गाँधीजी की आत्मकथा निबंध (Autobiography Of Mahatma Gandhi Hindi Essay)

आज हम गाँधीजी की आत्मकथा पर निबंध (Essay On Autobiography Of Mahatma Gandhi In Hindi) लिखेंगे। गाँधीजी की आत्मकथा पर लिखा यह निबंध बच्चो (kids) और class 1, 2, 3, 4, 5, 6, 7, 8, 9, 10, 11, 12 और कॉलेज के विद्यार्थियों के लिए लिखा गया है।

गाँधीजी की आत्मकथा पर लिखा हुआ यह निबंध (Essay On Autobiography Of Mahatma Gandhi In Hindi) आप अपने स्कूल या फिर कॉलेज प्रोजेक्ट के लिए इस्तेमाल कर सकते है। आपको हमारे इस वेबसाइट पर और भी कई विषयो पर हिंदी में निबंध मिलेंगे, जिन्हे आप पढ़ सकते है।


गाँधीजी की आत्मकथा पर निबंध (Autobiography Of Mahatma Gandhi Essay In Hindi)


प्रस्तावना

गांधी जी देश के राष्ट्रपिता कहे जाते है। उन्हें फादर ऑफ़ नेशन कहा जाता है। देश अंग्रेज़ो की गुलामी के जंजीरो से २०० वर्षो तक बंधा हुआ था। देश को स्वतंत्र कराने के लिए कई स्वतंत्रता सेनानियों ने कई बलिदान दिए। गांधी जी भी उन्ही में से एक है।

भारत को स्वतंत्रता दिलाने के लिए गाँधी जी ने कई बलिदान किये थे। उन्होंने खेड़ा आंदोलन का नेतृत्व किया। उन्होंने अंग्रेज़ो के खिलाफ कई आंदोलनों का नेतृत्व किया और देश को आज़ाद करवाया। आज भी लोग महात्मा गांधी पर मन से श्रद्धा रखते है और दो अक्टूबर को गांधी जयंती मनाते है।

उन्होंने 1920 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का नेतृत्व संभाला। उन्होंने हमेशा अहिंसा और सच्चाई का मार्ग चुना, जिसकी वजह से उन्हें महात्मा का नाम दिया गया। वह जब तक जीवित रहे उन्होंने देश की सेवा की। आज मैं गांधी जी की आवाज बनकर उनकी आत्मकथा लिखने जा रहा हूँ।

मेरे माता पिता

मेरा जन्म २ अक्टूबर सन 1869 को हुआ था। मेरा जन्म गुजरात के पोरबंदर में हुआ था। मेरे माता का नाम पुतली बाई था। वह स्वभाव की बहुत अच्छी थी। मेरी माँ धार्मिक विचारो की महिला थी।

वह परिवार की भलाई के लिए व्रत रखती थी और जब कोई भी बीमार पड़ता था, तो उसकी निरंतर सेवा करती थी। मेरे पिता का नाम करमचंद गाँधी था। मेरे पिता राजकोट के दीवान थे। मेरे जीवन में माँ की अहमियत अधिक रही थी।

औसत दर्जे के छात्र

मैं पढ़ाई में ठीक ठाक था। मैं एक अच्छे और सुप्रतिष्ठित परिवार से था। मैं वैष्णव परिवार से था। मैं पशुओं को तकलीफ में नहीं देख सकता था। मेरा विवाह तेरह साल की उम्र में कस्तूरबा से हो गया था। मेरा परिवार चाहता था कि मैं वकील बनूँ।

मुझे उच्च शिक्षा के लिए संबलदास कॉलेज भेजा गया, जो बंबई विश्वविद्यालय का एक अंग था। मुझे विदेश में उच्च शिक्षा के लिए जाने का अवसर मिला और यूनिवर्सिटी कॉलेज लंदन में प्रवेश लिया।

इससे मुझे बहुत ख़ुशी हुयी और मैं विदेश में शराब और मांस जैसे चीज़ो से दूर रहता था। मुझे गुजराती भाषा से अंग्रेजी भाषा में जाने की वजह से व्याख्यानों को समझने में वक़्त लगता था।

श्रवण कुमार से प्रेरित

मेरे पिताजी श्रवण कुमार की किताब खरीद कर लाये थे। इसका असर मुझ पर और मेरे जीवन पर पड़ा। मैं सत्यवादी हरिश्चंद्र के नाटक से बड़ा प्रभावित हुआ। मैं श्रवण कुमार की तरह बनना चाहता हूँ। मुझे उनके कहानी से यह प्रेरणा मिली कि मुझे चाहे जिंदगी में कितने ही कष्ट उठाने पड़े, मैं सत्य का साथ कभी नहीं छोडूंगा।

जब मैं विद्यार्थी था

मैं जब विद्यार्थी था तो पढ़ाई के साथ अन्य सदस्यों के घरेलू कामो में मदद करता था। सबकी सेवा करना मेरा परम कर्त्तव्य था। मुझे अकेले सैर करना बेहद पसंद था। मैं हमेशा अपने दिए हुए वादे पर अटल रहता। मैं सदैव पुराने हिन्दू कहानियों को पढ़ता और उनसे प्रेरित होता।

मेरी आगे की शिक्षा

मैंने सन 1887 में मैट्रिक की परीक्षा मुंबई यूनिवर्सिटी से पास की थी। फिर मैंने सामलदास कॉलेज में एडमिशन लिया। मेरा परिवार हमेशा चाहता था कि मैं वकील बनूँ। लेकिन मैं डॉक्टर बनना चाहता था। लेकिन हमारे परिवार में किसी भी प्राणी का चीड़ फाड़ करना बिलकुल मना था। उन्ही मूल्यों की वजह से मैं डॉक्टर नहीं बना।

मेरा पत्नी कस्तूरबा

जब मैं केवल तेरह वर्ष का था, तो उस समय मेरा विवाह कस्तूरबा से कर दिया था। कस्तूरबा हमेशा मेरे साथ कदम से कदम मिलाकर चली। कस्तूरबा एक साहसी महिला थी और जीवन के सभी संघर्षो में उसने मेरा साथ दिया।

कस्तूरबा ने एक माँ और पत्नी के रूप में अपनी जिम्मेदारी बखूभी निभायी। मेरे ऊपर परिवार के विचारो और जैन धर्म के नीतियों का काफी असर पड़ा।

लोगो के विचारो को प्रभावित

मैंने भगवद गीता का परिचय लंदन में जाकर दिया और लोगो के विचारो को प्रभावित किया।

नस्ल भेदभाव का विरोध

मैं वकील बनकर अपना कार्य पूरा करने के लिए दक्षिण अफ्रीका गया। वहां जब मैंने प्रथम श्रेणी के रेल की बोगी में घुसने की कोशिश की, तो वहां मुझे जाने देने से मना कर दिया गया। मैं इस तरह के सोच से बड़ा आहात हुआ। इस अन्याय को रोकने के लिए मैंने राजनीतिक आंदोलन की स्थापना की।

मैंने इसके विरुद्ध आवाज़ उठायी और मैंने हमेशा सच का साथ दिया। सन १९०६ में जोहान्सबर्ग में मैंने स्वंग के नेतृत्व में विरोध जनसभा का बंदोबस्त किया। इसके फलस्वरूप में सज़ा भुगतने के लिए तैयार था। मैंने अहिंसा की नीति का अनुकरण किया और यह लड़ाई सात सालो तक चली।

दलित आंदोलन का आरम्भ

मैंने दलित आंदोलन की शुरुआत की थी। इस आंदोलन द्वारा हमने दलितों पर हो रहे अत्याचारों का विरोध किया था। मैंने उस समय लोगो के अंधविश्वासों पर रोक लगाने के लिए इस आंदोलन की शुरुआत की थी।

मैंने दलितों को हरिजन का नाम दिया था। उस समय छुआछूत जैसे अंधविश्वास को मिटाने के लिए इस आंदोलन का आरम्भ किया था। किसानो पर हो रहे अत्याचारों के विरुद्ध आवाज़ उठाने में मैंने अपना सहयोग दिया।

अंग्रेज़ो के विरुद्ध आंदोलन

मैंने अंग्रेज़ो के गुलामी से अपने देश को आजाद करने के लिए कई लड़ाई लड़ी। मैं सन १९१४ में अपने देश लौट आया। दक्षिण अफ्रीका में स्वाभिमान को तकलीफ पहुंचाने वाले आंदोलन से लड़कर अपने देश लौटा। वहाँ पर मैंने भारत के सामाजिक और राजनीतिक बुराईयों को समाप्त करने के लिए कुछ वर्ष अपने आपको तैयार किया।

देश के हालत को समझा। मैंने अंग्रेज़ो द्वारा लागू किये गए गलत कानून को हटाने के लिए विरोध प्रदर्शन किया। अंग्रेज़ो ने व्यक्ति पर बैगर मुक़दमा चलाये, उसे जेल भेजने जैसे कानून को जारी किया था। मैंने सत्याग्रह आंदोलन का ऐलान किया। इस तरह के आंदोलन ने पूरे देश को हिलाकर रख दिया।

मैं हमेशा अहिंसा और सच्चाई के राह पर चला। मैंने अहिंसा और सत्याग्रह के मार्ग पर चलकर विद्रोह जारी रखा और कई आंदोलनों द्वारा अपने देश को स्वतंत्र कराने का पूरा प्रयास किया। मैंने दांडी यात्रा, भारत छोड़ो आंदोलन, असहयोग आंदोलन किये और अंग्रेज़ो को उनकी सही जगह दिखाई।

मैं असहयोग आंदोलन के द्वारा देश में उपनिवेशवाद को खत्म करना चाहता था। मैंने देश को स्वाधीन कराने के लिए कई आंदोलन किए। इसके लिए मुझे कई बार जेल जाना पड़ा। मैंने स्वतंत्रता सेनानियों और अन्य देशभक्तो से मिलकर देश को स्वतंत्र करवाया। मैंने तब तक प्यास किया, जब तक देश स्वतंत्र नहीं हुआ। मैं एक सच्चा देशभक्त हूँ।

मैंने सन १९४२ को अंग्रेज़ो के विरुद्ध भारत छोड़ो आंदोलन का ऐलान किया था। इसके लिए मुझे जेल जाना पड़ा था। मैंने और सभी स्वतंत्रता सेनानियों के प्रयास से देश 15 अगस्त 1947 को स्वतंत्र हुआ।

अहिंसा और सत्याग्रह की राह

मैंने सदैव लोगो को अहिंसा और सचाई के मार्ग पर चलने को कहा और देश को आखिर में गुलामी की इस तकलीफ से आज़ाद करवाया। सन १९३० को मैं साबरमती आश्रम से दांडी गाँव तक पैदल चला। मैंने नमक बनाकर ब्रिटिश सरकार को ललकारा। इसे नमक सत्याग्रह के नाम से लोग जानते है।

निष्कर्ष

गांधी जी हमेशा लोगो को अहिंसा के राह पर चलने के लिए कहते थे और वह अहिंसा पर यकीन रखते थे। गाँधीजी ने देश को पराधीनता की बेड़ियों से मुक्त कराने के लिए प्रयास किये। उनके इन बेहतरीन कार्यो और उनके इन मूल्यों की वजह से उन्हें लोग राष्ट्रपिता कहते है।

कितनी मुसीबतें और दिक्कतें आयी, लेकिन उन्होंने सच्चाई की राह ही चुनी। गांधी जी का निधन 30 जनवरी 1948 को हुआ था। सन 1948 को नथुराम गोडसे ने उनकी गोली मारकर हत्या कर दी थी। इस भयानक हादसे ने गांधी जी को हमसे छीन लिया। गांधी जी की सकारात्मक सोच और उनके विचार आज भी हमारे अंदर जीवित है।


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तो यह था गाँधीजी की आत्मकथा पर निबंध (Gandhiji Ki Atmakatha Essay In Hindi), आशा करता हूं कि गाँधीजी की आत्मकथा पर हिंदी में लिखा निबंध (Hindi Essay On Autobiography Of Mahatma Gandhi) आपको पसंद आया होगा। अगर आपको यह लेख अच्छा लगा है, तो इस लेख को सभी के साथ शेयर करे।

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