रबीन्द्रनाथ टैगोर पर निबंध (Rabindranath Tagore Essay In Hindi)

आज हम रबीन्द्रनाथ टैगोर पर निबंध (Essay On Rabindranath Tagore In Hindi) लिखेंगे। रबीन्द्रनाथ टैगोर पर लिखा यह निबंध बच्चो (kids) और class 1, 2, 3, 4, 5, 6, 7, 8, 9, 10, 11, 12 और कॉलेज के विद्यार्थियों के लिए लिखा गया है।

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रबीन्द्रनाथ टैगोर पर निबंध (Rabindranath Tagore Essay In Hindi)


प्रस्तावना

रबीन्द्रनाथ टैगोर बहुमुखी प्रतिभा के स्वामी थे। उन्होंने कई प्रकार की साहित्य ओर कविताये लिखी है। उन्हें कई प्रकार के नोबेल ओर अन्य सम्मान प्राप्त हुए है। रविन्द्र नाथ टैगोर विलक्षण प्रतिभा के व्यक्ति थे। वह बहुआयामी प्रतिभा के धनी थे, वे एक ही साथ महान साहित्यकार, समाज सुधारक, अध्यापक, कलाकार ओर कई संस्थाओ के निर्माता थे।

वो जो सपने अपने देश भारत के लिए देखते थे, उन्हें पूरा करने के लिए अनवरत कर्मयोगी की तरह काम किया करते थे। उनके इस तरह के कार्यो की बजह से हमारे देश के वासियों में एक आत्मसम्मान की भावना जाग्रत हुई।

उनके इस विशाल व्यक्तित्व को राष्ट्र कि कोई सीमाएं नही बांध पाई। उनकी शिक्षा के तहत सबका कल्याण करना है। उनका मकसद बस एक ही था और वह था देश का कल्याण।

रबीन्द्रनाथ टैगोर जी का जन्म

रबीन्द्रनाथ टैगोर का जन्म बांग्ला परिवार में 7 मई 1861 में हुआ था। रविंद्र नाथ टैगोर बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे। उनके पिता का नाम देवेन्द्रनाथ टैगोर था ओर माता जी का नाम शारदा देवी था। टैगोर के मन में बेरिष्टर बनने की चाहत थी ओर अपनी इस चाहत को पूरी करने के लिए उन्होंने 1878 में ब्रिजटोन पब्लिक स्कूल में नाम दर्ज कराया।

उन्होंने लन्दन कॉलेज विश्विद्यालय से काननू की शिक्षा ग्रहण की थी। लेकिन 1880 को वो बिना डिग्री प्राप्त किये ही वापिस आ गए थे। रविंद्र नाथ टैगोर को बचपन से ही कविता ओर कहानियां लिखने का शोक था। वह गुरुदेव के नाम से प्रसिद्ध थे।

भारत आकर उन्होंने अपनी लिखने की इच्छा को पूरा किया ओर फिर से लिखने का काम शुरू किया। 1901 में रबीन्द्रनाथ टैगोर जी ने पश्चिम बंगाल में ग्रामीण इलाके में स्थित शांतिनिकेतन में एक प्रायोगिक विद्यालय की स्थापना की थी।

जहां उन्होंने भारत ओर पश्चिम परम्पराओ को मिलाने का प्रयास किया। वह विद्यालय में ही रहने लगे थे। उन्होंने विद्यालय को ही अपना घर बना लिया था और सन 1921 में उनका विद्यालय विशव विश्वविद्यालय बन गया।

गुरुदेव रबीन्द्रनाथ टैगोर की कृतियां

गुरुदेव रबीन्द्रनाथ जी ने अपने जीवन में अनेको कृतियों का विमोचन किया है। उनकी कृतियों कुछ इस प्रकार है, कविता, उपन्यास, लघुकथा, नाटक, नृत्यनाटय, प्रबन्ध समूह, भृमणकथा, जीवनोमुलक, पत्रसाहित्य, संगीत, चित्रकला। इस प्रकार उन्होंने अपने जीवन में अनेको पुस्तकों का विमोचन किया था।

उनकी सबसे अधिक प्रसिद्ध बंगला कविता का संग्रह गीतांजलि को सन 1913 में नोबेल पुरुष्कार प्राप्त हुआ था। गीतांजलि उनकी सबसे अधिक प्रसिद्ध कविता संग्रह थी। गीतांजलि शब्द गीत ओर अंजलि से मिल कर बना हुआ है। जिसका अर्थ है गीतों का उपहार। इसमे लगभग 103 कविताये है। इनकी इस कविताओं ने बहुत ही प्रसंशा प्राप्त की थी।

रवीन्द्रनाथ टैगोर जिनको गुरुदेव के नाम से भी जाना जाता है। ये प्रसिद्ध बंगाली लेखक, संगीतकार, चित्रकार,ओर विचारक थे। उनकी रचनाओ में उपन्यास – गोरा, घरे बाईरे, चोखेर बाली, नष्ठनीड़, योगायोग, कहानी संग्रह – गल्पगुच्छ, संस्मरण – जीवनस्मृति, छेलेबेला, रूस के पत्र, कविता – गीतांजलि, सोनारतरी, भानुसिंह ठाकुरेर पदावली, मानसी, गितिमाल्य, वलाका, नाटक – रक्तकरवी, विसर्जन, डाकघर, राजा, वाल्मीकि प्रतिभा, अचलायतन, मुक्तधारा शामिल है।

ये पहले गैर यूरोपीय थे, जिनको 1913 में साहित्य के लिए नोबेल पुरुस्कार दिया गया। वो केवल एक मात्र ऐसे कवि थे जिनकी दो रचनाये दो देशों का राष्ट्र गान बनी। जिसमे से पहला देश भारत और दूसरा देश बंगला देश है।

रवीन्द्रनाथ टैगोर के कुछ अनमोल विचार

रवीन्द्रनाथ टैगोर ने अनेको अनमोल विचार लिखे है। उनमे से कुछ इस प्रकार है।

(1) सिर्फ तर्क करने वाला दिमाग एक ऐसे चाकू की तरह है, जिसमे सिर्फ ब्लेड है। यह इसके प्रयोग करने वाले के हाथ में है।

(2) आयु सोचती है, जवानी करती है।

(3) कट्टरता सच को उन हाथों में सुरक्षित रखने की कोशिश करती है, जो उसे मारना चाहते है।

(4) पंखुड़िया तोड़ कर आप फूल की खुशबू नही इकठ्ठा करते।

(5) मौत प्रकाश को खत्म करना नही, ये सिर्फ दीपक को बुझाना है। क्योंकि सुबह हो गयी है।

(6) मित्रता की गहराई परिचय की लम्बाई पर निर्भर नहीं करती।

(7) मिट्टी के बन्धन से मुक्ति पेड़ के लिये आजादी नहीं है।

(8) तथ्य कई है पर सत्य एक है।

(9) कला में व्यक्ति खुद को उजागर करता है, कलाकृति को नही।

(10) जीवन हमे दिया गया है, हम इसे देकर कमाते है।

इस प्रकार रवीन्द्रनाथ टैगोर जी के अनेको अनमोल वचन है। जिन्हें हमें समझना ओर अपने जीवन में उतारने की कोशिश करनी चाहिए।

रवीन्द्रनाथ टैगोर का सर की उपाधि वापस करना

रवीन्द्रनाथ टैगोर भारतीय साहित्य के एक मात्र नोबेल पुरस्कार विजेता थे। रवीन्द्रनाथ टैगोर ने अंग्रेजी हुकूमत का विरोध करते हुए “सर” की उपाधि लोटा दी थी। उन्हें बिट्रिश प्रशासन 1915 में “नाइट हुड” नाम से ये उपाधि देना चाहते थे। उनके नाम के साथ सर लगाया गया था।

रवीन्द्रनाथ टैगोर ने जलियावाला हत्याकांड की बजह से अंग्रेजों के दिए इस सम्मान को लेने से इनकार कर दिया था। इससे पहले भी 16 अक्टूबर 1905 को रवीन्द्रनाथ टैगोर के नेतृत्व में कोलकाता में मनाये गए रक्षाबंधन उत्सव से “बंग भंग” आंदोलन की शुरुआत हुई थी।

गुरुदेव रवीन्द्रनाथ टैगोर का जीवन

रवीन्द्रनाथ टैगोर का सारा जीवन साधना ओर तपस्यामय था। ज्यो-ज्यो उनपर साहित्य ओर कला का प्रभाव पड़ता गया, त्यों-त्यों उनके जीवन में सादगी आने लगी थी। गुरुदेव रवीन्द्रनाथ टैगोर जी मानवता के असीम पुजारी थे। उनकी दृष्टि में मनुष्य विधाता की अनुपम कृति है।

विशव में उनका स्थान संदिग्ध है। जीवन ओर मृतु की सीमा के अंतर्गत मानव कर्तव्य आत्म चिंतन, प्रेम ओर कर्तव्य निष्ठा में है। इसी में जीवन की शांति ओर वास्तविक सुख है। टैगोर की दार्शनिक विचारधाराओ के अनुसार मानव ईशवर से पृथक नहीं है।

हमारी आत्मा ब्रह्म की आत्मा से पृथक नहीं है। संसार ईशवर की कृति नही है। वरन ईशवर का स्वरूप है। अतः मानव ईशवर से अलग नहीँ हो सकता। रवीन्द्रनाथ टैगोर ने विशव को मानवता का सन्देश दिया। उन्होंने मॉनव जाती की एकता पर बल दिया।

एकता वही है, जो नैसर्गिक विभिन्नता से अनुप्राणित ओर परिपूर्ण हो। टैगोर जी के दृष्टिकोण में मानवजाति के पूर्ण विकास के लिए सामाजिक, सांस्कृतिक और धार्मिक विभिन्नता आवश्यक है।

रवीन्द्रनाथ टैगोर राष्ट्रिय वैचारिक दर्शन

रवीन्द्रनाथ टैगोर परम् देशभक्त थे। उन्होंने बहुत सी कविताये लिखी है। राष्ट्र प्रेम उनके रग-रग में समाहित था, वे अपनी मातृभूमि को पूजते थे ओर स्वदेश प्रेम उनके ह्रदय में बसा था।उनके मन में किसी के लिए भी कोई द्वेष नहीं था।

जबकि वो विदेशियों के प्रति भी नाममात्र का भी द्वेष नही रखते थे। उन्हें संकीर्णता से घृणा थी ओर वो चाहते थे की उनके देश के लोग जाग्रत की चेतना की आवश्यकता है। वे एक अच्छे राजनीतिज्ञ भी थे ओर वो राजनीति में अच्छे चरित्र निर्माण में विश्वास करते थे।

वे अपने जीवन के अंतिम स्वास तक सामजिक एकता ओर विशव शांति की स्थापना के लिए प्रयत्नशील रहे, जो सांस्कृतिक आदान प्रदान से प्राप्त हो सकती है। टैगोर जी का विश्वास था की मानव जाति अपने को विनाश से तभी बचा सकती है, जब वह पुनः उस आध्यत्मिकता में वापस आये जो सम्पूर्ण धर्म का आधार है।

गुरुदेव रवीन्द्रनाथ टैगोर की शैक्षिक अवधारणा

गुरुदेव रवीन्द्रनाथ टैगोर हमारी शिक्षा और प्रणाली से दुखी थे। उनके अनुसार हमारे यहां की पाठशालाएं शिक्षा वरदान करने वाली एक कारखाना है ओर यहां के अध्यापक लोग भी इस कारखाने के एक पुर्जा ही है।

जैसे ही कारखाना शुरू होता है, पुर्जे अपना कार्य करना प्रारम्भ कर देते है। वैसे ही जैसे एक पाठशाला प्रारम्भ होती है, शिक्षक की जुबान चलने लगती है ओर जैसे ही पाठशाला रूपी कारखाना बन्द हो जाता है शिक्षक की जुबान भी बन्द हो जाती है। गुरु ओर शिष्य के रिश्ते को हम आत्मीयता के साथ जोड़कर स्नेह, प्रेम ओर मुक्ति से ही आत्मसात कर सकते है।

रवीन्द्रनाथ टैगोर ओर जीवन दर्शन

रविन्द्रनाथ टैगोर मुलतः एक कवि थे। उनकी कविताओं में उनके जीवन दर्शन का स्पष्ट परिचय मिलता है। रवीन्द्रनाथ जी की कृतियों ओर उनके विचारों के अध्ययन से उनका दार्शनिक व्यक्तित्व इस प्रकार है।

ईशवर ओर ब्रह्मा

रविन्द्र नाथ जी ने अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा था की हमे ईशवर को उसी प्रकार अनुभव करना चाहिए, जिस प्रकार हम प्रकाश का अनुभव करते है। संसार में क्षण- प्रतिक्षण जो प्रतिक्रियाएं होती है, उसे ईशवर की इक्छा ही समझना चाहिए।

आत्मा ओर जीव

रवीन्द्रनाथ टैगोर जीव की आत्मा को ब्रह्मा से अलग मानते है। वही यह भी मानते है की आत्मा यधपि स्वतंत्र है। परन्तु उनकी स्वतंत्रता भी ईशवर की इच्छा पर ही निर्भर है। उनका मानना है की आत्मा का ब्रह्मा में लीन होना ही नही है, परन्तु अपने को पूर्ण बनाना है। उन्होंने आत्मा को तीन रूपो में विभाजित किया है।

(1) अस्तित्व ओर रक्षा की भावना

(2) अस्तित्व का ज्ञान

(3) आत्माभिव्यक्ति

सत्य ओर ज्ञान

रवीन्द्रनाथ टैगोर ने कहा है की संसार का सत्य उसके जड़ पदार्थो में नही है। प्रत्युत उसके माध्यम से अभिव्यक्त होने वाली एकता में है।

जगत ओर प्रकर्ति

रवीन्द्रनाथ टैगोर माया को सत्ता मानते है ओर नही भी मानते है। उनके अनुसार जगत की वास्तविकता को नकारा नही जा सकता। वे प्रकर्ति में जड़ ओर चेतन सभी को पाते है।

धर्म ओर नैतिकता

धर्म ओर नैतिकता को परिभाषित करते हुए टैगोर जी ने स्पष्ठ शब्दो में कहा है।

“मेरा धर्म मानव का धर्म है, जिसमे अंत की परिभाषा मानवता है। नैतिकता के प्रति अपना विचार वे इस रूप में व्यक्त करते है। पशु का जीवन नैतिकता से रहित होता है, किन्तु मनुष्य में नैतिकता की व्याप्ति अवश्य होनी चाहिए।

उपसंहार

रवीन्द्रनाथ टैगोर ने अपने जीवन को लोगो को समर्पित कर दिया था ओर वो अपनी बातों को सुस्पष्ठ अपनी कविता, कहानियों, अपने उपन्यास में व्यक्त करते थे। वो कहते थे की किसी भी चीज से गुस्सा करने की अपेक्षा अपने अंदर की भवनाओं को जाग्रत करो।

वो बिट्रिश अंग्रेजों से जरा भी घृणा नही करते थे। वो चाहते थे की हमारे यहां की शिक्षा प्रणाली में सुधार हो, समाज में सुधार हो। उनका प्रत्येक कार्य देश ओर देशवासियो को ही समर्पित था।


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तो यह था रबीन्द्रनाथ टैगोर पर निबंध, आशा करता हूं कि रबीन्द्रनाथ टैगोर पर हिंदी में लिखा निबंध (Hindi Essay On Rabindranath Tagore) आपको पसंद आया होगा। अगर आपको यह लेख अच्छा लगा है, तो इस लेख को सभी के साथ शेयर करे।

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