सिख गुरु की बलिदानी परंपरा पर निबंध (Sikh Guru Ki Balidani Parampara Essay In Hindi)

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सिख गुरु की बलिदानी परंपरा पर निबंध (Sikh Guru Ki Balidani Parampara Essay In Hindi)


प्रस्तावना

हमारे देश में सिख गुरुओं ने शान्ति, अच्छी विचारधारा और एकता का प्रचार प्रसार किया। सिख गुरुओं की लोकप्रियता के बारे में सभी वाकिफ है। सिख गुरुओं के त्याग अर्थात बलिदान को हम कभी भुला नहीं सकते है। सिख गुरुओं का सम्मान सभी धर्म के अनुयायी करते है।

सर्वप्रथम गुरु नानक जी ने इस धर्म का प्रचार प्रसार किया था। सिख गुरु ने हमेशा सत्य का मार्ग अपनाया और धर्म की रक्षा के लिए बलिदान भी दिए। अपने आदर्शो को विकसित करने के लिए ऐसे कई सारे त्याग उन्होंने किये। सत्य के मार्ग पर आगे चलते हुए सबको कई सारे त्याग करने पड़ते है।

गुरु नानक जी अपने सिख धर्म के प्रचार प्रसार के लिए काफी जगह गए और लोगो को शान्ति का पाठ पढ़ाया। सिख धर्म के कई गुरु ऐसे है, जिन्होंने अपने जान की परवाह किये बिना धर्म का प्रचार प्रसार किया।

गुरु अर्जुन का योगदान

देश में सिखो ने ऐसे धर्म का प्रचार किया कि अन्य धर्म के लोग भी उनसे प्रभावित हुए। गुरु अर्जुन का वध मुग़ल वंश के राजा जहांगीर ने किया था। गुरु अर्जुन ने सिख धर्म का लोगो में प्रचार किया था। सिख संस्कृति को गुरु जी ने घर-घर तक पहुंचाने के लिए बहुत प्रयास किए।

गुरु दरबार की निर्माण व्यवस्था में उनका भरपूर योगदान रहा है। ग्रंथ साहिब के संपादन को लेकर कुछ असामाजिक तत्वों ने अकबर बादशाह के पास यह शिकायत की थी। यह कहा गया था कि ग्रंथ में इस्लाम के खिलाफ लिखा गया है।

मगर यह बात झूठी निकली और बाद में अकबर को इसकी अच्छाई का पता चला। जहांगीर के कहने पर उनकी निर्मम हत्या की गयी थी। गुरु अर्जुन देव जो सिख धर्म के पांचवे गुरु थे, उन्होंने जहांगीर के साथ समझौता नहीं किया।

सिख धर्म के गुरु मुग़ल वंश के समक्ष कभी नहीं झुके और उनका निडर होकर सामना किया। इसके संग ही गुरू जी ने शहादतों की उस महान परंपरा का आरम्भ किया था, जिसमें आगे चलकर सिखों ने भी अपना भरपूर योगदान दिया था।

गुरु अर्जुन देव जी की अद्भुत क्षमता और उनका योगदान

गुरु अर्जुन देव जी ने गुरु ग्रन्थ साहिब का सम्पादन किया था। यह मानवता और एकता के प्रेरणादायक स्रोत के रूप में स्थापित किया गया। गुरु अर्जुन देव में अद्भुत और अद्वितीय क्षमता थी, जिसने सिख धर्म को और अधिक प्रभावशाली और शक्तिशाली बना दिया था। गुरु जी के प्रति इतना सम्मान और सिख धर्म की प्रगति कुछ लोगो को सहन नहीं हुयी। उनका योगदान यादगार रहेगा।

गुरूजी के खिलाफ षड़यंत्र

प्रिथीचंद जो गुरूजी के भाई थे, लेकिन वह अपने भाई से ईर्ष्या में जल रहे थे। उनके पिता ने उन्हें गुरु जी के पद पर नहीं बिठाया था। इसलिए वह हर समय अपने भाई अर्जुन देव जी का बुरा चाहते थे।

उन्होंने लाहौर के नवाब को गुरु जी के विरुद्ध भड़काना शुरू कर दिया था। लाहौर के दीवान चंदू ने भी उनके खिलाफ गलत बातें फैला रखी थी। उस समय मुगलो का शासन हुआ करता था।

अकबर की मौत के बाद जहांगीर उनके गद्दी पर बैठे। जहांगीर ने अपनी आत्मकथा तुजक ए जहांगीरी में सिख धर्म के विरुद्ध बातें लिखी और गलत शब्दों का उपयोग किया। सम्राट अकबर के शासन में ऐसा कुछ नहीं हुआ था। वह धर्म निरपेक्षता पर ज़ोर देते थे। जहांगीर को कुछ लोग गुरु जी के खिलाफ भड़काने लगे।

जहांगीर का षड़यंत्र

जहांगीर के पुत्र खुसरो ने अपने पिता के विरुद्ध आवाज़ उठायी। जहांगीर ने अपने बेटे को गिरफ्तार करने का आदेश दे दिया। खुसरो गुरु देव के पास पहुंचा और गुरूजी ने अपने धार्मिक परंपरा के अनुसार उसे आशीर्वाद दिया। यह सब देखकर जहांगीर आग बबूला हो गया और गलत आरोप गुरु जी पर लगाए।

जहांगीर ने सबको यह बात बतायी कि गुरूजी के कहने पर खुसरो उसके खिलाफ गए। गुरूजी अपनी जगह हरिगोबिन्द जी को सौंपकर चले गए। जहांगीर ने गुरूजी को परेशान करने के लिए चंदू का सहारा लिया।

चंदू ने गुरूजी के समक्ष शर्त रखी कि वह अपने ग्रन्थ में कुछ परिवर्तन करे। गुरु जी ने उनकी बात स्वीकार नहीं की और उन्हें काफी कष्ट सहन करने पड़े। गुरु जी को बुरी तरीके से यातनाएं दी गयी और पांच दिन तक उन्होंने अपने ऊपर जुल्म सहे। उसके बाद गुरूजी के शरीर को नदी में बहा दिया गया। गुरूजी के इन बलिदानो को लोग आज भी याद करते है।

सिख गुरु तेग बहादुर सिंह का त्याग

सिख गुरुओं की यही परंपरा थी कि वह किसी के सामने अपना सर नहीं झुकाते थे। सिख गुरु को औरंगज़ेब ने मज़बूर किया था कि वह इस्लाम धर्म को अपनाये। तेग बहादुर सिंह जी ने उनकी बात को स्वीकार नहीं किया था। उन्होंने औरंगज़ेब के नापाक इरादों को कामयाब नहीं होने दिया।

औरंगज़ेब ने कहा या तो वह इस्लाम धर्म को अपनाये अथवा प्राणो की आहुति देने के लिए तैयार हो जाए। फिर औरंगज़ेब ने उन्हें मार दिया। तेग बहादुर सिंह की तरह गुरु गोविन्द सिंह ने भी देश की शान्ति, एकता और सुरक्षा के अनुसार अपने धर्म का निर्माण किया था। जिसे देखकर तब के मुसलमान भी डर गए थे।

गुरु गोविन्द सिंह जी के सैनिक संगठनों ने मुसलमानो द्वारा किये गए जुल्मो को दूर करने का प्रयास किया। ऐसे हालातो में कई सैनिक भी मारे गए।

सिख धर्म और देश के प्रगति में उनकी भूमिका

जब मुगलो के शासको ने काफी अत्याचार करने आरम्भ कर दिए थे। तब महान खालसा की स्थापना की गयी थी। गुरूजी अर्जुन देव जी ने सिख धर्म के समस्त गुरुओं के महान विचारो और उपदेशो को ग्रन्थ में स्थान दिया था।

गुरु गोबिंद सिंह जी की महान रचनाएं सिख साहित्य में विशेष माईने रखती है। बलिदानी परंपरा के दौरान सिख धर्म के अनुयायिओं ने अपने नाम के आगे सिंह लगाना आरम्भ कर दिया था।

गुरु गोबिंद सिंह ने अपने त्याग से सिख धर्म को महान धर्म बनाने में काफी योगदान दिया। वे बेहद साहसी और निडर थे। उनके छत्रछाया में काफी युद्ध लड़े गए। उन्होंने सिख धर्म के अनुयायियों के अंदर निडरता और हिम्मत की लौह जलाई थी। वह कठिन परिस्थिति में देश की सुरक्षा करने में तत्पर रहते थे।

निष्कर्ष

गुरु जी ने अनगिनत कष्ट सहे और अपने धर्म, राष्ट्र की रक्षा की। सिख धर्म की बलिदानी परंपरा के विषय में हम सभी अवगत है। सिखो की बलिदानी परंपरा की सराहना सभी करते है। उन्होंने स्वतंत्रता संग्राम में भी काफी योगदान दिया था। कई सिखो को आगे चलकर अपने प्राण गवाने पड़े, लेकिन फिर भी उनका हौसला और त्याग करने की परंपरा चलती रही।


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