अनुशासन पर निबंध (Discipline Essay In Hindi)

आज के इस लेख में हम अनुशासन पर निबंध (Essay On Discipline In Hindi) लिखेंगे। अनुशासन पर लिखा यह निबंध बच्चो (kids) और class 1, 2, 3, 4, 5, 6, 7, 8, 9, 10, 11, 12 और कॉलेज के विद्यार्थियों के लिए लिखा गया है।

अनुशासन पर लिखा हुआ यह निबंध (Essay On Discipline In Hindi) आप अपने स्कूल या फिर कॉलेज प्रोजेक्ट के लिए इस्तेमाल कर सकते है। आपको हमारे इस वेबसाइट पर और भी कही विषयो पर हिंदी में निबंध मिलेंगे, जिन्हे आप पढ़ सकते है।


अनुशासन पर निबंध (Discipline Essay In Hindi)


प्रस्तावना

हम सभी के जीवन में अनुशासन बहुत आवश्यक है। अगर हम वास्तव में अपनी जिंदगी को सही तरीके से जीना चाहते हैं और अपनी तथा अपने परिवार और देश का विकास करना चाहते हैं। तो हमें अनुशासन में रहकर जिंदगी को उसके वास्तविक रूप में जीना होगा।

हम देखते हैं कि प्रकृति किस प्रकार से अनुशासित रहती है। सूरज और चन्द्रमा अपने समय से रोज निकलते हैं, धरती अपनी निश्चित जगह पर रहकर सूर्य की परिक्रमा करती रहती है, सारे मौसम एक के बाद एक अपने समय पर आते हैं और पेड़ पौधे आजीवन हमें फल फूल देते रहते हैं।

आपने कभी सोचा है कि इनमें से एक भी अगर अपना ये नियम तोड़कर एक दिन के लिए भी अपना काम करना बंद कर दे तो क्या होगा?… हम सभी का जीवन अस्त व्यस्त हो जाएगा। अनुशासन सिर्फ प्रकृति के लिए ही नहीं हमारे लिए भी बहुत महत्वपूर्ण है, क्योंकि मानव और प्रकृति एक दूसरे से जुड़े हुए हैं।

राष्ट्रपिता महात्मा गांधी जी ने भी कहा है कि “आत्‍मसंयम, अनुशासन और त्याग के बिना शांति और मोक्ष की प्राप्ति नहीं हो सकती है। हम किसी के दबाव में आकर अनुशासन नहीं सीख सकते हैं।”

अनुशासन का अर्थ

अनुशासन शब्द अनु और शासन इन दो शब्दों से मिलकर बना है। अनु का मतलब है अनुसरण करना और शासन का मतलब है नियमों को मानना। अनुशासन से आप क्या समझते है? क्या दूसरों के या कहें कि बड़ों के नियंत्रण में रहना अनुशासन होता है।

या फिर इच्छा ना होने के बाद भी दूसरों की हर बात मान लेना अनुशासन है। तो क्या अपनी मर्जी से हर काम करना अनुशासनहीनता कहलाएगा? बिल्कुल नहीं अनुशासन का सही मतलब है स्वयं को बिना किसी दबाव के नियंत्रित रखना, ताकि आप अपने दिल और दिमाग से वही काम करवाएं जो आप चाहते हैं और जो सही हैं।

किसी भी व्यक्ति द्वारा नियम में रहकर अपने सारे कार्यों को करना ही अनुशासन कहा जाता है। बच्चे मां, बाप और शिक्षकों द्वारा अनुशासन सीखते हैं। मां बाप और शिक्षकगण उन्हें नियमों में रहना सिखाते हैं।

कहा जाता है कि मन एक चंचल घोड़े की तरह होता है, अगर इसकी लगाम को पकड़कर ना रखा गया तो उसके परिणाम अनर्थकारी हो सकते हैं। हमारा मन सदा ही भटकता रहता है, मन को एकाग्र करना बेहद जरूरी होता है।

अगर मन की भावनाओं और मस्तिष्क के आदेशों पर हम काबू करके उन्हें भटकने नहीं देंगे, तो वे स्वतः ही अनुशासित हो जाएंगे। कहा भी गया है की

“कितने ही आए गए , धरती पर इंसान।

अनुशासन में जो रहे, बनते वहीं महान।।”

अर्थात् इस संसार में व्यक्ति जन्म लेते रहते हैं और मरते रहते हैं, लेकिन जो मनुष्य अनुशासित रहकर कार्य करते हैं वही सफल और महान बन पाते हैं। अन्यथा जीवन व्यर्थ हो जाता है।

क्यों जरूरी है अनुशासन?

ये कहना गलत नहीं होगा कि अनुशासन ही सफलता की सीढ़ी है। जो व्यक्ति अनुशासित जीवन जीता है उसका वर्तमान और भविष्य दोनों उज्जवल और खुशहाल हो जाता हैं। उसे देश और समाज में इज्जत मिलती है और वह आत्मविश्वास से परिपूर्ण आकर्षक व्यक्तित्व का इंसान बनता है।

इसके विपरित अनुशासनहीन व्यक्ति जो अपने जीवन को नियम तोड़कर के जीता है उसका जीवन अंधकारमय हो जाता है और वो कभी जीवन में सफल नहीं हो पाता। ऐसे व्यक्ति का कोई सम्मान नहीं करता और वो स्वतः ही हीन भावना से घिर जाता है।

हम इतिहास के पन्ने पलटकर देखें तो हमें पता चलेगा की बड़े बड़े महापुरुषों और सफल व्यक्तियों ने ऐसे ही सफलता हासिल नहीं की है। उनकी सफलता के पीछे कड़ी मेहनत और अनुशासन है। स्वामी विवेकानंद जी के अनुसार खुद पर नियंत्रण करना संयम और अनुशासन कहलाता है।

अनुशासित व्यक्ति के सामने कितनी भी बाधाएं क्यों ना आए, वो उन सभी बाधाओं के मध्य रहकर भी अपने कामों को निरंतर पूरा करता रहता है। अनुशासित रहने के लिए संयम रखना भी जरूरी है, क्योंकि सेवाभावना, मन की शांति, कर्मशीलता जैसे गुण संयम और अनुशासन से ही आते हैं।

अनुशासित मानव चिंता से मुक्त रहता है और अपने सारे कामों को पूरी लगन के साथ बेहतर तरीके से करता है। स्वामी  विवेकानंद ने यह भी बताया है कि चाहे कोई भी क्षेत्र क्यों ना हो, हर क्षेत्र में शासन वह व्यक्ति ही कर पाएगा जो स्वयं अनुशासन में रहकर जीवन जीता है।

एक और विद्वान ने कहा है कि आप चाहें सरल काम करें या फिर कोई कठिन काम, अपने लिए कोई कार्य करें या फिर दूसरों की भलाई के लिए, हर तरह के कार्य को अगर सफल रूप से संचालित करना है तो उसके लिए अनुशासित बनना ही होगा।

चाणक्य ने भी कहा है कि जो व्यक्ति अनुशासन का पालन नहीं करता है उसका ना तो वर्तमान अच्छा होगा और ना भविष्य अच्छा होगा। महात्मा गांधी के अनुसार अनुशासन हम विपत्ति आने पर सीखते हैं। अर्थात् कोई व्यक्ति जो पहले अनुशासित नहीं होता है, बाद में जब उसे अनुशासनहीनता के कारण परेशानियों का सामना करना पड़ता है तो वह इसका महत्व समझता है और अनुशासित जीवन जीने लगता है।

हर व्यक्ति सफल होना चाहता है, हम सभी अपनी मंजिल पाने के लिए उसके पीछे भागते रहते हैं और लक्ष्यप्राप्ती के लिए अनेक तरीके अपनाते हैं। परन्तु अनुशासन का पालन ना करने से ये सारी भागदौड़ व्यर्थ हो जाती है।

जबकि सत्य ये है कि जो अनुशासन को मानते हैं और उसके अनुसार कार्य करते हैं उनकी ज़िन्दगी में सुख – शांति बनी रहती है और वे लक्ष्य भी प्राप्त कर लेते हैं।

बालकों में अनुशासन की सीख

बालक कच्ची मिट्टी जैसे होते हैं, उन्हें हम जिस आकार में ढालना चाहें ढाल सकते हैं। बचपन से बच्चों को जैसी शिक्षा दी जाती है, उसका असर उन पर जीवनभर रहता है। जबकि सही रास्ता ना दिखाएं जाने पर वे रास्ते से भटक जाते हैं।

बालक सबसे पहले अनुशासन अपने घर से सीखते हैं, सिर्फ बड़ों के द्वारा दी गई शिक्षा से ही नहीं बल्कि उनके व्यवहार, कार्यों और आचरण को देखकर भी वो सीखते हैं। घर के बड़े बुजुर्ग अगर स्वयं अनुशासन में रहते हैं तो बच्चे भी उनका अनुसरण करके अनुशासित जीवन को अपनाते हैं।

वही अगर घर के बड़े बुजुर्ग ही अनुशासनहीन हैं तो उस घर के बालकों पर भी बुरा प्रभाव पड़ता है और वे भी अपने जीवन में अनुशासन को महत्व नहीं देते हैं। जब बालक स्कूल जाना शुरू करता है तब तो उसके लिए अनुशासित बनना और भी आवश्यक हो जाता है।

इसी समय में उसके चरित्र का निर्माण होता है। स्कूल में रहकर और शिक्षकों से वो जो कुछ भी सीखता है उसका प्रभाव जिंदगी भर रहता है। अगर उसे अच्छा, प्रोत्साहनपूर्ण और अनुशासित वातावरण मिलता है तो वो अपने जीवन में अनुशासित और आदर्श व्यक्तित्व वाला इंसान बनता है।

एक अनुशासित वातावरण में रहने वाला बच्चा सद्गुणों को अपनाता है और यदि बालक को बचपन में अच्छी शिक्षा और वातावरण नहीं मिल पाता है, तो उसका प्रभाव अत्यंत बुरा होता है।

ऐसा बालक अनुशासित नहीं रह पाता है और उच्श्रृंखलता के साथ मनमाने तरीके से जीवन जीता है। बाद में इसके परिणाम अत्यंत खराब होते हैं। वह बालक आगे जाकर चोर, डाकू या अन्य कोई अपराधी भी बन सकता है, क्योंकि अनुशासहीनता की वजह से उसमें नैतिक मूल्यों का पतन हो जाता है और वो अच्छा, बुरा समझने की बुद्धि खो देता है।

बालक शिक्षकों का भी अनुसरण करते हैं, शिक्षक बालकों को अच्छे व्यक्तित्व और अनुशासन में रहने की सीख देते हैं। लेकिन अगर वे खुद ऐसा व्यवहार नहीं करते हैं, तो बालक उनकी सीख को नहीं मानेंगा। अतः अध्यापकों को चाहिए कि वे इस प्रकार से व्यवहार करें जिससे उनके आदर्श आचरण की छाप बच्चों पर पड़े।

राष्ट्र के विकास के लिए अनुशासन

किसी भी राष्ट्र का निर्माण उसके नागरिकों से ही होता है। व्यक्ति से समाज और समाज से देश बनता है, इसलिए अगर समाज में रहने वाले व्यक्ति अनुशासित होंगे तो देश का विकास होने से कोई नहीं रोक सकता।

अनुशासन का पालन करने से समाज और देश से अपराध स्वतः ही कम हो जाएंगे। हर देश में अपने कुछ नियम और कायदे – कानून बनाए जाता हैं। इन नियमों को मानना हम सभी के लिए बहुत जरूरी होता है, क्योंकि ये नागरिकों की सुरक्षा और भलाई के लिए ही बनाए जाते हैं।

इन नियमो का उल्लंघन करने पर हम ना सिर्फ खुद का बल्कि पूरे देश का नुकसान कर बैठते हैं। इसीलिए कहा गया है की

“देश तरक्की ना करे, कोई करे शासन।

जब तक उसमें ना रहे, स्वयं में अनुशासन।।”

यानी कोई भी देश हो और उस पर चाहे कोई भी शासन करे, पर वो तब तक तरक्की नहीं कर पाता है जब तक उस देश में रहने वाले लोगों में अनुशासन ना हो।

उपसंहार

अनुशासन हम सभी के लिए जरूरी है। अतः हमें नियमों में रहकर और अनुशासन का पालन करके खुद की और अपने परिवार के साथ ही अपने समाज की और अपने देश की प्रगति में योगदान देना चाहिए। ताकि हमारी भावी पीढ़ियां भी हमसे अच्छी सीख लेकर अपने व्यक्तित्व को संवारें।


इन्हे भी पढ़े :-

तो यह था अनुशासन पर निबंध, आशा करता हूं कि अनुशासन पर हिंदी में लिखा निबंध (Hindi Essay On Discipline) आपको पसंद आया होगा। अगर आपको यह लेख अच्छा लगा है, तो इस लेख को सभी के साथ शेयर करे।

Sharing is caring!