पर्यावरण प्रदूषण पर निबंध (Environment Pollution Essay In Hindi)

आज हम पर्यावरण प्रदूषण पर निबंध (Essay On Environment Pollution In Hindi) लिखेंगे। पर्यावरण प्रदूषण पर लिखा यह निबंध बच्चो (kids) और class 1, 2, 3, 4, 5, 6, 7, 8, 9, 10, 11, 12 और कॉलेज के विद्यार्थियों के लिए लिखा गया है।

पर्यावरण प्रदूषण पर लिखा हुआ यह निबंध (Essay On Paryavaran Pradushan In Hindi) आप अपने स्कूल या फिर कॉलेज प्रोजेक्ट के लिए इस्तेमाल कर सकते है। आपको हमारे इस वेबसाइट पर और भी कही विषयो पर हिंदी में निबंध मिलेंगे, जिन्हे आप पढ़ सकते है।


पर्यावरण प्रदूषण पर निबंध (Environment Pollution Essay In Hindi)


प्रस्तावना

मनुष्य सभ्यता को आज सबसे बड़ा खतरा है। मनुष्य के आस पास का समस्त वातावरण उसके प्रयोग में आने वाला समूचा जल भंडार, उसके सांस लेने के लिए वायु, अन्न पैदा करने वाली धरती और यहां तक की अंतरिक्ष का सारा विस्तार भी स्वयं मनुष्य द्वारा दूषित कर दिया गया है।

मनुष्य अपने आनंद और उल्लास के लिए प्राकृतिक साधनो का पूर्णतयः दोहन करना चाहता है। यही कारण है की आज प्रदूषण की समस्या विकराल रूप में आ खड़ी हुई है। अतएव प्रदूषण की विभिन्न समस्याओ और कारण पर प्रकाश डालना अतिआवश्यक हो गया है।

और यह कारक हमारे वातावरण में हमे विविध प्रकार से देखने को मिल जाते है। हमे हमारे वातावरण का सरंक्षण स्वयं करना होगा, ताकि हम हमारे वातावरण में स्वच्छ हवा को आक्सीजन के रूप में ले सके। ताकि हमारा जीवन स्वच्छ हवा में प्रफुल्लित और प्रदूषण रहित हो सके।

पर्यावरण की परिभषा

वैसे तो कई महान विद्वानों ने पर्यावरण प्रदूषण की परिभष दी है। परन्तु हम यहां हमारे समझ के अनुसार बहुत ही सरल परिभषा का उल्लेख करेंगे जो इस प्रकार है। पर्यावरण परइ+आवरण इन दो शब्दों से मिलकर बना है। जिसे हम हमारे शब्दों में पर्यावरण कहते है।

पर्यावरण का अर्थ

पर्यावरण वह कहलाता है। जिसमे किसी भी घटको में होने वाला अवांछनीय परिवर्तन, जिससे हमारे जीवन में एक प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है, उसे हम पर्यावरण कहते है। और इस पर्यावरण में उधोग, नगर और मानव विकास की जो प्रक्रिया होती है, उसका महत्वपूर्ण योगदान रहता है। इस पर्यावरण प्रदूषण को हम कई रूपों में बाँट सकते है।

पर्यावरण को प्रदूषित करने वाला मनुष्य

पर्यावरण को प्रदूषित करने वाले कोई उधोग, जल, वायु  या कुछ और नहीं है हम मनुष्य ही है। जो इसका सबसे बड़ा कारण है। मनुष्य के चलते ही ये सारे प्रदूषण पनपते है। हम ही है जो उधोगो में काम करते है और हम ही है जो इसके जहरीले धुएं को हवा में घोलते है।

कोई और नहीं आता इस् प्रदूषण को फैलाने, ये हमारा दिमाग ही है जो वो गलतिया करता है। जो जीवन में हमे केवल नुक्सान ही पहुंचाता है। मनुष्य जंहा दुनिया का सबसे बुद्धिमान और शक्तिशाली प्राणी है।

वही वह अपने अदूरदर्शी कृत्य से अपने को सर्वाधिक मुर्ख साबित करने पर तुला है। वर्तमान में ऐसा ही है, जैसे कोई मुर्ख व्यक्ति उसी ड़ाल को काटे जिस डाल पर वह खुद बैठा हो। सोचिये मूर्खता की कितनी बड़ी निशानी हम स्वयं मनुष्य ही है।

मनुष्य मनोवैज्ञानिक रूप से इस तथ्य को मुश्किल से ही समझकर व्यवहार में लाता है। इसी प्रकार किसी भी कर्म को समय के आधार पर दो रूपों में बाटा है।

(१) तुरंत आने वाले परिणाम
(२) देर से आने वाले परिणाम

वर्तमान में विकसित और विकाशशील देश विकास के नाम पर जो कुछ भी कर रहे है, उससे सार्वजनिक विकास नहीं हुआ। हम कह सकते बल्कि इससे हमारा विश्व गहरी जलवायु परिवर्तन के संकट और असमय आनेवाले प्रदूषण की और बढ़ रहा है।

इसलिए आवश्यक है की जीवन के अस्तित्व को बचाने और उसके अस्तित्व की रक्षा करने के लिए हम अथक प्रयास करे और ये प्रयास व्यक्तिगत, सामाजिक और राष्टीय रूप से होना जरूरी है।

पर्यावरण प्रदूषण के कारण

पर्यावरण प्रदूषण के कई कारण है, जैसे वातावरण, वायुमंडल, वन, मशीनीकरण, औधोगिकीकरण, प्रकाश व् ध्वनि वातावरण।

वातावरण

औधोगिकरण के इस अंधी दौड़ में संसार का कोई भी राष्ट्र पीछे नहीं रहना चाहता। विलासता के साधनो का उत्पादन भी खूब कर रहा है। धरती की सारी सम्पदा को उसके गर्भ में उलीच कर बाहर लाया जा रहा है। वह दिन भी आएगा जब हम सृष्टि की सारी प्राकृतिक सम्पदाओं से हाथ धो चुके होंगे।

यह दिन मनुष्य जाती के लिए निश्चय ही बड़ा मनहूस होगा। परन्तु इससे भी बढ़कर हानि तब होंगी जब धरती के भीतर का सारा खनिज, तेल, कोयला तथा सब धातुएं गैसों के रूप में वायुमंडल में प्रवेश कर धरती पर रहने वाले प्राणियों का जीना ही दुर्लभ कर देंगे।

नदिया और समुद्र हानिकारक तत्वों से भरे पड़े है। दिन रात चलने वाले कारखानों का करोड़ो अरबो गेलन गंदा पानी नदियों तथा समुद्रो में जा रहा है।

वायुमंडल

वायुमंडल में गुजर कर आने वाली वर्षा भी विषैली बन जाती है। धुंए के बादल उगने वाली मिलो का रासायनिक कचरा, पानी के द्वारा सीधे तौर पर हमारे शरीर में प्रवेश कर रहा है।इसके अतिरिक्त भारी उधोगो द्वारा छोड़े गए विषैले तत्व सब्जिया, फलो और अनाजों द्वारा हमारे रक्त में अनेक असाध्य रोग घोल रहे है।

कागज की मिले, चमड़ा बनाने के कारखाने, शक़्कर बनाने के उद्योग, रासायनिक पदार्थ तैयार करने वाले सयंत्र तथा ऐसे ही अनेक उधोग प्रतिदिन करोड़ो लीटर दूषित पानी नदियों में बहाते रहते है और हजारो तन हानिकारक गैसे वायुमंडल में छोड़ते है।

परिणाम हम देख ही रहे है। कैंसर बढ़ रहा है, अनेक प्रकार के ह्रदय रोग बढ़ रहे है, बांकाइट्स और दमे के रोग वृद्धि पर है। अपचन और अतिसार भी बढ़ रहा है। कुष्ठ रोग भी अपने नाना रूपों में प्रकट हो रहा है। इसके अतिरिक्त आज आये दिन नए नए रोग पैदा हो रहे है।

वन

आधुनिक युग में अंधाधुन जंगलो की कटाई से प्रदूषण की समस्या और भी गंभीर हो गई है। पेड़ पौधे हमारे बहुत उपयोगी संगी साथी है, क्युकी ये विषैली गेसो को पचा कर लाभदायक गैस छोड़ते है।

जंगल हमारे लिए भगवान का दिया हुआ एक वरदान है। परन्तु थोड़े समय के लाभ के लिए हम इस वरदान को अभिशाप में बदल रहे है। वृक्ष विष पि कर हमे अमृत देते है। ये वायुमंडल से कार्बन डाई आक्साइड अवशोषित करते है और अन्य हानिकारक गैस कणों को भी चूसते है।

इनकी पत्तियों में पाए जाने वाले वाष्प इस कार्य में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाते है। आज विश्व में व्यापक रूप से पनपने वाले नए नए उधोगो ने इन वृक्षों के जीवन को भी खतरे में डाल दिया है।

मशीनीकरण

आज के युग में जो खेती का मशीनीकरण हो रहा है। उससे भी पर्यावरण का प्रदूषण बढ़ रहा है। खेती से अधिकाधिक उपज लेने के लिए प्रतिवर्ष लाखो टन कीटनाशकों रसायनो और रोग निरोधक ओषधियो का प्रयोग किया जाता है। रासायनिक खाधो का प्रयोग भी दिनों दिन बढ़ रहा है।

इन उपायों से उपज तो बढ़ रही है, परन्तु इस बढ़ती हुई उपज के लिए विश्व मानवता को मोल चुकाना पड़ रहा है। उससे बहुत कम लोग परिचित है। आज हाथ का स्थान मशीने ले रही है। कुटीर उधोग तथा लघु उधोग नष्ट होते जा रहे है और भारी उधोग बढ़ रहे है।

इससे शहरीकरण की प्रवृति को बढ़ावा मिल रहा है। महानगरों के कूड़े कचरे और गंदे पानी ने भी प्रदूषण की समस्या को बढ़ाया है। बसों, मोटर, कारो, स्कूटर तथा अन्य अनेक प्रकार के वाहनों के धुएं ने तो शहरी लोगो का जीना मुश्किल कर दिया है।

ओधोगिकीकरण

औधोगिकीकरण ने हमारे रहन सहन में जो बनावटीपन पैदा कर दिया है। उससे भी प्रदूषण को बढ़ावा मिला है। डिब्बा बंद दूध, फल और जूस और रस जमाये हुए वनस्पति तेल और इसके अतिरिक्त दिमागी तनावों तथा अनेक प्रकार के आधुनिक रोगो को दूर करने वाली ओषधियो के निर्माण से, हमारे दिल दिमाग तथा अन्य कोमल अंगो पर बुरा प्रभाव तो पड़ा ही है। इसके अतिरिक्त इस प्रकार के अनावश्यक उत्पादन ने वायुमंडल में विषैले तत्वों को भी बढ़ाया है।

प्रकाश व ध्वनि

प्रदूषण केवल हवा, पानी और खाद पदार्थो में ही पैदा हुआ है। आज तो वास्तव में जीवन का कोई भी क्षेत्र इससे अछूता नहीं। आज प्रकाश और ध्वनि का प्रदूषण भी अपनी चरम सिमा तक पहुंच गया है। नगरीय जीवन में बिजली के प्रकाश का प्रयोग दिनोदिन बढ़ रहा है।

इससे न केवल हमारी आखे खराब हो रही है, बल्कि हमारे दिमाग के कोष भी क्षतिग्रस्त हो रहे है। जरूरत से अधिक प्रकाश हमारे रक्त पर्वाह पर बुरा प्रभाव डालता है और हमारे संवेदन संस्थानों में विभोक्ष पैदा करता है। इसके अतिरिक्त आवाज की बढ़ती हुई मात्रा भी हमारे जीवन को क्षति पहुंचा रही है।

ध्वनि

अत्यधिक शोर किसी भी प्रकार से उचित नहीं है और इस शोर से ना केवल हम मनुष्य, बल्कि निर्दोष जिव जंतु भी इन्हे सहन नहीं कार पाते है। इसमें यातायात के दौरान होने वाला प्रदूषण सबसे ज्यादा घातक होता है। यह मानव जनित प्रदूषण है और इसे कम करना हमारी ही जिम्मेदारी है।

ये प्रदूषण सड़को पर चलने वाले वाहन जैसे रेल, ट्रक, बस या निजी वाहन आदि ध्वनि प्रदूषण फैलाते है। इसके अतिरिक्त फेक्ट्रियो द्वारा उतपन्न ध्वनि, लाउडस्पीकर और अन्य कारण जैसे मकान निर्माण में होने वाली ध्वनि भी अत्यधिक प्रदूषण पहुंचाने के कारण हो सकते है।

इनमे से बहुत से ऐसे कारण है, जिन्हे हम चाह कर भी नहीं रोक सकते, क्युकी वो उनकी जरूरत है। परन्तु कुछ प्रदूषण ऐसे होते है जिन्हे हम कम कर सकते है।

प्रदूषण के लिए ध्वनि का मापन इस प्रकार है। 

ध्वनि को मापने के लिए डेसीबल इकाई का प्रयोग किया जाता है। हम मनुष्य के कान 30 एच जेड से 20000 एच जेड तक की ध्वनि तरंगो के लिए बहुत अधिक संवेदनशील होते है। लेकिन सभी ध्वनिया हम मनुष्य को सुनाई नहीं देती है।

डेसी का अर्थ है १० और वैज्ञानिक ग्रहमबेल के नाम से “बेल “शब्द लिया गया है। हमारे कान की सुनने की क्षमता शून्य से प्रारम्भ होती है और इस हेतु जब हम सोते है, तब हमारे आसपास ३५ डेसीबल से अधिक शोर नहीं होना चाहिए। जब हम जागते है तब ये शोर ४५ डेसीबल से अधिक नहीं होना चाहिए, ये विश्व स्वास्थ संगठन की रिपोर्ट के अनुसार है।

ध्वनि प्रदूषण के कारण

(१) प्राकृतिक शोर
(२) मानवो के कारण होने वाला शोर
(३) उद्योग
(४) परिवहन के साधन
(५) मनोरंजन के साधन
(६) निर्माण कार्य
(७) आतिशबाजी
(८) सांस्कृतिक कार्यक्रम में होने वाला शोर
(९) शादी विवाह में होने वाला शोर
(१०) अन्य कई तरह के होने वाले समारोह से होने वाला शोर
(११) अन्य कारण जैसे पारिवारिक लड़ाई, झगड़े का होने वाला शोर

समाधान

इस सारे प्रदूषण का एक मात्र उपचार है। मानव और प्रकृति के बिच एक संतुलन रहना चाहिए। वनो का रोपण और उनका पालन पोषण इस दिशा में बहुत लाभदायक हो सकता है। इसके अतिरिक्त यदि कुटीर और लघु उद्योगों को बढ़ावा दे और विलासिता की सामग्रियों का कम से कम प्रयोग करे, तो यह समस्या बहुत हद तक हल को सकती है।

आज इस बात की जरूरत है की हम अजन्मे प्रदूषण को पैदा न होने दे और बढ़े हुए प्रदूषण को कम करने का प्रयत्न करे।

पर्यावरण प्रदूषण के स्वरूप

वातावरण में व्याप्त और फैलते हुए प्रदूषण के रूप एक नहीं अनेक है। अमेरिकी राष्ट्रिय विज्ञानं का मानना है की भूमि, जल और वायु के भौतिक, रासायनिक और जैविक गुणों से होने वाला कोई अवांछनीय परिवर्तन ही प्रदूषण कहलाता है।

यह प्रदूषण जिव जंतु, उद्योग, संस्कृति और प्रकृति को बड़ी हानि पहुंचाता है। निरंतर बढ़ती जनसंख्या और वस्तुओ को प्रयोग करने के पश्चात फेंक देने की प्रवृति ने पर्यावरण प्रदूषण को और भी अधिक विकरालता प्रदान की है। पर्यावरण प्रदूषण के रूप एक नहीं अपितु अनेक है, जिनपर प्रकाश सलना विषयानुकूल और प्रासंगिक होंगा।

उपसंहार

प्रदूषण के विकराल कालमुखी दुष्प्रभाव को रोकने के लिए यह नितांत आवश्यक है की, प्रदूषण के कारणों का गलाघोंट कर अंत कर दिया जाये। वायु प्रदूषण के लिए उधोग धंधो की दूषित वायु को वायुमंडल में फैलने ना दे।और इसके लिए उधोगो की चिमनियों पर उपयुक्त फिल्टरो को लगाना चाहिए।

इसके अतिरिक्त परमाणु ऊर्जा से उतपन्न होने वाले वायु प्रदूषण की रोक के लिए अंतराष्ट्रीय ऊर्जा संघ के नियमो का सख्ती से पालन किया जाना चाहिए। पर्यावरण प्रदूषण की रोक, जनसंख्या वृद्धि पर अंकुश लगा कर ही की जा सकती है, प्रदूषण चाहे किसी भी प्रकार का हो, जैसे जल प्रदूषण, भूमि प्रदूषण आदि कई प्रकार के प्रदूषण है।

प्रदूषण हमारे लिए प्राण घातक होते है और इनको कम करने की जरूरत हमारे हाथो में ही है। वरना आप तो देख ही रहे है की आज दिल्ली जैसे बड़े शहर की क्या हालत हो रही है और इसका जिम्मेदार स्वयं मनुष्य ही है।

शहर छोटा या बड़ा होने से कोई फर्क नहीं पड़ता, इसके लिए हमे ही आगे बढ़ना होगा। हम जहा रहते है कम से कम उसे तो हम प्रदूषण रहित रख सकते है। प्रदूषण में वायु प्रदूषण का अहम हिस्सा है, यह सृष्टि और प्रकृति के प्रति सरासर अन्याय और दुःसाहस है।

इसलिए अगर इस के प्रति हम समय रहते हुए कोई गंभीर कदम नहीं उठाते, तो यह कुछ समय बाद हमारे बस में नहीं रहेगा। फिर हमारे कठिन से कठिन प्रयासों को यह ठेंगा दिखाते हुए हमारी जीवन लीला को देखते ही देखते समाप्त कर देगा। इसलिए वक्त रहते हमे सम्भलना होगा और कठोर कानून ही इसकी सबसे बड़ी रोकथाम हो सकती है।


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तो यह था पर्यावरण प्रदूषण पर निबंध, आशा करता हूं कि पर्यावरण प्रदूषण पर हिंदी में लिखा निबंध (Hindi Essay On Environment Pollution) आपको पसंद आया होगा। अगर आपको यह लेख अच्छा लगा है, तो इस लेख को सभी के साथ शेयर करे।

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