मकर संक्रांति के त्यौहार पर निबंध (Makar Sankranti Essay In Hindi)

आज हम मकर संक्रांति पर निबंध (Essay On Makar Sankranti In Hindi) लिखेंगे। मकर संक्रांति पर लिखा यह निबंध बच्चो (kids) और class 1, 2, 3, 4, 5, 6, 7, 8, 9, 10, 11, 12 और कॉलेज के विद्यार्थियों के लिए लिखा गया है।

मकर संक्रांति पर लिखा हुआ यह निबंध (Essay On Makar Sankranti In Hindi) आप अपने स्कूल या फिर कॉलेज प्रोजेक्ट के लिए इस्तेमाल कर सकते है। आपको हमारे इस वेबसाइट पर और भी कही विषयो पर हिंदी में निबंध मिलेंगे, जिन्हे आप पढ़ सकते है।


मकर संक्रांति के त्यौहार पर निबंध (Makar Sankranti Festival Essay In Hindi)


प्रस्तावना

मकर संक्रांति हिंदुओं का प्रमुख त्योहार है। इस त्यौहार में ना केवल मीठा खाना, बल्कि मीठा बोलने का भी चलन है। वैसे भी प्रत्येक व्यक्ति को हमेशा मीठा ही बोलना चाहिए। क्योंकि कटु वचन किसी को भी पसंद नहीं होते हैं।

वैसे तो यह त्योहार देश के विभिन्न हिस्सों में मनाया जाता है। वैदिक हिंदू दर्शन के अनुसार मकर संक्रांति सूर्य का त्यौहार है। जो सभी ग्रहों के राजा माने जाते हैं। मकर संक्रांति भले ही देश के विभिन्न हिस्सों में अलग-अलग नाम के रूप में मनाया जाता है, पर सभी का मकसद और त्योहार को मनाने की खुशी एक ही होती है।

मकर संक्रांति कब मनायी जाती है।

हमारे हिन्दू धर्म में सूर्यदेवता से जुड़े कई त्योहार है और उनको मनाने की परंपरा नियम से चली आ रही है। उन्ही में से एक मकर संक्रांति है। शीत ऋतु पोस मास में जब भगवान श्री भास्कर उत्तरायण होकर मकर राशि में प्रवेश करते है, तो सूर्य की इस संक्रांति को मकर संक्रांति कहते है।

और इसे देश भर में मनाया जाता है। वैसे तो मकर संक्रांति हर 14 जनवरी को मनाई जाती है, परंतु कुछ सालो में गणनाओं में आये कुछ परिवर्तन की वजह से इसे 15 जनवरी को भी मनाया जाता है। परंतु ऐसा कम ही देखने को मिलता है।

फसलों से जुड़ा पर्व मकर संक्रांति

जनवरी माह के मध्य में भारत के लगभग सभी प्रान्तों में फसलों से जुडा कोई न कोई त्योहार मनाया जाता है। कोई फसलों के तैयार हो जाने पर खुशिया बाटता है। तो कुछ लोग इस उम्मीद में खुश होते है की अब पाला कम होंगा। सूरज की गर्मी बढ़ने से खेतों में खड़ी फसल तेजी से बढ़ेगी।

सभी प्रान्तों और इलाको का अपना रंग और अपना ढंग नजर आता है। इस दिन सब लोग अच्छी पैदावार की उम्मीद और फसलों के घर में आने की खुशी का इजहार करते है। उत्तर प्रदेश, बिहार, मध्यप्रदेश में मकर संक्रांति को तिल संक्रांति, आसाम में बिहू, केरल में ओणम, तमिलनाडु में पोंगल, पंजाब में लोहड़ी, झारखंड में सरहुल, गुजरात में पतंग का पर्व कहा जाता है।

सभी खेती और फसलो से जुड़े त्योहार है। इन्हें जनवरी से मध्य अप्रेल तक अलग-अलग समय में मनाया जाता है।

झारखण्ड में सरहुल (संक्रांति)

झारखण्ड में सरहुल बड़े जोशो-खरोश के साथ मनाया जाता है। चार दिनों तक इसका जश्न चलता रहता है। अलग- अलग जनजातियाँ इसे अलग-अलग समय में मनाती है।

संथाल और और ांव जाती (संक्रांति)

सन्थाल लोग फरवरी-मार्च में, तो और ांव लोग इसे मार्च अप्रेल में मनाते है। आदिवासी आमतौर पर प्रकृति की पूजा को महत्व अधिक देते है। सरहुल के दिन विशेष तोर पर साल के पेड़ की पूजा करते है और यही समय है जब साल के पेड़ो में फूल आने लगते है और मौसम बहुत ही ख़ुशनुमा हो जाता है।

स्त्री-पुरुष दोनों ही ढोल मंजीरे लेकर रात भर नाचते गाते है। चारो और फैली हुई छोटी-छोटी घाटियां लम्बे-लम्बे साल के व्रक्ष के जंगल और वही बसे आस पास छोटे छोटे गांव, लिपे पुते करीने से बहरे और सजाए गए अपने घरो के सामने लोग एक पंक्ति में कमर में बांहे डालकर नृत्य करते है।

अगले दिन वो नृत्य करते करते घर घर जाते है और फूलो के पौधे लगाते है। घर घर से चन्दा मांगने की भी प्रथा है। पर चंदे में ये मुर्गा, चावल और मिश्री मांगते है। फिर होता है खेलो का दौर और तीसरे दिन ये पूजा करते है। जिसके बाद ये कानो में सरई का फूल पहनते है।

इसी दिन से वसंत ऋतु की शुरुआत मानी जाती है। इस दिन धान की भी पूजा की जाती है। पूजा किये हुए धान को अगली फसल में बोया जाता है।

तमिलनाडु में मकर संक्रांति

तमिलनाडु में मकर संक्रांति या फसलों से जुड़ा त्योहार “पोंगल”के रूप में मनाया जाता है। इस दिन खरीफ की फसलें, चावल, अरहर आदि काट कर घरो में लाया जाता है। लोग नए धान को कूटकर चावल निकालते है। हर घर में मिट्टी का नया मटका लाया जाता है। जिसमे नए चावल, दूध और गुड़ डालकर उसे पकाने के लिए धूप में रख देते है।

हल्दी शुभ मानी जाती है, इसलिए साबुत हल्दी को मटके के मुँह के चारो और बांध देते है। यह मटका दिन में धूप में रखा जाता है। जैसे ही दूध में उफान आता है और दूध चावल मटके से गिरने लगते है। तो “पांगला-पोंगल” “पांगला-पोंगल” (खिचड़ी में उफान आ गया कह कर सब एक स्वर में कहते है) और हर जगह यही स्वर सुनाई देते है।

गुजरात में संक्रांति

गुजरात में पतंगो के बिना तो मकर-संक्रांति का जश्न अधूरा ही माना जाता है। इस दिन आसमान की और यदि नजर उठाए तो शायद हर आकर और रंग-रूप की पतंगे आकाश में लहराती हुई दिखती है। प्रत्येक गुजराती चाहे वह किसी भी धर्म, जाती या आयु का हो। हजारो लाखो पतंगों से सूर्य भी ढक जाता है। आखिर गुजरात में पतंगो के नाम से ही तो प्रसिद्ध है संक्रांति।

कुमायूं में संक्रांती

कुमायू में मकर संक्रांति को घुघुतिया भी कहते है। इस दिन आटे और गुड़ को गूंधकर पकवान बनाये जाते है। इन पकवानों को तरह-तरह के आकार दिए जाते है। जैसे डमरू, तलवार, दाड़िम का फूल आदि। पकवान को तलने के बाद एक माला में पिरोया जाता है। माला के बीच में संतरा और गन्ने की गंडेरी पिरोई जाती है।

यह काम बच्चे बहुत रुचि और उत्साह के साथ करते है। सुबह बच्चों को माला दी जाती है। बहुत ठंड के कारण पक्षी पहाड़ो से चले जाते है। उन्हें बुलाने के लिए बच्चे इस माला से पकवान तोड़ तोड़ कर पक्षियो को खिलाते है और इसके साथ ही जो भी कामना हो उसे मांगते है।

पंजाब में संक्रांति

उत्तर भारत में मनाया जाने वाला पर्व लोहड़ी जिसे पंजाबी और सिख धर्म के लोग बड़े ही धुम-धाम के साथ मनाते है। यह त्योहार यहां फसल उत्सव के रूप में मनाया जाता है। आजकल तो लोहड़ी पूरे भारत में ही सिख धर्म को मानने वाले लोग मनाते है। परंतु पंजाब और हरियाणा में इसकी धूम अत्यधिक देखने को मिलती है।

किसान अपने फसल को अग्नि देवता को समर्पित करके मनाते है। घरो के बहार लोग आग जलाते है और पंजाबी सांझा चूल्हा जलाते है। उसी पर खाना बनाने के साथ ही ढोल नगाड़ो की थाप पर नाचते है और एक दूसरे को लोहड़ी की बधाई देते है।

साथ ही में गुड़ चना और मूंगफली खाते है। यह उत्सव की रोनक रात भर चलती है। जिसे यह बहुत ही धूमधाम और नाचगाने के साथ मनाते है।

आसाम की संक्रांति

आसाम में संक्रांति को बिहू के नाम से जाना जाता है। हर साल जनवरी में यहां के लोग इस त्योहार को मनाते है। यह त्योहार किसानों के लिए प्रमुख त्योहार है, क्योंकि इस पर्व के बाद किसान अपने फसलों की कटाई करके भगवान को शुक्रिया अदा करते है। बिहू पर्व में महिलाएं मीठे पकवान बनाती है और इस त्योहार को बहुत धूमधाम के साथ मनाती है।

राजस्थान में मकर संक्रांती

राजस्थान में जो सुहागन महिलाएं रहती है। वो अपनी सास को वायना देती है और उनसे आशीर्वाद ग्रहण करती है। किसी भी सोभग्यसूचक वस्तु को चौदह ब्राह्मणों को दान करती है।इस प्रकार राजस्थान में मकर संक्रांति मनाने की परंपरा चली आ रही है।

बिहार में मकर संक्रांति

बिहार में उड़द की दाल, चावल और तिल का डॉन करने की परम्परा है। चिवड़ा, गाय और अन्य चीजे दान करि जाती है।

महाराष्ट्र में मकर संक्रांति

महाराष्ट में सभी विवाहित महिलाएं कुमकुम चावल का तिलक करके कपास, तेल,और नमक का दान करती है। यहाँ तिल और गुड़ बाटने की प्रथा भी है। लोग एक दूसरे को तिल गुड़ देते है और कहते है “तिल गुळ ध्या आणि गोड़ गोंड़ बोला”।

इसका मतलब है तिल गुड़ लो और खाओ और मीठा-मीठा बोलो। इस दिन महिलाएं एक दूसरे को तिल गुड़, रोली और हल्दी बांटती है और आपस में हंसी खुशी यह त्योहार मनाती है।

है न मकर संक्रांति को कितने अलग-अलग अंदाज से मनाया जाता है। कहि दूध चावल और गुड़ की खीर बनती है, तो कही पांच प्रकार के नए अनाज की खिचड़ी बनाती है। कहि-कहि लोगो का सैलाब नदी में स्नान के लिए उमड़ जाता है।लोग ठंड से ठिठुरते रहते है, पर बर्फीले पानी में कम से कम एक बार तो डुबकी जरूर लगाते है।

हाल यह होता है की यहां पैर रखने की भी जगह नही होती है। मकर संक्रांति में पानी में तिल डालकर भी स्नान किया जाता है। तिल दान करना, आग में तिल डालना, तिल के पकवान बनाना विशेष महत्व रखता है।

मकर संक्रांति कथा

हिन्दू पौराणिक कथाओ के अनुसार इस विशेष दिन पर भगवान सूर्य अपने पुत्र शनि के पास जाते है और जब सूर्य जाते है, तब शनि देव मकर राशि का प्रतिनिधित्व कर रहे होते है। पिता और पुत्र के रिश्तो को मजबूत बनाने के लिए ही और मतभेदों के बावजूद मकर संक्रांति को महत्व दिया गया।

ऐसा कहा जाता है की इस पर्व से पिता और पुत्र के रिश्ते मजबूत होते है और सकारात्मक खुशिया उत्पन्न होती है।

अन्य कथानुसार

भीष्म पितामाह को यह वरदान मिला था की वो अपनी इच्छा से अपनी मृतु प्राप्त कर सकते है। जब वह बाणों की सईया पर लेते थे, तब वह उत्तरायण के दिन की प्रतीक्षा कर रहे थे।उन्होंने इस दिन अपनी मृतु को स्वीकार किया और अपनी आँखे बन्द कर ली, ताकि उन्हें मोक्ष की प्राप्ति हो और यह दीन मकर संक्रांति का दिन ही था।

यमराज ने की थी तपस्या

एक कथानुसार पिता सूर्य देव को कुष्ठ रोग से पीड़ित देखकर यमराज काफी दुखी हुए। यमराज ने सूर्यदेव को कुष्ठ रोग से मुक्त करवाने के लिए घोर तपस्या की, लेकिन सूर्य देव ने क्रोधित होंकर शनि महाराज के घर कुम्भ जिसे शनि की राशि कहा जाता है उसे जला दिया।

इससे शनि और उनकी माता छाया को कष्ट भोगना पड़ रहा था। यमराज ने अपनी सौतेली माता, भाई शनि को कष्ठ में देख उनके कल्याण के लिए पिता सूर्य को काफी समझाया। और तब जाकर सूर्य देव शनि के घर कुम्भ में पहुंचे और तब से ही मकर संक्रांति मनाने की परम्परा प्रारम्भ हुई।

मकर संक्रांति की पूजा-विधि

इस त्योहार को मनाने वाले विधि विधान अनुसार भगवान की पूजा करते है।

सबसे पहले प्रातःकाल स्नान आदि से निवर्त होते है। उसके बाद मुहर्त पर पूजा का स्थान आदि साफ कर, भगवान सूर्य देवता की उपासना की जाती है। पूजा की थाली में पूजन सामग्री को रखते है, जिसमे चावल का आटा या चावल, हल्दी, सुपारी, पान के पत्ते, शुद्ध जल, फूल और अगरबत्ती रखी जाती है।

इसके बाद प्रसाद के रूप में काले तिल और सफेद तिल के लड्डू, कुछ मिठाई और चावल दाल की खिचड़ी बना कर भगवान को प्रसाद चढ़ाया जाता है। भगवान को प्रसाद चढ़ा कर आरती की जाती है।

उसी दिन या दूसरे दिन ये प्रसाद मंदिर में दान कर दिया जाता है। पूजा के दौरान स्त्रियों का सर अपने आँचल से ढका हुआ रहता है। उसके बाद सूर्य देवता जी का मंत्र ॐ हरम हिम होम सह सूर्याय नमः का कम से कम 108 बार उच्चारण किया जाता है।

उसके बाद तिल का लड्डु प्रसाद के तौर पर भी खाया जाता है। पूजा के उपरांत चावल डाल की खिचड़ी खाई जाती है और पतंग बाजी की जाती है।

पूजा से होने वाले लाभ

इस पूजा के करने से बल, बुद्धि, ज्ञान की प्राप्ति होती है। आद्यात्मिक भावना को बढ़ाती है और शरीर को स्वस्थ रखती है। इस दीन किये गए कार्य में सफलता जरूर मिलती है। हिन्दू धर्म को मानने वाले लोगो का यह प्रमुख त्योहार है। इस त्यौहार से आपस में खुशिया बाटी जाती है। इस त्यौहार में मीठा खाने और मीठा बोलने की परम्परा का विकास होता है।

उपसंहार

इस प्रकार हमारे देश में त्योहारों की कोई कमी नहीँ है। परन्तु प्रत्येक त्योहार कोई ना कोई सीख प्रदान करता है। जैसे मकर संक्रांती जहां पतंगबाजी की मस्ती है, तो दूसरी और मीठा बोलने और मीठा खाने की ओर हमारी दृष्टि करता है।

और कहता है की ये खुशिया केवल एक दिन के लिए ही नही, अपितु इसे अपने जीवन में पूरी तरह से उतारे और कटु वचन को भूल जाए। सभी से नम्रता और मिठास के साथ ही बात करे। जिस प्रकार सूर्य देवता की उपासना और फसल की कटाई की खुशी, उसी प्रकार कहि डांस तो कही नाच गाने का एक आगाज़ का नाम है मकर संक्रांति।


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