महिला सशक्तिकरण पर निबंध (Women Empowerment Essay In Hindi)

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महिला सशक्तिकरण पर निबंध (Women Empowerment Essay In Hindi)


प्रस्तावना

यत्र नार्यस्तु पूज्यंते रमंते तत्र देवता।

यत्रास्तू न पूज्यंते सरवास्तुदाफीला: क्रिया।।

इस युक्ति का सामान्य अर्थ यह है कि जहां नारी की प्रतिष्ठा और सम्मान होता है, वहां भगवान निवास करते हैं। और जहां नारी का निरादर होता है वहां नाना प्रकार के विघ्न उत्पन्न होते हैं।

नारी को इस आधार पर एक महान देवी के रूप में चित्रित किया गया और उसके प्रति विश्वास और श्रद्धा वन होने के लिए कहा जाता है, कि नारे कैसे श्रद्धेय और पूज्य स्वरूप को स्वीकारना है। कविवर श्री जयशंकर प्रसाद ने अपनी महाकृति कामायनी में लिखा है कि

नारी तुम केवल श्रद्धा हो,

विश्वास रजत नगयगतल में।

पीयूष स्त्रोत सी बहा करो,

जीवन के सुंदर समतल में।।

इस दृष्टिकोण के आधार पर नारी पूज्य और महान है। जिससे जीवन अमृत तुल्य बन जाता है। नारी का सम्मानिय स्वरूप प्राचीन काल में बहुत ही सशक्त और आकर्षक रहा है। सीता, मैत्रीय,अनुसुइया, सती, सावित्री, दमयंती आदि भारतीय नारियां विश्व पटल पर गौरवान्वित है।

लेकिन चिंता का विषय यह है कि जब से हमारे देश पर विजातीय राज्य विस्तार हुआ, हमारे भारतीय नारी दीन हीन और मलिन हो गई। संध्या काल की मीरा और आधुनिक काल की रानी लक्ष्मीबाई और आज के इतिहास में श्रीमती इंदिरा गांधी को छोड़कर शेष नारिया आज शोषित और पीड़ित दिखाई दे रही है।

उसे आज पुरुष के अधीन रहना पड़ रहा है। उसे आज अपनी भावनाओं को स्वतंत्र रूप से प्रकट करने पर प्रतिबंध लगाया जा रहा है। इसलिए नारी को आज अबला और बेचारी के नाम से विश्लेषण किया जाता है। इस सब दुखद और दुर्दशा ग्रस्त स्थिति में पड़ी हुई नारी को देख कर उसके प्रति संवेदनशील होकर किसी कवि ने कहा है।

नारी जीवन झूले की तरह,

इस पार कभी उस पार कभी।

आंखों में आंसू धार कभी,

होठों पर मधुर मुस्कान कभी।।

और यह बात बहुत ही सार्थक और उपयुक्त लगती है। नारी को हिन, बेबस और दीन दशा में पहुंचाने में सामाजिक कुरीतियां परंपरागत रूढ़िवादिता ही है। नारी को पर्दे में रहना और उसकी अनुगामी बनी रहने के लिए हमारे प्राचीन ग्रंथों की बड़ी भूमिका है।

विदेशी आक्रमण और अत्याचारों से नारी से नारी को बार बार आतंक का शिकार होना पड़ा। उसे चार दिवारी में बन्द करके रखा गया। इससे बचने के लिए नारी को पर्दे का सहारा लेना पड़ा। सभी प्रकार के अधिकारों से उसे वंचित करके पुरुष की दासी बना दिया गया।

नारी के लिए प्रयुक्त होने वाला अर्धांगिनी शब्द को अभागिनी मैं बदल कर उसे सर्वहारा मान लिया गया। दहेज प्रथा, सती प्रथा, बाल विवाह इत्यादि इसके कु परिणाम है। तब से अब तक नारी को स्वार्थम्यी दृष्टि से देखा जाता है।

उसे प्रताड़ित करते हुए पशु तुल्य समझा जाता है। यही कारण है आज नारी को आत्महत्या, आत्मसमर्पण और आत्म हनन के लिए बाध्य होना पड़ता है।

नारी सशक्तिकरण का अर्थ

साधारण शब्दों में महिलाओं के सशक्तिकरण का मतलब है की महिलाओं को अपनी जिंदगी का फैसला करने की स्वतंत्रता देना। उनमें एसी क्षमताएं पैदा करना कि वह समाज में अपना सही स्थान स्थापित कर सकें।

अधिक सामाजिक और आर्थिक व्यवस्था बनाने में योगदान करने की महिलाओं की क्षमता अमूल्य है। नारी अपने दम पर वह सब कार्य करने की योग्यता रखती है ओर उस काबिल है की पीछे मुड़कर उसे किसी पुरुषप्रधान की आवश्यकता ना पड़े। वो स्वयं निरंतर आगे बड़े सकती है।

महिला सशक्तिकरण की विशेषता

(1) महिला सशक्तिकरण महिलाओं को शक्ति प्रदान करता है, जो उन्हें बेहतर जीवन जिन्हे के लिए सहायता करता हैं।

(2) महिला सशक्तिकरण उन्हें अधिक विश्वास और आजादी की भावना प्रदान करता है।

(3) महिला सशक्तिकरण से महिलाओं को अपने अधिकारों को समझने तथा दूसरे एवं स्वयं के प्रति अपनी जिम्मेदारी ठीक से निभाने में सहायता मिलती है।

(4) पुरुष आधारित समाज में होने वाले अत्याचार का विरोध करने की शक्ति आती है।

(5) स्वयं पर विश्वास उत्पन्न होना।

(6) महिला सशक्तिकरण का तात्पर्य भौतिक संसाधनों, विचारधारा तथा बौद्धिक संसाधनों पर महिलाओं का बेहतर नियंत्रण है।

(7) महिला सशक्तिकरण के द्वारा पारंपरिक शक्ति संतुलन एवं संबंधों में परिवर्तन आता है।

(8) समाज के ढांचे एवं सभी संस्थाओं में लिंग आधारित असमानता में कमी होती है।

(9) महिला सशक्तिकरण का तात्पर्य है कि घरेलू एवं सार्वजनिक स्तर पर नीति निर्माण और निर्णय निर्माण प्रक्रिया में महिलाओं की भागीदारी होना।

(10) विद्यमान सामाजिक एवं लिंग आधारित संबंधों के समक्ष विरोधी शक्ति का उदय होना।

(11) सशक्तिकरण महिलाओं को जीवन के संघर्षों का सामना करने योग्य बनाता है और अक्षमताओं, असमानताओं और विकलांगताओं से उबरने में सहायता करता है।

(12) सशक्तिकरण एक निरंतर चलने वाली प्रक्रिया है, जो महिलाओं को यह क्षमता प्रदान करती है कि वे उन बंधनों और विचारधाराओं को बदल सके जो उन्हें अनुचर बनाये रखती हैं।

स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद नारी की स्थिति

स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद हमारे देश मे नारी की हिन दशा में कुछ सुधार अवश्य हुआ है। हमारे समाज सुधारक और राष्ट्र के कर्म धारों ने नारी को पुरुष के समकक्ष लाने के लिए अनेक नियम विधानो को लागू किया। समाजसेवीयो ने महिला मंडल की स्थापना की और महिला संगठन के द्वारा भुक्तभोगी नारी को अनेक सुविधाएं देना प्रदान कर दीया है।

पूर्व की अपेक्षा आज नारी सुशिक्षित और पुरुष के समान अधिकार लेने में सफल हो रही है, फिर भी नारी अब भी पुरुष की भोग्या और दासी ही अधिक है। विकसित युग में भी नारी को उपेक्षित और शोषित दशा को ना सुधारने पर बुद्धिजीवी और समाज के जागरूक प्राणी बड़े ही चिंतित है।

नारी को स्वयं कुछ करना होगा, उसे अपना उपकार पथ स्वयं निर्मित करना पड़ेगा और सच यह है कि वह इसके लिए सबल और समर्थ है। वह अबला नहीं सबला है, वह दिन ही नहीं शक्ति का रूप है, वही देवी है वही दुर्गा है, वही शिव है और वही प्राणदायिनी है, इसलिए नारी में सब कुछ करने की संभावना है।

अतः वह अनीति, अत्याचार और उत्पीड़न का अंत करने के लिए क्रांति की ज्वाला और चिंगारी बने, क्योंकि उसने पक्षपात को झेला है। शिक्षा और सभ्यता के इस महावेग में भी नारी का आज वही स्थान है जो बरसों पूर्व था।

वह आज रसोई घर तक सीमित हुई पर्दा नसीम जिंदगी जीने को बाध्य है। कुछ नहीं बाबू को प्रस्तुत करते हुए किसी कवि ने बहुत ही अच्छा लिखा है।

कर पदाघात अब मिथ्या के मस्तक पर,

सत्यान्वेषण के पथ पर निकलो नारी।

तुम बहुत दिनों तक बनी थी दीप कुटिया का,

अब बनो क्रांति की ज्वाला की चिंगारी।।

ऐसा और कदम उठाकर यह नारी अपना स्वतंत्र अस्तित्व कायम कर सकती है, अन्यथा वह युगो कि प्रताड़ित युगो युगो तक प्रताड़ित होती रहती है। जब तक नारी उत्थान और प्रगति की दशा को प्राप्त नहीं होगी, तब तक नारी को वह सम्मान नहीं मिलेगा जो आज अपेक्षित और आवश्यक है।

तथा तब तक राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त की अमर पंक्तियां नारी उत्थान के लिए संकेत करते हुए हमें संवेदनशीलता के भागों में भिगोती रहेगी।

नारी जीवन है तुम्हारी यही कहानी।

आंचल में है दूध और आंखों में है पानी।।

आज नारी की स्थिति

किसी समय तो नारी का स्थान नर से इतना बढ़ गया था कि पिता के नाम के स्थान पर माता का ही नाम प्रधान होकर परिचय का सूत्र बन गया था। परंतु धीरे-धीरे समय के बदलाव के कारण नारी की दशा में कुछ अद्भुत परिवर्तन हुए हैं। वह नर से महत्वपूर्ण ना होकर के उसके समकक्ष श्रेणी में आ गई है।

अगर पुरुष ने परिवार के भरण-पोषण का उत्तर दायित्व मान लिया, तो घर के अंदर के सभी कार्यों का बोझ नारी ने ही उठाना शुरू कर दिया है। भोजन बनाना, बाल बच्चों की देखभाल करना, पति की सेवा करना, इस प्रकार नर और नारी के कार्य में काफी अंतर आ गए हैं।

ऐसा होने पर भी प्राचीन काल की नारी ने हीन भावना से ग्रसित ना होकर स्वतंत्र हो रात में भी स्वस्थ होकर अपने व्यक्तित्व का सुंदर और आकर्षण निर्माण किया है। नारी और समाज में प्रतिष्ठित और सम्मानित हो रही है। वह घर की लक्ष्मी ही नहीं रह गई है, अभी तो घर से बाहर समाज का दायित्व निर्वाह करने के लिए आगे बढ़ने लगी है।

वह घर की चारदीवारी से अपने कदम को बड़ाती हुई समाज की विकलांग दशा को सुधारने के लिए कार्यरत हो रही है। इसके लिए वह नर के समानांतर पद, अधिकार को प्राप्त करती हूंई नर को चुनौती दे रही है।

वह नर को यह अनुभव कराने के साथ-साथ उसमें चेतना भर रही है, की नारी में किसी प्रकार की शक्ति और क्षमता की कमी नहीं है, केवला अवसर मिलने की देर होती है। इस प्रकार से नारी का स्थान हमारे समाज में आज अधिक मूल्यवान और प्रतिष्ठित है।

उपसंहार

पहले की नारी ओर आज कि नारी में बहुत फर्क है। कल जहा नारी केवल दासी का रूप अदा करती थी। वही आज ना केवल किचन ओर घर, बच्चो को संभालने के साथ घर के बहार भी अपना वर्चस्व लहरा रही है। जहां नर में कोई मात्रा नहीं होती वही नारी में दो मात्राएं लगती है।


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