के द्वारा हमें उनके स्वरूप के विभिन्न दर्शन और ज्ञान प्राप्त होता हैं।

इसमें मुख्य रूप से श्री कृष्ण का योगी, गृहस्थ, कूटनीतिज्ञ, कलाकार, तपस्वी, महान पुरुषार्थी, दार्शनिक, प्रशासक, मनस्वी आदि स्वरूप है। इनके साथ ही साथ श्री कृष्ण के लोक रंजक, लोक संस्थापक ओर लोक प्रतिनिधित्व स्वरूप का भी हमें ज्ञान और दर्शन जन्माष्टमी के त्यौहार से सहज ही प्राप्त हो जाता है।

भगवान धर्मसंस्थानार्थ, पापियों के विध्वंस और साधुओ के रक्षक हैं, यह भी प्रबोध हमें मन और आत्मा से बार-बार हो जाता है।

जन्माष्टमी की तैयारी

जन्माष्टमी के त्योहार को मनाने का ढंग बड़ा ही सहज ओर रोचक है। इस त्योहार को मनाने के लिए सभी श्रद्धालु सवेरे सवेरे से अपने घरों और आवासों की सफाई करके उसे धार्मिक चिन्हों के द्वारा सजाते हैं।

विभिन्न प्रकार के धार्मिक कृत्यों को करते हैं और व्रत रखते हुए श्री कृष्ण लीला गान और श्री कृष्ण कीर्तन करते रहते हैं। बड़े बड़े नगरों में तो इस त्योहार को बड़े पैमाने पर सम्पन्न ओर आयोजित करने के लिए, कई दिन पहले से ही तैयारियां आरंभ हो जाती हैं।

नगर की गलियां, गलियांरे विविध प्रकार की साज सज्जा से झूम उठते हैं। मिठाइयों की दुकान, कपड़ों की दुकान, खिलौनों की दुकान, मंदिर और अन्य धार्मिक संस्थानों सहित कई प्रकार के सामाजिक प्रतिष्ठान भी सज धज कर चमक उठते हैं।

सबसे अधिक उत्साह बच्चों में होता है। अन्य भक्त गण तो इस त्योहार को सबसे बड़ा आनंददायक और उत्साहवर्धक समझ कर अपने तन मन को निछावर करने के लिए प्रस्तुत रहा करते हैं।

सवेरे से श्री कृष्ण का मन ही मन स्मरण ओर समर्पण भाव से नाम जपते हुए जन्माष्टमी के त्यौहार को कुछ पूजा पाठ करके दान पूर्ण उपरांत व्रत को धारण करते हैं। भगवान की मूर्ति या चित्र पर अर्ध्य दीप, फल आदी को चढ़ाकर दिनभर व्रत को रखा जाता है।

व्रत रात को भी धारण किया जाता हैं। कुछ लोग तो अखंड भाव से कम से कम जलपान करते हुए व्रत रखते हैं। प्राय: सभी भक्तगण दिनभर प्रसाद व स्वच्छ फल या पेय पदार्थ का सेवन करते है और अर्धरात्रि के समय चंद्रदर्शन उपरांत ठीक मध्य रात्रि 12:00 बजे श्री कृष्ण के जन्मोत्सव का आनंद लेते हुए, कथा श्रवण करके प्रसाद लेते हैं।

इसके बाद व्रत को समाप्त किया जाता हैं। इसके बाद फिर श्री कृष्ण का जप, जाप, पूजा करके ध्यान करते हुए निद्रा का आनंद लेते हैं। वही कुछ लोग रातभर जागरण किया करते हैं।

जन्माष्टमी की पूजा कैसे करें

जन्माष्टमी की पूजा करते वक्त सबसे पहले भगवान का ध्यान ओर जाप मन ही मन सुबह से ही करते है। रात में कृष्ण जी का जन्म हुआ था, कहा जाता है की कृष्ण जी ही एकमात्र है जिनका जन्म धरती पर रात को 12 बजे हुआ। क्युकी पूरी प्रथ्वी पर आज तक ठीक 12 बजे किसी का भी जन्म नहीं हुआ है।

कृष्ण जी की पूजा करने से पहले कुछ तैयारी आवश्यक होती है। सबसे पहले आप चौकी पर लाल वस्त्र बिछाये और भगवान श्री कृष्ण के पात्र को रखें। फिर बाल गोपाल को पंचामृत और गंगाजल से स्नान कराएं।

लड्डू गोपाल को वस्त्र पहनाए उनका पूरे तरीके से साज सिंगार करें। अब भगवान श्री कृष्ण को रोली ओर अक्षत से तिलक करे। अब लड्डू गोपाल को तुलसी अर्पित करें और माखन और मिश्री का भोग लगाएं।

भोग लगाने के बाद श्रीकृष्ण को गंगाजल भी अर्पित करें। अब श्री कृष्ण जी की आरती करें। हाथ जोड़कर अपने आराध्य देवता का ध्यान करें। आरती के बाद नारियल फोड़कर सभी में प्रसाद वितरण करें।

जन्माष्ठमी दही हांडी उत्सव

बाल्यावस्था से ही श्री कृष्ण जी बहुत ही नटखट ओर शरारती थे। गोपियों को सताना, उनकी मटकी फोड़ देना, ग्वालों के साथ गायो को चराना ओर मक्खन खाना भगवन कृष्ण का सबसे पसंदीदा काम था।

जब श्री कृष्ण जी घर में मक्खन चुराते थे, तो कृष्ण जी दूसरो के घर से भी मक्खन चुरा कर खाते थे। जब कृष्ण जी की शिकायत की जाती थी, तो बड़े भोलेपन से अपनी मा यशोदा जी से कहते थे “मैया मोरी मैं नहीं माखन खायो”।

इसलिए माता यशोदा ओर सभी अपने अपने मक्खन की मटकी को उचे स्थान पर लटका देते थे। श्री कृष्ण ओर उनकी टोलियां एक के उप्पर एक चड़कर मक्खन को चुरा कर खा लेते थे। आज भी दही हांडी के दौरान कई युवा एक साथ दल बना कर इसमें हिस्सा लेते है।

इस उत्सव के दौरान एक ऊंचाई पर दही से भरी हांडी लगा दी जाती है। जिसे विभिन्न युवाओं के दल तोड़ने का प्रयास करते है। यह एक खेल के रूप में होता है, जिसके लिए इनाम भी दिया जाता है। दही हांडी आमतौर पर अगस्त माह में ही पड़ती है। जिसे हम सभी बड़े उल्लास ओर खुशियों के साथ मनाते है।

उपसंहार

जन्माष्टमी का त्योहार आर्थिक और कृषि की दृष्टि से अत्यधिक महत्वपूर्ण है। इस दृष्टि से गोपालन और गोलछा की भावना पुष्ट होती है। हमारे मन और अंतःकरण में श्री कृष्ण की समस्त जीवन की झांकी झलकने लगती है।

हम आध्यात्मिक और धार्मिक तथा सांस्कृतिक दृष्टि से बल और पुष्ट होने के लिए नए नए संकल्प को दोहराने लगते हैं। इस त्यौहार को मनाने से हमें नई स्फूर्ति, प्रेरणा, नया उत्साह ओर नयी आशाओं के प्रति जागृति होती है।

इस त्योहार को मनाने में बच्चो का ओर युवाओं का उत्साह देखते ही बनता हैं। हर जगह चहल पहल और रोनक दिखाई देती है। अतएव हमें जन्माष्टमी के इस पावन त्यौहार को पवित्रता के साथ मनाना चाहिए।


इन्हे भी पढ़े :- 

तो यह था कृष्ण जन्माष्टमी पर निबंध, आशा करता हूं कि कृष्ण जन्माष्टमी पर हिंदी में लिखा निबंध (Hindi Essay On Krishna Janmashtami) आपको पसंद आया होगा। अगर आपको यह लेख अच्छा लगा है, तो इस लेख को सभी के साथ शेयर करे।

Sharing is caring!