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चंद्रगुप्त मौर्य पर निबंध (Chandragupta Maurya Essay In Hindi)
महान सम्राट चंद्रगुप्त मौर्य, मौर्य समाज के संस्थापक थे। चंद्रगुप्त मौर्य का जन्म 340 इसा पूर्व में हुआ था। उनका जन्म पाटलिपुत्र नामक जगह पर हुआ था। मौर्य परिवार के वे सबसे छोटे बेटे थे। वह बचपन से ही एक बेहतरीन शिकारी थे।
उस समय उत्तरी भारत का अधिकाँश साम्राज्य, नन्दो के कब्ज़े में था। ग्रंथो के मुताबिक चंद्रगुप्त नन्द राजा की शुद्रपत्नी से जन्म था। कुछ लोगो का मानना है कि वह नंद के वंशज थे। उनकी माँ का नाम मुरा था, जबकि अन्य लोगो का मानना हैं कि वह मयूर टोमेर्स के मोरिया जनजाति के थे।
भारत के प्राचीन इतिहास के सबसे महत्वपूर्ण योद्धा थे सम्राट चंद्रगुप्त मौर्य। उनकी राजधानी का नाम पाटलिपुत्र था, जिसे आज पटना के नाम से जाना जाता है। चंद्रगुप्त मौर्य 322 इसा पूर्व में मगध के सिंघासन पर विराजमान हुए थे।
भारतीय इतिहास के पन्नो में उनकी अद्भुत साहस की गाथा लिखी हुयी है। इतने सदियों के गुजर जाने के पश्चात भी लोग उनकी पराक्रम की तारीफ़ किये बिना थकते नहीं है। भारत के सशक्त और महान राजाओ में से एक चंद्रगुप्त मौर्य है।
उन्होंने और चाणक्य ने अपनी कुशल और तेज़ रणनीति के कारण सिर्फ भारत में ही नहीं, बल्कि पास के अनगिनत देशो में अपना नाम बनाया। चंद्रगुप्त ने अपने साम्राज्य का विस्तार कश्मीर से लेकर दक्षिण तक और असम से लेकर अफगानिस्तान तक किया।
उस समय मौर्य साम्राज्य सबसे बड़ा और विस्तृत साम्राज्य कहलाया जाता था। चंद्रगुप्त मौर्य महान शासक थे, जिन्होंने देश के विभिन्न राज्यों को एक जुट करने में अपना योगदान दिया। सम्पूर्ण देश को एक सूत्र में पिरोया और एकता का सन्देश दिया।
चंद्रगुप्त ने कुछ राज्य जैसे सत्यपुत्र, कलिंग, चेरा जैसे तमिल क्षेत्रों को सम्मिलित नहीं किया था। चंद्रगुप्त मौर्य के तेज़ और हिम्मत को देखकर चाणक्य भी उनसे प्रभावित हो गए थे।चंद्रगुप्त ने बीस साल की छोटी आयु में मौर्य साम्राज्य का आगाज़ किया था।
चंद्रगुप्त मौर्य का इतिहास भी काफी जोखिम भरा था। एक समय था जब राजकुमार नंदा मगध पर राज कर रहे थे। नन्दा खुद को ताकतवर समझते थे, लेकिन मौर्य नन्दा के दूर के भाई थे। नन्दा को उनसे खतरा महसूस होता था।
नन्दा ने मौर्य और उनके पुत्रो को ख़त्म करने के लिए चाल चली। नन्दा ने मौर्य से मुलाक़ात की और नन्दा ने मौर्य और उनके पुत्रो को जंगल में शिकार के बहाने बुला लिया। भोले भाले मौर्य उनकी बातों में आ गए। शिकार के पश्चात नन्दा मौर्य को जंगल में स्थित महल पर ले आये।
नन्दा ने कहा की जगह की कमी के कारण मौर्या और उनके पुत्रों को अंदर के कक्ष में जाना होगा। मौर्य बिना शक किये उनके बात को मान गये। जैसे ही वह अंदर गये, नन्दा ने कक्ष को बाहर से बंद कर दिया।
पूरी मौर्य सेना अंदर रह गयी और कई दिनों के लिए भूखे प्यासे कैद हो गए। कुछ दिनों के पश्चात मौर्य सेना और उनके पुत्रो ने दम तोड़ दिया था। मौर्य ने कहा कि जो भी ज़िंदा बच जाएगा, वह नन्दा से बदला ज़रूर लेगा।
सिर्फ एक ही मौर्य पुत्र जिन्दा था और वह था चंद्रगुप्त मौर्य। नन्दा ने चंद्रगुप्त को वहाँ से निकालकर उसे जेल में डाल दिया था, तब चंद्रगुप्त की उम्र काफी कम थी। राजा पार्वतका ने जासूस कमलापीड़ा को काम सौपा और पता लगाने के लिए कहा, कि सारे मौर्य बच गए है या नहीं।
कमलापीड़ा मगध पहुंचा और समक्ष जनता के सामने एक चुनौती रखी। कमलपीड़ा ने बिना दरवाज़े के पिंजरे में कैद शेर को बिना पिंजरा तोड़े बाहर निकालने के लिए कहा। यह बात नन्दा तक पहुंची। नन्दा ने कहा जो यह काम करेगा वह मगध का मान रखेगा और नन्दा उस आदमी को इनाम भी देंगे।
तब चंद्रगुप्त मौर्य को जेल से बाहर निकाला गया और उन्होंने देखा कि शेर मोम का बना है। पिंजरे में आग लगाकर चंद्रगुप्त ने इस बात को साबित किया। चंद्रगुप्त को जेल से रिहा कर मेहमान गृह भेज दिया गया। चंद्रगुप्त की वहां चाणक्य से मुलाक़ात हुयी और उन्होंने अपनी सारी बातें चाणक्य को बतायी।
चाणक्य ने उन्हें आश्वाशन दिया था कि वह चंद्रगुप्त को अपने पिता और भाईयों की मौत का बदला लेने में उनकी मदद करेंगे। चाणक्य और चंद्रगुप्त की रणनीति की वजह से नन्दा और उनके भाईयों का खात्मा हो गया।
शुरुआत से ही चाणक्य और चंद्रगुप्त का सिर्फ एक मकसद था, नन्द वंश को पूरी तरीके से बर्बाद करना। चंद्रगुप्त के पिता और भाईयों को नंदा ने खत्म किया था और नंदा ने चाणक्य का बुरी तरीके से अपमान किया था। इसलिए दोनों ने नंदा को ख़त्म करने का संकल्प लिया था, जिसे दोनों ने अपने अंजाम तक पहुंचाया।
चंद्रगुप्त की भेंट जैसे ही चाणक्य से हुयी, उनकी पूरी जिंदगी ही बदल गयी। चंद्रगुप्त ने महान योद्धा बनने का सफर, चाणक्य की सिखाई रणनीति के साथ की। एक साहसी योध्या के रूप में चंद्रगुप्त जी में जितने गुण होने चाहिए, उनमे उनसे ज़्यादा गुण थे।
चंद्रगुप्त बचपन से ही कुशाग्रबुद्धि के थे। वे एक आदर्श, सच्चे और ईमानदार शासक थे। चाणक्य, चंद्रगुप्त के गुरु थे, जिन्होंने चंद्रगुप्त का विशाल साम्राज्य बनाने में उनकी मदद की।चंद्रगुप्त जी ने 20 साल की उम्र में अपने सलाहकार चाणक्य के साथ मिलकर मेसेडोनिया क्षेत्र को ज़ब्त कर लिया।
चंद्रगुप्त एक ऐसे शासक थे, जिन्होंने भारत पर कई वर्षो तक राज किया, जिन्होंने समस्त देश को एकजुट किया। उनसे पहले समस्त भारत में हर एक छोटे छोटे प्रान्त के शासक हुआ करते थे।
लेकिन उन्होंने सभी प्रांतो को अपने साम्राज्य में मिला लिया। चंद्रगुप्त बुद्धिमान शासक थे। चाणक्य ने इस बात को पहले से ही भांप लिया था। सलाहकार चाणक्य के शरण में उन्होंने राजनितिक और सामाजिक स्तर पर विद्या प्राप्त की।
चंद्रगुप्त के नेतृत्व कौशल से प्रभावित होकर चाणक्य ने उन्हें विभिन्न स्तरों पर प्रशिक्षित करने की बात सोची थी। तत्पश्चात चाणक्य चंद्रगुप्त को तक्षशिला विश्वविद्यालय ले आए थे।लगभग 324 ईसा पूर्व में इस अवधि के दौरान, चंद्रगुप्त और चाणक्य ने स्थानीय शासकों के साथ गठबंधन किया और ग्रीक शासकों की सेनाओं को हराना शुरू कर दिया।
इसके कारण मौर्य साम्राज्य की स्थापना तक उनके क्षेत्र का विस्तार हुआ। कहा जाता है कि मुग़ल सम्राट अकबर से भी अधिक चंद्रगुप्त का साम्राज्य फैला हुआ था। चंद्रगुप्त को साहित्य में बेहद रुचि थी और प्रकृति से भी काफी लगाव था।
अलेक्सांडर के जनरलों को पराजित करने के पश्चात, उन्होंने अफगानिस्तान से बर्मा और दक्षिण के हैदराबाद तक अपने साम्राज्य को विस्तृत किया। उन्होंने अपने साम्राज्य में ईरान, कराजिस्तान और तजाकिस्तान तक को शामिल किया।
अलेक्सांडर भारत में अपने आक्रमण की तैयारी में था। तब तक्षशिला के राजा और गंधारा ने अलेक्सांडर के समक्ष हार स्वीकार कर ली थी। चाणक्य ने अलग अलग राजाओ से सहायता मांगी। पंजाब के राजा पर्वर्तेश्वर को भी अलेक्सांडर के समक्ष हार का सामना करना पड़ा।
चाणक्य ने अलग शासको के समक्ष मदद की गुहार लगाई, लेकिन कोई फायदा ना हुआ। चाणक्य ने अपना नवीन साम्राज्य तैयार किया, जिसके लिए उन्होंने चंद्रगुप्त का चयन किया।अलेक्सांडर को चंद्रगुप्त ने चाणक्य नीति से मात दी।
चंद्रगुप्त ने चाणक्य की सलाह के अनुसार, प्राचीन भारत के हिमालयी क्षेत्र के शासक राजा पार्वतका के साथ गठबंधन किया। चंद्रगुप्त और पार्वतका की सेना के साथ, नंद साम्राज्य को लगभग 322 ईसा पूर्व में समाप्त कर दिया।
सूत्रों से पता चला की चंद्रगुप्त मौर्य की सेना में 500,000 से अधिक सैनिक, 9000 युद्ध हाथी और 30000 घुड़सवार थे। पूरी सेना अच्छी तरह से प्रशिक्षित थी और चाणक्य की सलाह के अनुसार चलती थी।
चंद्रगुप्त और चाणक्य ने हथियार निर्माण सुविधाओं के लिए एक साथ कार्य किये थे। लेकिन उन्होंने अपनी शक्ति का उपयोग केवल अपने विरोधियों और दुश्मनो को डराने के लिए किया था। ज़्यादा युद्ध करने के बजाय चंद्रगुप्त ने कूटनीति का उपयोग करते हुए भी अपने साम्राज्य को बढ़ाया था।
चंद्रगुप्त मौर्य के पोते, सम्राट अशोक ने तकरीबन 260 इसा पूर्व में कलिंग पर अपने जीत का झंडा फहराया था। वहां कई लोग मारे गए थे। अशोक ने अपने क्रूरता का आभास किया और उन्होंने निर्दयता को छोड़ परोपकार को अपने जीवन में अपनाया था। अंत में अशोक एक दयालु इंसान बन गए थे।
चंद्रगुप्त की पहली पत्नी दुर्धरा थी और उनकी दूसरी पत्नी का नाम हेलना था। पहली पत्नी से उन्हें बिन्दुसार नाम का बेटा हुआ था और दूसरी पत्नी से उन्हें जस्टिन नाम का पुत्र हुआ। चाणक्य हमेशा चंद्रगुप्त की सुरक्षा करना चाहते थे।
इसलिए चंद्रगुप्त को उनके भोजन में थोड़ा जहर प्रत्येक दिन मिलाकर देते थे। लेकिन इसके पीछे उनका मकसद था, चंद्रगुप्त की प्रतिरोधक क्षमता को विकसित करना, ताकि कभी भी कोई दुश्मन उन्हें जहर देकर उनका नुकसान ना कर पाए।
एक बार दुर्भाग्यवश उनके दुश्मन ने भोजन में धोखे से ज़्यादा जहर मिला दिया। वह भोजन उनकी पहली पत्नी भी खा रही थी। इसके कारण उनकी पत्नी की मृत्यु हो गयी थी। पूर्व एशिया के बहुत सारे भागो पर चंद्रगुप्त अपना कब्ज़ा जमा चुके थे।
उन्होंने सेल्यूकस के खिलाफ युद्ध छेड़ दिया, जो एक यूनानी शासक था। आखिर में सेल्यूकस ने चंद्रगुप्त से समझौता करना बेहतर समझा। चंद्रगुप्त ने अपने साम्राज्य को और अधिक फैला दिया। सेल्यूकस ने अपनी बेटी का हाथ देना और उनके साथ गठबंधन में प्रवेश करना बेहतर समझा।
सेल्यूकस की मदद से चंद्रगुप्त ने कई क्षेत्रों पर अपना अधिकार ज़माना शुरू कर दिया और दक्षिण एशिया तक अपने साम्राज्य का विस्तार किया। अपने इंजीनियरिंग गुणों जैसे मंदिरों, सिंचाई, जलाशयों और सड़कों के लिए मौर्य साम्राज्य जाना जाता था।
चंद्रगुप्त मौर्य जलमार्ग को इतना सुविधाजनक नहीं मानते थे, इसलिए परिवहन का उनका प्रमुख माध्यम सड़क मार्ग था। उन्होंने बड़े सड़कों का निर्माण करने के लिए अपने साम्राज्य को प्रेरित किया था।
उन्होंने एक हाइवे का भी निर्माण किया, जो पाटलिपुत्र से तक्षशिला को जोड़ता था और हज़ारो मील तक फैला था। उनके द्वारा निर्मित अन्य राजमार्गों ने उनकी राजधानी को नेपाल, देहरादून, ओडिशा, आंध्र प्रदेश और कर्नाटक जैसे राज्यों से जोड़ा। उन्होंने पश्चिमी देशो के संग भारत के व्यापार को आगे बढ़ाया।
चंद्रगुप्त जब सिर्फ पच्चास साल के हुए, तो उनका रुझान जैन धर्म की ओर हुआ। चंद्रगुप्त अपना सम्पूर्ण साम्राज्य अपने बेटे बिंदुसरा को देकर चले गए। यह साम्राज्य छोड़कर वे कर्नाटक चले गए और आध्यात्मिक चीज़ों में अपना ध्यान केंद्रित किया।
बिन्दुसार को नया सम्राट बनाने के पश्चात, चाणक्य से मौर्य वंश के मुख्य सलाहकार के रूप में अपनी सेवाएं जारी रखने का अनुरोध चंद्रगुप्त ने किया। चंद्रगुप्त ने हमेशा के लिए पाटलिपुत्र छोड़ दिया।
चंद्रगुप्त ने सभी सांसारिक सुखों को त्याग दिया और जैन धर्म की परंपरा के अनुसार एक साधु बन गए। यहाँ उन्होंने बहुत दिनों तक भूखे प्यासे ध्यान किया और इसी कारण उनकी मृत्यु हो गयी। कर्नाटक के श्रावणबेला गोला नामक स्थान पर चंद्रगुप्त मौर्य की मृत्यु हुयी थी।
बिन्दुसार ने एक पुत्र अशोक को जन्म दिया, जो भारतीय इतिहास के सबसे शक्तिशाली राजाओं में से एक बन गए थे। सम्राट अशोक के नेतृत्व में भी मौर्य साम्राज्य ने इसकी पूरी महिमा देखी और मौर्य साम्राज्य पूरी दुनिया में सबसे बड़ा बन गया था।
मौर्य साम्राज्य 130 से अधिक वर्षों के लिए पीढ़ियों में फला-फूला। सम्राट अशोक अपने निडरता और दृढ़ता के लिए लोकप्रिय थे। आज इतिहास के पृष्टभूमि में चंद्रगुप्त मौर्य, प्राचीन भारत के सबसे महत्वपूर्ण और प्रभावशाली सम्राटों में से एक माने जाते है। इतिहास में बिन्दुसार एक महान पिता और एक महान आदर्श पुत्र के रूप में जाने जाते है।
निष्कर्ष
चंद्रगुप्त जी की मृत्यु के पश्चात, बिन्दुसार ने अपनी सोच समझ से मौर्य साम्राज्य को संभाला और मौर्य साम्राज्य को शक्तिशाली बनाये रखने में कामयाब रहे। बिन्दुसार के वक़्त भी चाणक्य उनके साम्राज्य के प्रधानमंत्री बने रहे और अपना भरपूर योगदान देते रहे। चाणक्य की निपुण और कुशल रणनीति के कारण मौर्य साम्राज्य ने अपना मुकाम हासिल किया।
चंद्रगुप्त के चल बसने के पश्चात उनके पुत्र बिन्दुसार ने उनके इतने विशाल साम्राज्य को आगे बढ़ाया। चाणक्य और चंद्रगुप्त ने एक साथ मिलकर एक विशाल साम्राज्य का निर्माण किया था। बिना चाणक्य के चंद्रगुप्त के लिए इतनी बड़े साम्राज्य को बनाना आसान ना था।
चंद्रगुप्त के इस साम्राज्य को आगे उनके पोते सम्राट अशोक ने बढ़ाया। चंद्रगुप्त एक बड़े योद्धा के तौर पर देखे जाते है। चंद्रगुप्त की महागाथा पर टीवी सीरीज का भी निर्माण किया गया है। चंद्रगुप्त एक प्रेरणादायक शासक थे, जिनकी चर्चाएं आज भी लोगो में होती है।
तो यह था चंद्रगुप्त मौर्य पर निबंध, आशा करता हूं कि चंद्रगुप्त मौर्य पर हिंदी में लिखा निबंध (Hindi Essay On Chandragupta Maurya) आपको पसंद आया होगा। अगर आपको यह लेख अच्छा लगा है, तो इस लेख को सभी के साथ शेयर करे।