आज हम मेरा प्रिय नेता पर निबंध (Essay On Mera Priya Neta In Hindi) लिखेंगे। मेरा प्रिय नेता पर लिखा यह निबंध बच्चो (kids) और class 1, 2, 3, 4, 5, 6, 7, 8, 9, 10, 11, 12 और कॉलेज के विद्यार्थियों के लिए लिखा गया है।
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मेरा प्रिय नेता पर निबंध (Mera Priya Neta Essay In Hindi)
प्रस्तवाना
मेरे प्रिय नेता सुभाष चंद्र बोस है। नेता का अर्थ नेतृत्व करना होता है। किसी भी देश या संगठन के उन्नति की बागडोर नेता के हाथ में होती है। पूरे देश को एकता के सूत्र में बांधने के लिए और भाईचारे का संदेश देने के लिए भी एक अच्छे नेता का महत्त्वपूर्ण योगदान होता है।
नेताजी सुभाष चंद्र बोस का नाम तो आप सभी ने सुना होगा। उन्होंने देश को आजादी दिलाने के लिए अथक प्रयास किया। इन्हीं की बदौलत आज हम अमन चैन से भारत में जी रहे है।नेताजी का लोकप्रिय नारा “तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हे आजादी दूंगा” के बारे में सभी को पता है।
मेरे प्रिय नेता एक क्रांतिकारी सेनानी
मेरे प्रिय नेताजी एक महान भारतीय राष्ट्रवादी सोच और विचारधारा के व्यक्ति थे। उनके अंदर देशभक्ति की भावना कूट कूट कर भरी हुई थी। मेरे प्रिय नेता सुभाष चंद्र बोस का जन्म 1897 में 23 जनवरी को हुआ था।
देश को आजादी दिलाने में इन्होंने लंबी लड़ाई लड़ी। सुभाष चंद्र बोस एक सच्चे देशभक्त होने के साथ ही एक क्रांतिकारी स्वतंत्रता सेनानी भी थे। मेरे प्रिय नेताजी सुभाष चंद्र बोस के पिताजी का नाम जानकीनाथ बोस था। उस समय के ये जाने माने वकील थे।
मेरे प्रिय नेता एक सच्चे देशभक्त
नेताजी की शुरुआती शिक्षा कटक में हुई थी। आगे की शिक्षा इन्होंने प्रेसीडेंसी कॉलेज से प्राप्त की। इसके पश्चात आई सी एस की परीक्षा देने के लिए इनको इंग्लैंड जाना पड़ा। आई सी ए स की परीक्षा उत्तीर्ण करने के बाद उनके पास एक सुनहरा अवसर था एक आराम और विलासिता पूर्वक जीवन जीने का।
लेकिन इन्होंने देशभक्ति को ही चुना। देशभक्ति की भावना की मानो इनके मन में लौ जल रही थी। जब तक इन्होंने देश को आजाद नही कराया, इन्होंने चैन की सांस नही ली। मेरे प्रिय नेताजी ने देश को आजाद कराने के लिए त्याग और बलिदान का रास्ता चुना।
मेरे प्रिय नेताजी का राजनीति में प्रवेश
नेताजी ने राजनीति में दस्तक असहयोग आंदोलन से दि थी। उन्होंने नमक आंदोलन का नेतृत्व सन् 1930 में किया था। उस समय प्रिंस ऑफ वेल्स के आगमन पर विरोध आंदोलन चल रहा था। इस पर नेताजी को सरकार की और से छह महीने की सजा भी दी गई थी।
नेताजी समय आने पर ब्रिटिश सरकार को सबक सिखाने के लिए विभिन्न राजनीतिक गतिविधियों में हिस्सा लेने लगे। मेरे प्रिय नेताजी को देशवासी नेताजी को काफी स्नेह दिया करते थे।
भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अध्यक्ष बने
मेरे प्रिय नेताजी ने सिविल डिसओबेडिएंस मूवमेंट में हिस्सा लिया था। इसके बाद से ही मेरे प्रिय नेता सुभाष चंद्र बोस भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन का हिस्सा बन गए थे। भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के सदस्य और नेताजी के रूप में लोग इनको जानने लगे।
इसके कुछ समय के बाद नेताजी 1939 में पार्टी के अध्यक्ष बन गए। इस पद पर उन्होंने कुछ समय तक कार्य किया और उसके बाद उन्होंने अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया।
ब्रिटिश के चंगुल से मुक्ति
ब्रिटिश नेताजी से काफी परेशान थे और उनके मन में नेताजी के प्रति खौफ था। यही वजह है कि ब्रिटिश सरकार ने नेताजी को घर पर नजर बंद करके रखा था। लेकिन उन्होंने अपने विवेक का इस्तेमाल किया और वहां से निकल गए।
उसके बाद सुभाष चंद्र बोस सन् 1941 को रहस्यमय तरीके से देश से बाहर चले गए। लेकिन इस सब के पीछे उनका एक मूल उद्देश था, जो था देश को ब्रिटिश के चंगुल से मुक्ति दिलाना।
भारतीय राष्ट्रीय सेना का गठन
मेरे प्रिय नेता सुभाष चंद्र बोस अंग्रेजो के विरुद्ध मदद मांगने के लिए यूरोप तक गए। उन्होंने अंग्रेजो के खिलाफ लड़ने के लिए रूस और जर्मनी जैसे देशों से सहायता मांगी। नेताजी सन् 1943 में जापान भी गए थे।
इसके पीछे मुख्य वजह यह थी कि जापानियों ने भारत को आजाद करवाने में उनके दिए गए प्रस्ताव को स्वीकृत कर लिया था। जापान में रहकर मेरे प्रिय नेता सुभाष चंद्र बोस जी ने, भारतीय राष्ट्रीय सेना का गठन करने का कार्य आरंभ कर दिया।
मेरे प्रिय नेता अहिंसावादी विचारो से असहमत
सुभाष चंद्र बोस लगातार दूसरी बार भी कांग्रेस के अध्यक्ष चुने गए थे। लेकिन उसी दौरान गांधीजी और कांग्रेस के साथ उनके कुछ मतभेद उत्पन्न हो गए। इसी के कारण सुभाष चंद्र बोस जी ने इस्तीफा दे दिया था।
सुभाष चंद्र बोस महात्मा गांधी के अहिंसावादी विचारो से असहमत थे। गांधीजी और नेहरू जी के अहिंसावादी विचारो के चलते सुभाष चंद्र बोस को उनका उचित समर्थन न मिला। और इसी के कारण नेताजी ने इस्तीफा दे दिया था।
मेरे प्रिय नेताजी की मृत्यु
भारतीय राष्ट्रीय सेना ने भारत के उत्तर -पूर्वी भागो पर हमला किया था। इस हमले का नेतृत्व सुभाष चंद्र बोस कर रहे थे। आई-एन-ए कुछ हिस्सा लेने में सफल रहे। सुभाष चंद्र बोस जी ने आत्मसमर्पण करने से मना कर दिया।
नेताजी विमान में बच कर निकल रहे थे कि कुछ तकनीकी खराबी की वजह से, विमान संभवतः दुर्घटना का शिकार हो गया। ऐसा कहा जाता है कि 18 अगस्त 1945 को सुभाष चंद्र बोस की मृत्यु हो गई थी। हालाकि इनकी मृत्यु को लेकर आज भी संदेह बरकरार है।
आजाद हिंद फौज का गठन
मेरे प्रिय नेता सुभाष चंद्र बोस कांग्रेस की विचारधाराएं से कुछ हद तक असहमत थे। उन्होंने अहिंसा का मार्ग ना अपनाकर आजाद हिंद फौज का गठन किया था। भारतीय देशवासियों ने सुभाष चंद्र बोस की फौज के गठन में काफी सहायता की थी।
निष्कर्ष
मेरे प्रिय नेता सुभाष चंद्र बोस जैसे महान देशभक्त नेता खोने से पूरे भारतवर्ष के लोगो को काफी धक्का लगा था। नेताजी ने अपना पूरा जीवन देश को आजाद कराने में लगा दिया।आज हम जो अमन और शांति से भारत वर्ष में जी रहे है, उसमे इनकी बहुत बड़ी कुर्बानी शामिल है। इसलिए यह बेहद आवश्यक है कि हम उनका अपने जीवन में अनुकरण करे।
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तो यह था मेरा प्रिय नेता पर निबंध (Mera Priya Neta Essay In Hindi), आशा करता हूं कि मेरा प्रिय नेता पर हिंदी में लिखा निबंध (Hindi Essay On Mera Priya Neta) आपको पसंद आया होगा। अगर आपको यह लेख अच्छा लगा है, तो इस लेख को सभी के साथ शेयर करे।