गणेश चतुर्थी पर निबंध (Ganesh Chaturthi Essay In Hindi)

आज के इस लेख में हम गणेश चतुर्थी त्यौहार पर निबंध (Essay On Ganesh Chaturthi Festival In Hindi) लिखेंगे। गणेश चतुर्थी पर लिखा यह निबंध बच्चो (kids) और class 1, 2, 3, 4, 5, 6, 7, 8, 9, 10, 11, 12 और कॉलेज के विद्यार्थियों के लिए लिखा गया है।

गणेश चतुर्थी त्यौहार पर लिखा हुआ यह निबंध (Essay On Ganesh Chaturthi In Hindi) आप अपने स्कूल या फिर कॉलेज प्रोजेक्ट के लिए इस्तेमाल कर सकते है। आपको हमारे इस वेबसाइट पर और भी कही विषयो पर हिंदी में निबंध मिलेंगे, जिन्हे आप पढ़ सकते है।


गणेश चतुर्थी त्यौहार पर निबंध (Ganesh Chaturthi Festival Essay In Hindi)


प्रस्तावना

गणेश चतुर्थी के दिन व्रत रखा जाता है ओर उत्सव भी बड़े धूमधाम के साथ ओर हर्षो उल्लास के साथ मनाया जाता है। हमारे देश भारत में इसकी धूम कई दिनों की होती है। जिसे हमारे देश में लोग खुशियो के साथ मनाते है।

पुराणों के अनुसार आज के दिन ही गणेश जी का जन्म हुआ था। जब हम अपने जन्म दिन को धूमधाम से मनाते है, तो वो तो भगवान है। हम सब भगवान की उपासना करने के लिए उसे एक उत्सव का रूप प्रदान करते है ओर उसे बड़े ही धूमधाम से मनाते है।

गणेश चतुर्थी त्यौहार कब मनाया जाता है?

गणेश चतुर्थी या गणेश उत्सव भाद्रपक्ष मास के शुक्लपक्ष की चतुर्थी से गणेश जी की प्रतिमा के स्थापना के बाद से ही शुरू होता है। साथ ही लगातार दस दिन तक यह उत्सव चलता है।गणेश जी के प्रतिमा को घर में रखने के साथ ही बड़े रूप में भी स्थापना करके अनंत चतुदर्शी के दिन गणेश जी की विदाई की जाती है।

गणेश जी के विसर्जन के साथ ही इस उत्सव का अन्त होता है। जो एक प्यारी सी यादे देकर अगले साल आने का एक इंतजार देकर संपन्न होता है।

गणेश चतुर्थी कथानुसार

पौराणिक कथाओ के अनुसार शिव जी ओर माता पार्वती जी का एक पुत्र कार्तिक था। एक समय की बात है, शंकर जी भृमण ध्यान करने कहि गए हुए थे। तब माता पार्वती जी स्नान कक्ष में स्नान करने गयी थी। तो बार-बार कक्ष में कोई प्रवेश द्वार से आ धमकता था, जिससे पार्वती जी परेशान हो गयी।

इसके लिए उन्होंने एक उपाय सोचा, उन्होंने अपनी त्वचा के मल से एक सुंदर तंदुरुस्त बालक की मूर्ति बनाई ओर उसे सजीव कर दिया। वह सजीव बालक माता पार्वती जी ने बनाया और उसका नाम उन्होंने गणेश रखा।

उसके बाद गणेश जी माता पार्वती के कक्ष के बाहर पहरा देने लगे। फिर एक दिन कई सालो बाद भगवान शंकर आये, तो शंकर जी का प्यारा नन्दी कक्ष के समीप जाने लगा। यह गणेश जी को पसन्द नही आया, दोनों में युद्ध होने लगा। गणेश जी ने नंदी को हरा दिया और उसके बाद शिव जी के बहुत से सेवक को भी गणेश जी ने हरा दिया।

उसके बाद गणेश जी से कई देवतागण युद्ध करने गए, पर गणेश जी ने उन्हें भी हरा दिया। उन सब को गणेश जी ने बुरी तरह पराजित कर दिया और ये सब देखकर शंकर जी को बहुत क्रोध आया ओर वो स्वयं गणेश जी के साथ युद्ध करने गए।

तब शंकर जी ने पूछा तुम कोन हो तब गणेश जी ने कहा में माता पार्वती जी का पुत्र हूँ। तब शिव जी ने प्यार से कहा की मुझे कक्ष में जाने दो। तब गणेश जी ने कहा की अभी माता स्नान कर रही है ओर मैं किसी को भी अन्दर नही जाने दे सकता।

तब शिव जी को गुस्सा आया ओर उन्होंने गणेश जी की गर्दन धड़ से अलग कर दी। उसके बाद पार्वती जी ने बाहर आकर देखा तो गणेश जी को मृत देख विलाप करने लगी। तब उन्होंने शिव जी को सब बताया ओर कहा की ये हमारा ही पुत्र है और शिव जी से गणेश जी को जीवित करने को कहने लगी।

उस वक़्त ब्रह्मा जी, विष्णु जी ओर सभी देवताओ ने ओर शिव जी ने कहा की जो भी पहला प्राणी मिले उसकी गर्दन काटकर अगर गणेश जी की गर्दन से जोड़ दिया जाए तो वो फिर से जीवित हो जाएंगे। इस प्रकार सभी देवतागण गर्दन की तलाश में निकल गए। सबसे पहले देवताओ को हाथी दिखा, तो वे हाथी की गर्दन काट कर ले आए।

फिर उस हाथी के गर्दन को गणेश जी के गर्दन पर लगा दिया गया ओर गणेश जी जीवित हो गए। उनके जीवित होते ही शिव जी ने उन्हें प्यार किया ओर आशीर्वाद दिया की सबसे पहले धरती पर ओर सभी जगह तुम्हारी ही पूजा की जाएंगी ओर यदि ऐसा नही हुआ तो कोई भी पूजा सम्पूर्ण नही कहलाएंगी।

तब से ही सर्वप्रथम पूज्नीय गणेश जी बन गए है ओर तब से ही गणेश जी का नाम गजानन विनायक रखा गया। आज भी हम कोई पूजा करते है तो सबसे पहले गणेश जी के पूजा से ही पूजा का आरंभ करते है।

गणेश जी के नाम

गणेश जी के अनेक नाम है, जैसे एकदंत, लम्बोदर, वक्रतुण्ड, कर्षनपिंगये, विकटमेवाय, गणाध्यक्ष,भालचन्द्र, गजानन, विघ्ननाश, कपिल, गजकर्णक, धूम्रकेतु। इस प्रकार गणेश जी के 108 नाम है, जिनका जाप ओर प्रतिदिन इनके नामो की उपासना करने से सभी प्रकार की विपत्ति ओर दुख दर्द का नाश होता है।

जब माँ पार्वती ने गणेश जी को अपनी शक्ति से जन्म दिया तब सभी देवताओ ने गणेश जी को आशीर्वाद के रूप में कई शक्तियां प्रदान की थी। महादेव जी ओर अन्य देवताओ ने ये भी कहा की कोई भी शुभकार्य में सर्वप्रथम गणेश जी की उपासना की जाएगी तभी पूजा सम्पन मानी जाएगी। इसी वरदान स्वरूप हम सर्वप्रथम गणेश जी की पूजा किसी भी पूजापाठ से पहले करते है।

गणेश उत्सव की तैयारी

गणेश उत्सव की तैयारी बहुत समय पहले से ही शुरू कर दी जाती है। मिट्टी के गणेश जी की प्रतिमा को बनाने वाले कारीगर अपने कार्य में लग जाते है। छोटे से बड़े सभी तरह की प्रतिमा कारीगर बनाते है। साथी ही अलग-अलग मुद्राओ की खूबसूरत मुर्तिया बनाई जाती है ओर इनकी स्थापना की जाती है।

पंडाल-झांकी

गणेश उत्सव की तैयारी बहुत जोर शोर से की जाती है। जगह-जगह झांकी बनाई जाती है, बड़ी-बड़ी झांकी के लिए दूर-दूर से कारीगर आते है ओर बड़ी-बड़ी झांकी बनाई जाती है। यह काफी सुंदर-सुंदर झांकिया होती है और इनकी रंग बिरंगी चीजो से सजावट होती है।

मंदिरो के अनुसार ही किसी-किसी झांकी को प्रतिरूप दिया जाता है। टैंट, स्पीकर, रंग बिरंगे नकली-असली फूल से सजावट की जाती है। कभी-कभी तो किचन के समान जैसे बर्तन आदि का प्रयोग, ड्राय फ़ूड का उपयोग करके सभी अपने अनुसार अपनी-अपनी झांकी की सजावट करते है ओर गणेश जी की प्रतिमा बनवाते है।

गणेश जी के दिनों में नाच-गाने जैसे कार्यक्रम रोज़ ही रखे जाते है और गणेश उत्सव को भव्य तरीके से मनाया जाता है।

गणेश जी का वाहन

सभी देवी देवताओ का वाहन होता है। गणेश जी का वाहन मूषक (चूहा) है जो पहले एक दानव था। उसका नाम गजमुखासुर था, वह एक असुर दानव था। वो सभी पर अत्याचार करता था। तब गणेश जी ने उसे दंड देने की सोची, पर वह गणेश जी के डर से एक मूषक (चूहा) बन गया ओर वह गणेश जी से कहने लगा की आप जो बोलोगे में वही करूँगा।

तब गणेश जी ने उसे अपना वाहन बना लिया ओर उस पर बैठकर सवारी करने लगे, तब से गणेश जी का वाहन मूषक (चूहा) बन गया है।

गणेश उत्सव के दिन

गणेश उत्सव के दिन बाजार में रंग-बिरंगी मुर्तिया बेची जाती है। इन्हें ढक कर घर लाया जाता है ओर स्थापना वाली जगह पर ही इनके उप्पर से चुनरी हटाई जाती है। फिर पूजा अर्चना पूरी विधि-विधान से की जाती है। मन्त्र ओर श्लोक गणेश वंदना करके गणेश जी की एक जगह स्थापना की जाती है।

सभी नए वस्त्र ओर साफ सुथरे वस्त्र को पहनते है। उसके बाद गणेश जी की आरती की जाती है। उसके उपरांत प्रसाद वितरित किया जाता है। माना जाता है की गणपति जी को मोदक ओर लड्डू अति प्रिय है। इसलिए इसी का गणपति महाराज को भोग लगाया जाता है।

फिर सभी में प्रसाद वितरित किया जाता है। ये परिक्रिया सभी घरो में प्रतिदिन की जाती है ओर घरो में भी सजावट की जाती है। नियम से पूजा पाठ ओर आरती करते है ओर साथ ही मोदक ओर लड्डू का प्रसाद खाया जाता है। इस प्रकार रोज दस दिनों तक गणपति महाराज की पूजा-अर्चना की जाती है।

गणेश जी का श्रृंगार जनेऊ, हल्दी, कुमकुम माथे में लगा कर किया जाता है। अगरबत्ती, धूपबत्ती, फूल आदि का इस्तेमाल किया जाता है। पण्डित जी पूजा पाठ करवाते है। जहां झांकिया बनाई जाती है, वहां कई प्रकार के कार्यक्रम करवाये जाते है।

महिलाएं भजन और कीर्तन, बच्चे डांस, खेल, गीत ओर अन्य गतिविधिया करते है। गणेश उत्सव से जो चन्दा एकत्रित किया जाता है, उससे मुर्तिया, प्रसाद ओर अन्य चीजे खरीदी जाती है। बड़ी झांकियो के लिए ज्यादा चन्दा एकत्रित किया जाता है, जिससे बड़ी झांकिया लगाई जाती है।

गणेश जी का महत्व महाराष्ट्र प्रान्त में

गणेश उत्सव का सबसे अधिक महत्व महाराष्ट्र प्रान्त में है। महाराष्ट्र में गणेश जी की बहुत बड़ी-बड़ी मुर्तिया बनाई जाती है ओर डोल ग्यारस के दिन मूर्ति विसर्जन किया जाता है। गणेश चतुर्थी के मोके पर भक्त दर्शन के लिए दूर-दूर से महाराष्ट्र जाते है।

कहते है यहां मौजूद मन्दिरो में गणपति जी का वास है। इसलिए यहां कोई भी मुराद मांगी जाए तो वह अवश्य ही पूरी होती है। महाराष्ट्र प्रान्त में गणेश उत्सव बड़े ही धूमधाम के साथ मनाया जाता है।

अनंत चतुर्दर्शी विसर्जन

विसर्जन के दिन मूर्तियों की विधि विधान के साथ पूजा पाठ किया जाता है। गणपति बप्पा मोरया अगले बरष तू जल्दी आ कह कर गणेश जी को तलाब में विसर्जन किया जाता है।महाराष्ट्र में तो समुद्र में मूर्ति विसर्जन किया जाता है। वहां बहुत धूम धमाके के साथ पूजा की जाती है।

सड़क गली मोहल्लों में भीड़ लग जाती है। वहा बहुत बड़ा उत्सव का माहौल रहता है। गणेश उत्सव पर झांकिया निकाली जाती है। छोटी-छोटी ओर बड़ी से बड़ी झांकिया भी बहुत सुंदर होती है। बाद में उन ख़ूबसूरत झांकियो में से किसी झांकी को बड़ा सा इनाम भी दिया जाता है। पूरे दस दिन ये चहल-पहल हर जगह देखने को मिलती है।

उपसंहार

बुद्धि -विद्या के देव जिनकी माता पार्वती ओर पिता महादेव है, जिन्होंने अपने माता पिता की पूरी परिक्रमा एक बार में ही करके सिद्ध किया की माता पिता ही सर्वक्षेष्ठ होते है। जिनका वाहन चूहा है ओर जिनको खाने में लड्डू पसंद है, ऐसे भगवान गणपति का उत्सव हम सब को खुशिया ओर हर्षोल्लास के साथ मनाना चाहिए।


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तो यह था गणेश चतुर्थी पर निबंध, आशा करता हूं कि गणेश चतुर्थी पर हिंदी में लिखा निबंध (Hindi Essay On Ganesh Chaturthi) आपको पसंद आया होगा। अगर आपको यह लेख अच्छा लगा है, तो इस लेख को सभी के साथ शेयर करे।

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