फटी पुस्तक की आत्मकथा पर निबंध (Fati Pustak Ki Atmakatha Essay In Hindi)

आज हम फटी पुस्तक की आत्मकथा पर निबंध (Essay On Fati Pustak Ki Atmakatha In Hindi) लिखेंगे। फटी पुस्तक की आत्मकथा पर लिखा यह निबंध बच्चो (kids) और class 1, 2, 3, 4, 5, 6, 7, 8, 9, 10, 11, 12 और कॉलेज के विद्यार्थियों के लिए लिखा गया है।

फटी पुस्तक की आत्मकथा पर लिखा हुआ यह निबंध (Essay On Fati Pustak Ki Atmakatha In Hindi) आप अपने स्कूल या फिर कॉलेज प्रोजेक्ट के लिए इस्तेमाल कर सकते है। आपको हमारे इस वेबसाइट पर और भी कई विषयो पर हिंदी में निबंध मिलेंगे, जिन्हे आप पढ़ सकते है।


फटी पुस्तक की आत्मकथा पर निबंध (Fati Pustak Ki Atmakatha Essay In Hindi)


प्रस्तावना

पुस्तकें लोगो को ज्ञान प्रदान करती है। पुस्तकें हमे सही -गलत, अच्छे -बुरे में फर्क करना सिखाती है। हर क्षेत्र से संबंधित ज्ञान हमे पुस्तकों से प्राप्त होता है। आज मैं एक पुस्तक हूँ और अपनी आत्मकथा सुनाने जा रही हूँ। दुर्भाग्यवश मेरे पन्ने अब फट चुके है। एक लोकप्रिय प्रकाशक की कंपनी में मेरा निर्माण हुआ था। मैं हिंदी साहित्य और व्याकरण का ज्ञान प्रदान करने वाली पुस्तक हूँ।

जिन्दगी में लोग अपनी हर तरह की परीक्षाएं और नौकरी के इंटरव्यू के लिए पुस्तकों से ज्ञान प्राप्त करते है। जब पुस्तक पुरानी हो जाती है तो कहीं ना कहीं उसकी अहमियत खत्म हो जाती है। मगर ऐसा नहीं होना चाहिए। पुस्तकों को अच्छे से संग्रह करके रखना मनुष्यो की जिम्मेदारी है।

प्रकाशक ने किया निर्माण

आज मैं अपनी आपबीती सुनाने जा रही हूँ। जब प्रकाशक ने मेरा निर्माण किया तो उसने सोचा कि मुझे बेचकर उसे पैसे मिलेंगे। मुझे पुस्तक भण्डार नामक दूकान में लाया गया। दरसल दुकानदार ने मुझे प्रकाशक से खरीद लिया था। मैं एक मोटी किताब हूँ। मेरे तकरीबन ४०० पृष्ट है।

मुझसे प्राप्त होता है लोगो को ज्ञान

हिंदी के कई मशहूर कवियों और साहित्यकारों की जीवनी लिखी हुयी है। हिंदी व्याकरण से जुड़े सारे पाठ और विभिन्न तरह के प्रश्न -उत्तर मेरे अंदर मौजूद है। संज्ञा, सर्वनाम, विशेषण, विलोम, पर्यावाची, शब्दकोश से लेकर वाक्य रचना, निबंध, संवाद लेखन और पत्रलेखन तक सारे पाठ मेरे अंदर मौजूद है। बच्चे और शिक्षक भी मुझे पढ़ना चाहते थे। सभी को ज्ञान चाहिए और पुस्तक ज्ञान का भण्डार होती है, यह सब हम जानते है।

मुझे खरीदा गया

पुस्तक भण्डार दुकान से एक आदमी ने मुझे खरीदा। वह एक शिक्षक था। मैं पुस्तकों की दुकान पर अपने दूसरे पुस्तक मित्रो के साथ खुश थी। लेकिन अपने साथी पुस्तकों से दूर जाना पड़ रहा था। वह शिक्षक मुझे अपने घर पर लाया और मुझे अपने पुस्तकों की अलमारी में रखा।

नया माहौल

नए घर पर आयी। वहाँ मेरी तरह और भी दूसरे विषयो के पुस्तक रखे थे। मुझे नए जगह पर रहना था और मैंने दूसरे पुस्तकों के साथ मित्रता कर ली थी। मैं नए माहौल में अपने आपको ढाल रही थी।

ज्ञान बांटना

शिक्षक के बच्चे अक्सर मुझे पढ़ते थे। मेरे पुस्तक में से हिंदी विषय के नोट्स बनाते थे। मुझे बहुत ख़ुशी मिलती थी कि मैं बच्चो के काम आ पा रही हूँ। मुझे पढ़कर बच्चो को व्याकरण संबंधित ज्ञान भली भाँती प्राप्त हो रहा था। मुझे ज्ञान बांटकर बेहद ख़ुशी मिल रही थी।

मेरी कदर

शिक्षक जी भी अपने हिंदी के प्रश्न पत्र बनाने के लिए मेरे से सुझाव लेते थे। मेरे सभी पाठ में से ढूंढ कर वह अपने विद्यार्थियों के लिए प्रश्न पत्र बना रहे थे। मैं एक ऐसी पुस्तक थी जिसकी ज़रूरत विद्यार्थियों को हमेशा पढ़ती थी।

शिक्षक के बच्चो को हिंदी परीक्षा में अच्छे अंक आये। सभी मुझसे बेहद खुश थे। मुझ पर एक अच्छा बुक कवर चढ़ाया गया। बाकी पुस्तकों की तुलना में बच्चे मुझे ज़्यादा पसंद करते थे। मेरी कदर सभी कर रहे थे। इससे मुझे गर्व महसूस हो रहा था।

मुश्किल प्रश्नो का हल

बच्चे जब दसवीं कक्षा में पहुंचे तब भी वह मुझे पढ़ते थे। मैं उनके मुश्किल प्रश्नो को हल करने में काम आती थी। अब वह बड़े हो गए थे और कभी कभी वह मुझे अपने दोस्तों को सौंप देते थे। मेरी लोकप्रियता बढ़ रही थी। लेकिन सब मुझे अच्छे से नहीं रखते थे और यहां वहाँ पटकने से मेरे पन्ने भी फट जाते थे। मुझे दर्द और दुःख होता था।

धीरे धीरे स्वरुप का नाश होना

एक वक़्त था जब मैं नयी हुइ करती थी। अब कई वर्षो बाद जैसे जैसे मेरे मालिक और उनके परिवार वालो की ज़रूरतें पूरी हो गयी। मेरी कदर भी कम हो गयी। मुझे कोई ठीक से नहीं रखता था। मेरे पन्ने अब निकलने लगे थे।

जब ज़रूरत थी तब हमेशा मुझे साफ़ किया जाता था, अब बस कोने में पड़ी रहती हूँ। मेरे कुछ पृष्ट फट गए है, उन्हें कोई चिपकाता भी नहीं था। वक़्त के साथ कोई भी मेरे ऊपर पड़ी धूल को साफ़ नहीं करता और मेरे निकले हुए पन्नो को जोड़ने की भी चेष्टा नहीं की जा रही थी।

मेरी कदर कम होना

जब शिक्षक और उनके परिवार को मेरी ज़रूरत थी तो वह मुझे संभाल कर रखते थे। लेकिन अब उनके बच्चे बड़े हो गए थे और अपने अपने नौकरी में व्यस्त थे। शिक्षक जी बड़े अच्छे भले आदमी थे लेकिन उम्र बढ़ने के कारण उनका ध्यान मेरी तरफ कम हो गया था।

पहले जो लोग मेरी कदर करते थे अब उन्हें मेरी ज़रूरत नहीं थी। इससे यह सीख मिलती है जब लोगो को आपकी ज़रूरत होती है, वह आपको महत्व देते है और कदर भी करते है। जैसे जैसे उनकी आवश्यकताएं पूरी हो जाती है, वह कदर करना भूल जाते है।

लाचार और बेजान जीवन

मैं अपने मालिक को यह याद नहीं दिला सकती कि वह मेरा ध्यान रखे। अब मेरे में वह ताकत नहीं बची कि मैं घरवालों से कह सकूँ मुझे आकर पढ़े। मैं लोगो के इस व्यवहार से अत्यंत दुखी हूँ। मेरे अंदर असीमित ज्ञान था, लेकिन लोगो ने मुझे अच्छे से संभाल कर नहीं रखा।

लोगो के जीवन को बदला

मैंने परिवार और उससे जुड़े दोस्तों और कई लोगो को ज्ञान प्रदान किया। सबने मुझसे बहुत कुछ सीखा। सबने मुझसे प्रेरणा ली। बच्चे मेरे से ज्ञान अर्जित करके आज अच्छे पदों पर कार्यरत है। लेकिन किसी को फुर्सत नहीं कि वह मेरे फटे हुए पन्नो को जोड़कर रखे और मेरा अध्ययन करे।

मैं अब आकर्षक ना रही

पहले मैं नई सुन्दर, आकर्षक और ज्ञानवर्धक पुस्तक थी। अब मेरे पृष्ट फट गए है, जिसके कारण पहले की तरह आकर्षक नहीं लगती हूँ। मैं घर के एक कोने में रहकर थक चूकी थी। जब ज़रूरत निकल गयी, तब सब ने मुझसे किनारा कर लिया। बाकी कुछ पुस्तकों की दशा भी मेरे समान थी।

मुझे फिर से बेचा गया

अब शिक्षक साहब भी नहीं रहे। उनकी पत्नी को घर खाली करना था। मुझे दुःख है कि मेरे मालिक गुजर गए। उनके जाने के पश्चात उनकी पत्नी ने मुझे कागज़ और पुराने किताबे खरीदने वाले को बेच दिया।

मेरे पन्ने और अधिक फट गए। मेरा अब कोई सम्मान ना रहा। मनुष्य बड़े स्वार्थी होते है जब तक उन्हें फायदा दिखता है वह संभाल कर रखते है। जब काम निकल जाता है तो पुराने पुस्तकों के साथ ऐसा व्यवहार करते है।

किसी आदमी ने जो गाँव में स्कूल चलाता है, उसने मुझे खरीदा। उस आदमी ने मेरे पृष्टो को जोड़ा और मुझे विद्यालय के पुस्तकालय में रख दिया। मेरा नया जीवन आरम्भ हुआ। आशा करूँगी की अब मेरी कदर लोग करेंगे। अब गरीब बच्चो को मुझे पढ़कर ज्ञान प्राप्त होगा। इससे मुझे ख़ुशी महसूस होगी। आशा है लोग मुझे अच्छे से संभाल कर रखेंगे और मेरी अवहेलना नहीं करेंगे।

निष्कर्ष

पुस्तकों की हमेशा कदर और सम्मान करना चाहिए। विद्या सरस्वती माँ की देन है। उम्मीद है आगे चलकर मेरी कदर करेंगे लोग। मुझे सहज कर रखेंगे ताकि मेरे ज्ञान का प्रकाश चारो ओर फैले। आशा है मुझ जैसे फटे हुए पुस्तक को बच्चे और बड़े जोड़कर रखेंगे, ताकि आने वाले पीढ़ी को भी ज्ञान प्राप्त होगा।


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तो यह था फटी पुस्तक की आत्मकथा पर निबंध (Fati Pustak Ki Atmakatha Essay In Hindi), आशा करता हूं कि फटी पुस्तक की आत्मकथा पर हिंदी में लिखा निबंध (Hindi Essay On Fati Pustak Ki Atmakatha) आपको पसंद आया होगा। अगर आपको यह लेख अच्छा लगा है, तो इस लेख को सभी के साथ शेयर करे।

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