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भारतीय समाज में नारी का स्थान निबंध (Bhartiya Samaj Me Nari Ka Sthan Essay In Hindi)
नारी का सम्मान करना और उसकी रक्षा करना भारत की प्राचीन संस्कृति है। औरतें जन्म से लेकर मृत्यु तक अपने सारे कर्त्तव्य निभाती है। वह एक माँ, पत्नी, बेटी, बहन आदि सभी रिश्तों को पूरे दायित्व और निष्ठा के साथ निभाती है। इस देश में जहां नारी को देवी के रूप में पूजा जाता है, वही दूसरी ओर उन्हें कमज़ोर भी समझा जाता है।
प्राचीन काल में नारी को उनका उचित स्थान नहीं दिया जाता था। नारी ने रिश्तों को निभाने के लिए और परिवार को सहज कर रखने के लिए कई अत्याचार सहे। घर पर भी लड़कियों को लड़को के समान अधिकार नहीं दिए जाते थे।
नारियों के साथ समाज में कई लोगो ने अपने गलत दृष्टिकोण के कारण, दुर्व्यवहार भी किया। आज भी कई घरो में लड़के को वंश का चिराग माना जाता है। प्राचीन समय में लोग समझते थे, की लड़की तो विवाह करके चली जायेगी और लड़के खानदान का नाम रोशन करेंगे और वंश को आगे बढ़ाएंगे।
नारी को पहले पराया धन समझा जाता था। लड़का -लड़की में भेद भाव भी किया जाता था। लड़को को हर मामले में छूट थी और शिक्षा पर उनका ज़्यादा अधिकार होता था। लड़कियों को घर का काम काज करना सिखाया जाता था। तब लोगो की सोच थी कि लड़कियां पढ़ लिखकर क्या करेगी, उन्हें तो शादी करके रसोई संभालना है।
नारी के असंख्य रूप है! कभी मेनका बनती है, तो दुष्यन्त के लिए शकुन्तला, शिवजी के लिए पार्वती, राम के लिए सीता। औरतें कभी सिंहनी, कभी चंडी, कभी विलासिता की प्रतिमा, कभी त्याग की देवी बनती है। नारी एक है,परन्तु उनके अनेक और अनगिनत रूप है।
शास्त्रों और साहित्य से यह मालूम हुआ कि वैदिक युग में नारी को बेहद सम्मान प्राप्त था। नारी उस समय स्वतंत्र थी, महिलाओं पर किसी प्रकार का कोई प्रतिबन्ध नहीं था और महिलाये यज्ञो, अनुष्ठानो में भाग लेती थी।
उस समय कहा जाता है कि “यत्रनार्यस्तु पूज्यते, रभन्ते तत्र देवताः। इसका अर्थ है जहां औरतों की पूजा होती है, वहाँ देवता निवास करते है। लेकिन इस कथन की मान्यता, हर युग के समाज ने भली भाँती नहीं की है।
समय का चक्र घुमा और साहित्य ने नारी की अलग छवि प्रस्तुत की। रामायण में रावण जैसे अत्याचारी ने सीता को अगवा किया था, जिसके लिए सीता ने अपने आपको पवित्र साबित करने के लिए अग्नि परीक्षा दी थी।
महाभारत युग में दुर्योधन जैसे अत्याचारी और क्रूर इंसान ने द्रौपदी को भरी सभा में वस्त्रहीन करने की चेष्टा की थी। यह एक निंदनीय काण्ड था। युधिष्टर जैसे व्यक्ति ने जुए में जीतने के लिए अपनी पत्नी द्रौपदी को दांव पर लगा दिया था। इस युग में नारी का अपमान और तिरस्कार हुआ।
भक्तिकाल हिंदी साहित्य का सुनहरा काल बताया जाता है। इस काल को औरतों के पतनकाल के रूप में देखा जाता है। इस युग में कबीर ने महिलाओं की आलोचना की थी। कबीर ने ईश्वर प्राप्ति के मार्ग में महिलाओ को बाधक बताया।
वहीं तुलसीदास ने नारी का सम्मान किया। इसी युग में सूरदास ने नारी को राधा के रूप में प्रस्तुत किया था। रीतिकाल में कवियों ने औरतों को वासना पूर्ति का एक साधन बताया था।
मुगलो के समय में मीना बाजार लगाए जाते थे और नारी को विलासिता का वस्तु समझा जाता था। उस समय में औरतों को पर्दा पार्था, सती प्रथा जैसे कुप्रथाओ को मानना पड़ता था। बेहद छोटी उम्र में लड़कियों का विवाह करा दिया जाता था।
उस समय मर्द अपने औरतों को घरो में बंद करके रखते थे और अपना हुक्कम चलाते थे। शिक्षा से महिलाएं कोसो दूर थी, उन्हें किसी लायक नहीं समझा जाता था।
आधुनिक युग में कई कविओ ने महिलाओं के ऊपर हो रहे अत्याचारों से मुक्त कराने का प्रयास किया। गुप्त जी और पंत जी ने भी महिलाओ की इस अवस्था के प्रति दुःख जताया और अपने शब्दों में उसे व्यक्त किया था।
भारतीय इतिहास में सती प्रथा के कारण भी औरतों को अपनी जान गंवानी पड़ी। भारत और नेपाल में पंद्रहवी और अठाहरवीं शताब्दी में तक़रीबन हर वर्ष एक हज़ार औरतों को अपने पति के गुजरने के बाद ज़िंदा जला दिया जाता था।
उसके बाद यह प्रथा राजस्थान और मध्य प्रदेश जैसे राज्यों में फैलने लगी। पति के गुजरने के बाद उनकी पत्नियों को जबरन चिता पर जलने के लिए छोड़ दिया जाता था। यह दर्दनाक और संवेदनहीन प्रथा थी।
कुछ औरतें मर्ज़ी से यह करती थी, मगर ज़्यादातर औरतों को जबरन ही इसे मानने के लिए मज़बूर किया जाता था। पहले यह प्रथा क्षत्रिय परिवारों द्वारा निभाई जाती थी। राजा राम मोहन रॉय ने पुरज़ोर इस प्रथा का विरोध किया था।
यह अन्याय उनके भाभी के साथ हुआ और सती प्रथा के तहत उन्हें भी आग के हवाले कर दिया गया था। इससे राम मोहन बेहद आहात हुए थे। उन्होंने इसे ख़त्म करने के कई प्रयास किये और आखिर में सन 1829 में लार्ड विलियम बेंटिक ने सती प्रथा पर कानूनी तौर पर प्रतिबन्ध लगाया।
पहले जमाने में आज़ादी से पूर्व विधवा प्रथा का चलन था। इस प्रथा के अनुसार औरतों को पति के गुजर जाने के बाद सफ़ेद पोशाक पहनना पड़ता था। वह आजीवन ना चूड़ियां पहन सकती थी और ना ही श्रृंगार करने का उन्हें कोई अधिकार था।
किसी भी उत्सव में उन्हें जाना मना था। कपड़ो की तरह उनकी जिन्दगी बेरंग कर दी जाती थी। सादगी और तकलीफों से भरा जीवन बस यहीं उनका भाग्य हुआ करता था। कष्टदायक बात तो तब हुआ करती थी, जब उन्हें मनहूस कहा जाता था। ऐसे दौर में समाज में विधवा औरतों का स्थान ना के बराबर था।
पहले बाल विवाह जैसी कुप्रथाएं जिनमे कम उम्र में ही लड़कियों का विवाह कर दिया जाता था। आज इन पर कानूनी रूप से रोक लगा दी गयी है। फिर भी गाँव के किसी भी कोने में आज भी बाल विवाह जैसी कुप्रथाएं चल रही है।
समय के साथ साथ समाज के दृष्टिकोण में परिवर्तन आया। नारी पत्नी धर्म की जिम्मेदारी बखूभी निभाती है। एक वक़्त था जब विवाह के बाद, घर के साफ़ सफाई से लेकर, भोजन पकाने, ससुराल के काम और बच्चो की देखभाल करना यही औरतों का परम् कर्त्तव्य बन गया था।
औरतें का बाहर निकलकर काम करना उस समय उनके पतियों को पसंद ना था। पत्नी को अपने पति का आदेश पालन करना पड़ता था। परिवार के हित के लिए, नारियों ने गृहवधू बन अपने सपनो का त्याग किया था। आज भी कुछ घरो में महिलाएं ऐसी ही ज़िन्दगी बिता रही है।
समाज में जैसे जैसे शिक्षा का प्रचार -प्रसार बढ़ा, महिलाओं के उत्थान के लिए कई कार्य किये गए। वक़्त के साथ समाज की सोच में बदलाव के कारण, लड़कियां शिक्षित होने लगी। उनके मन में आत्मनिर्भर होने के सपने जगने लगे। पहले जैसे अज्ञानता और अंधविश्वास समाज से समाप्त होने लगे और औरतों की सोच को माईने दिया जाने लगा।
समाज में रहने वाले चिंतको और विश्लेषकों ने पुरुष और महिलाओं को समान अधिकार देना शुरू कर दिया है। आज महिलाएं प्रतिष्ठित हो रही है और अपने आपको स्थापित भी कर रही है। अब महिलाएं सिर्फ घर पर नहीं बल्कि चार दीवारी को लांघकर बाहर दफ्तर जा रही है।
उन्हें अब पुरुषो के ऊपर आर्थिक रूप से निर्भर रहने की ज़रूरत ही नहीं है। आज महिलाएं हर पेशे से जुड़ी हुयी है। कोई सफल डॉक्टर है, कोई वकील, शिक्षक, पुलिसकर्मी, साथ ही महिलाएं अब अंतरिक्ष तक पहुँच गयी है।
भारत की बेटी कल्पना चावला ने एस्ट्रोनॉट बनकर भारत का नाम रोशन किया था। मदर टेरेसा ने समाज की उन्नति के लिए बहुत सारे कार्य किये। उन्होंने गरीबो और ज़रूरतमंदो के लिए अनगिनत कार्य किये, वह एक मिसाल है। सरोजिनी नायडू देश की प्रथम महिला गवर्नर थी। उन्होंने एक स्वंतंत्रता सेनानी के रूप में कार्य किये थे।
उन्होंने कम उम्र से कविताएं लिखनी शुरू की थी। उन्होंने देश को आज़ादी दिलाने के लिए कई कार्य किये थे। उनको भारत में कोकिला का नाम से जाना जाता है। विजयलक्ष्मी पंडित, कस्तूरबा, कमला नेहरू जैसी महिलाओं ने अंग्रेज़ो के विरुद्ध अपनी भूमिका निभायी।
कई समाज सुधारको ने नारी की स्थिति को सुधारने और समाज का नारियों के प्रति दृष्टिकोण बदलने में सक्रीय भूमिका अदा की। वर्त्तमान युग में कामकाजी महिलाएं सुव्यवस्थित तरीके से अपने घर और दफ्तर को चला रही है। अब भारतीय महिलाएं पुरुषो के कंधे से कंधे मिलाकर चलती है।
अगर नारियों का विकास नहीं होगा तो निश्चित तौर पर देश की उन्नति में प्रश्न चिन्ह लग जाएगा। आज नारी शिक्षित है और हर फैसले खुद लेने में सक्षम है। सरकार ने भी नारियों के उन्नति के लिए कई कार्य किये है। मोदी सरकार ने बेटी बचाओ और बेटी पढ़ाओ जैसे सफल अभियान चलाये है।
अभी भी हमारे भारतीय समाज में नारी की स्थिति में विरोधाभास है। इसका कारण है की एक तरफ नारी को पूजा जाता है और उन्हें नारी शक्ति कहकर उनका सम्मान किया जाता है। तो दूसरी तरफ नारी को एक बेचारी के रूप में देखा जाता है।
पीढ़ियों से हमारे समाज में नारी की महत्वपूर्ण भूमिका रही है। हिन्दू गाथाओ के अनुसार चाहे वह सीता हो या रानी लक्ष्मीबाई, सरोजिनी नायडू हो या भारत की प्रधानमन्त्री इंदिरा गाँधी, इन सभी की सशक्त भूमिका ने समाज में एक अलग छाप छोड़ी है और समाज को अलग पाठ पढ़ाया।
रानी लक्ष्मीबाई एक मज़बूत औरत जिसने अंग्रेज़ो के नापाक इरादों को कभी कामयाब नहीं होने दिया था। ऐसी सभी महिलाओं पर देश को गर्व है।
प्राचीन काल से ही महिलाएं अनेक शोषण और अत्याचार का शिकार हुयी है। महिलाओं में सहनशीलता पुरुषो की तुलना में अधिक होती है। पहले महिलाएं चुपचाप अन्याय सहन कर लेती थी। वक़्त के साथ समाज अधिक जागरूक हो गया है।
अब महिलाएं अन्याय नहीं सहती है और परिस्थतियों से मुकाबला करने की हिम्मत रखती है। आज महिलाएं ऊँचे पदों पर कार्य करती है, आत्मविश्वास के साथ परिवार में अपनी भूमिका निभाती है। समाज का बहुमुखी विकास तभी होगा जब नारी को उनका उचित सम्मान और दर्जा मिलेगा।
संसद में महिलाओं के आरक्षण के लिए 33 प्रतिशत की मांग की जा रही है। 8 मार्च को विमेंस डे मनाया जाता है, इस दिन को महिलाओं की विभिन्न क्षेत्रों में उपलब्धियां और उनके योगदान को सराहा जाता है। उन्हें कई अनुष्ठानो में पुरस्कृत किया जाता है। महिलाओं के इस विकास को दुनिया भर में महिला दिवस के रूप में मनाया जाता है।
भारत की जनसँख्या में महिलाओं का अनुपात सिर्फ 48 प्रतिशत है। इसके कम होने की गति में निरंतर विकास हो रहा है। यह एक गंभीर विषय है। अभी भी देश के अनेक प्रांतो में कन्या भ्रूण हत्याएं जैसे निंदनीय अपराध हो रहे है।
आज के आधुनिक समाज में भारतीय संविधान ने महिलाओं को विशेष अधिकार दिए है। उन्हें पुरुषो के बराबर अधिकार दिए गए है। उन्हें पिता की सम्पति में अधिकार से लेकर विभिन्न क्षेत्रों में ऊँचे पदों जैसे पुलिस, न्याय इत्यादि पर अधिकार दिए गए है।
आज महिलाएं इन सभी पदों पर कार्यरत है। ऐसा कोई भी कार्य नहीं जो महिलाएं ना कर सके। फिर भी विडंबना है कि देश में कुछ स्थानों में बेटी के जन्म पर दुःख और बेटे के जन्म पर खुशियां मनाई जाती है। संविधान ने महिलाओं के व्यक्तित्व को विकसित करने के लिए समान मौके दिए है।
वह दिन बीत गए, जब महिलाएं पुरुषो के आदेशों पर चलती थी। अब औरतें पुरुषो के हाथो की कटपुतली नहीं रही। अब औरतों की अपनी पहचान है। वह आसमान की बुलंदियों को छू रही है। आज कल माता -पिता अपने बेटियों को मज़बूत और आत्मनिर्भर बनाने का दृष्टिकोण रखते है। यह एक सकारात्मक और सराहनीय सोच है।
जब तक हमारे समाज में लड़का -लड़की में भेदभाव किये जाएंगे और समान अधिकार नहीं दिए जाएंगे, तब तक नारी की स्थिति में सुधार नहीं होगा। देश की हर एक बेटी शिक्षित होगी, उनके व्यक्तित्व को निखारने के लिए बराबर के मौके दिए जाएंगे, तभी नारी का उत्थान संभव है।
जो नारी एक बलवान पुरुष को जन्म देती है, अब वक़्त आ गया है की समाज उस नारी का सम्मान करे और उनके सोच की इज़्ज़त करे। आज पुरुषो का दृष्टिकोण भी काफी बदल गया है। अब वह नारी को अबला नहीं, बल्कि अपने आप से भी मज़बूत समझते है।
आज नारी ने यह समझा दिया है कि अगर उन्हें अधिक मौके दिए गए, तो वह पुरुषो से अधिक अपने आपको बेहतर साबित कर पाएगी। नारी में जन्म से दया, त्याग, प्रेम जैसे गुण होते है। आज समाज में इस परिवर्तन के कारण, उनमे शक्ति, हिम्मत, आत्मविश्वास जैसे गुण भी विकसित हो गए है।
पुरुषों की तुलना में महिलाओं की उन्नति में असंतुलन पाए गए है। हर क्षेत्र चाहे वह स्वास्थ्य हो, शिक्षा, रोज़गार, सामजिक, महिलाओं को पुरुषो के बराबर अधिकार मिलना अनिवार्य है। भारत में निश्चित तौर पर महिलाओं की स्थिति में सुधार हुआ है। महानगरों में आज प्रत्येक कार्य क्षेत्र में नारी कार्यरत है।
समाज भी नारी के अधिकारों के प्रति जागरूक और सतर्क हो गया है। अब परिवार में भी महिलाओं की हर बात में अहमियत है। महिलाएं आर्थिक और व्यक्तिगत रूप से मज़बूत और स्वतंत्र हो गयी है, जो कि एक सकारात्मक बदलाव है। नारी की उन्नति सिर्फ नारी की भलाई के दृष्टि से ही ज़रूरी नहीं बल्कि समग्र समाज की दृष्टि से भी बेहद ज़रूरी है।
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तो यह था भारतीय समाज में नारी का स्थान विषय पर निबंध, आशा करता हूं कि भारतीय समाज में नारी का स्थान पर हिंदी में लिखा निबंध (Hindi Essay On Bhartiya Samaj Me Nari Ka Sthan) आपको पसंद आया होगा। अगर आपको यह लेख अच्छा लगा है, तो इस लेख को सभी के साथ शेयर करे।