गुड़ी पड़वा त्यौहार पर निबंध (Gudi Padwa Festival Essay In Hindi)

आज हम गुड़ी पड़वा पर निबंध (Essay On Gudi Padwa In Hindi) लिखेंगे। गुड़ी पड़वा पर लिखा यह निबंध बच्चो (kids) और class 1, 2, 3, 4, 5, 6, 7, 8, 9, 10, 11, 12 और कॉलेज के विद्यार्थियों के लिए लिखा गया है।

गुड़ी पड़वा पर लिखा हुआ यह निबंध (Essay On Gudi Padwa In Hindi) आप अपने स्कूल या फिर कॉलेज प्रोजेक्ट के लिए इस्तेमाल कर सकते है। आपको हमारे इस वेबसाइट पर और भी कई विषयो पर हिंदी में निबंध मिलेंगे, जिन्हे आप पढ़ सकते है।


गुड़ी पड़वा त्यौहार पर निबंध (Gudi Padwa Festival Essay In Hindi)


प्रस्तावना

हमारे देश भारत मे पौराणिक समय से ही कई धार्मिक त्यौहार चले आ रहे है। जो हमारी मान्यताओं को अपने मे समेटे हुए हैं। ये त्यौहार हिन्दू धर्म की नींव रखते है, जो हमारे समाज, हमारे परिवार के लिए, हमारी संस्कृति के लिए आवश्यक भी है।

जो हमें एक साथ मिलकर खुशियो को बिखेरना सिखाते है। उन्ही त्यौहार में से एक त्यौहार है गुड़ी पड़वा। कहा जाता है कि इस दिन ब्रह्माजी ने पृथ्वी का निर्माण करा था। गुड़ी पड़वा हिन्दू धर्म के अनुसार नव वर्ष कि शुरुआत मानी जाती है। गुड़ी पड़वा का त्यौहार सुख सम्रद्धि और खुशियां अपने साथ लेकर आता है।

गुड़ी पड़वा कब मनाया जाता है?

गुड़ी पड़वा का त्यौहार चैत्र मास की शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से होने वाले नए साल की शुरुआत के दिन ही मनाने की परंपरा है। ये मुख्यतः महाराष्ट्र में हिन्दू नव वर्ष के आरम्भ की खुशी में मनाया जाता है। इसके साथ ही आंध्रप्रदेश और गोवा सहित दक्षिण भारतीय लोग भी गुड़ी पड़वा को बहुत ही हर्षो उल्लास के साथ मनाते है।

गुड़ी पड़वा का अर्थ

चेत्र मास की शुक्ल प्रतिपदा को गुड़ी पड़वा मनाया जाता है। पड़वा यानी प्रतिपदा, वर्ष, उगादि या युगादि भी कहा जाता है। युग और आदि शब्दो की संधि से बना है युगादि। इस दिन हिंदुओ का नव वर्ष प्रारम्भ होता है।

गुड़ी पड़वा, जिसमे गुड़ी का अर्थ “विजय पताका” होता है। जिसे कर्नाटक और आंध्रप्रदेश में उगादि और महाराष्ट्र में इसे गुड़ी पड़वा के रूप में जाना जाता हैं। और चेत्र मास की इस तिथि के अनुसार सभी युगों में सतयुग की शुरुआत भी इसी तिथि से हुई ऐसा माना जाता है।

कहा जाता है कि गुड़ी पड़वा के दिन को निश्चित करने से पूर्व प्राचीन भारतीय गणितज्ञ और खगोल शास्त्रि भास्कराचार्य ने अपने अनुसंधान के अनुसार, सूर्योदय से सूर्यास्त तक दीन, महीने और साल की गणना करते हुए भारतीय पंचाग की रचना की और उसी के अनुसार चेत्र मास की प्रतिपदा गुड़ी पड़वा का दिन होता है।

गुड़ी पड़वा का महत्व

वैसे तो गुड़ी पड़वा का अत्याधिक महत्व है, पर जो भी मान्यताएं और कारण गुड़ी पड़वा को मनाने के बताये गए है वो सभी इसके महत्व के सर्वश्रेष्ठ कारणों से एक माने जाते है। हमारे हिन्दू धर्म मे पूरे वर्ष में साढ़े तीन मुहर्त बहुत शुभ माने जाते है।

ये साढ़े तीन मुहर्त है गुड़ी पड़वा, अक्षय तृतीया और दीपावली और दशहरा को आधा मुहर्त माना जाता है। जिस आधे में गुड़ी पड़वा आता है उसे भी बहुत ही धूमधाम के साथ मनाते है, जिस प्रकार दिवाली, दशहरा है।

मान्यता है कि श्री राम जी ने रामायण काल मे गुड़ी पड़वा वाले दिन वानरराज बाली के अत्याचार से प्रजा को मुक्ति दिलवाई थी। फिर वहां की प्रजा ने अपनी खुशी को जाहिर करने के लिए घरों में विजय पताका फहराया था, जिसे आज भी फहराया जाता है। जिसे गुड़ी पड़वा के नाम से जाना जाता है।

मान्यता है कि गुड़ी पड़वा वाले दिन ही ब्रह्ममा जी ने ब्रह्मांड की रचना करि थी। इसलिए गुड़ी को ब्रह्माध्वज और इंद्र ध्वज के नाम से भी जाना जाता है। गुड़ी को धर्म ध्वज भी कहते है।इसलिए इसके प्रत्येक हिस्से का अपना एक अलग ही महत्व है।

जिसमे उल्टा पात्र सिर को दर्शाता है, जबकि डंडा मेरुदंड का प्रतिनिधित्व करता है। गुड़ी पड़वा एक पूरे शरीर को दर्शाता है। जिसे हम भगवान का प्रतीक मानकर पूजते है। गुड़ी को अपने घर आंगन में लगाने से घर मे सुख सम्रद्धि और खुशियां आती है।

छत्रपति शिवाजी महाराज की जीत को याद करने की उपलक्ष में भी गुड़ी पड़वा को धूमधाम से मनाने की परम्परा है। मान्यता है कि गुड़ी पड़वा के दिन ही शालिवाहन शक का प्रारंभ हुआ था। शालिवाहन की कथानुसार शालिवाहन एक कुम्हार का बेटा था। शत्रु उसे बहुत परेशान करते थे और वो अकेला उन शत्रु से युद्ध नहीँ कर सकता था।

तब उसने एक उक्ति लड़ाई और मिट्टी की अपनी एक सेना बनाई और उसमे गंगा जल छिड़कर उन्हें जीवित कर दिया और उनसे उसने युद्ध करवाया और वो युद्ध जीत गया। माना जाता है की तब से ही शालिवाहन शक प्रारम्भ हुआ और तब से ही शालिवाहन शक गुड़ी पड़वा की तिथि भी कहलाती है। जिसे बहुत ही हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है।

गुड़ी पड़वा के दिन किसान लोग अच्छी फसल की कामना के उद्देश्य से इस दिन खेतो को जोतते है। किसान रबी की फसल की कटाई के बाद वापस से बुवाई करने को ही गुड़ी पड़वा की खुशी के रूप में मनाते है। जमीन पर दूसरी खेती को उगाने की खुशी गुड़ी पड़वा की खुशी होती है। जिसे किसान खुशी के साथ मनाते है।

गुड़ी पड़वा की पूजन विधि

गुड़ी पड़वा वाले दीन प्रातः बेसन और तेल का उबटन लगा कर स्नान किया जाता है और उसके बाद पूजा करि जाती है। फिर फूल, अक्षत, खुशबू, पुष्प और जल लेकर पूजन का संकल्प लिया जाता है।

उसके बाद नई बनी चौरस आकार की चौकी लेकर, या बालू की वेदी पर स्वच्छ स्वेत वस्त्र बिछाकर, उस पर हल्दी, केसर से युक्त अक्षत से अष्टदल कमल को बनाया जाता है। उसके बाद उस पर ब्रह्माजी की स्वर्णमूर्ति बनाकर स्थापित करि जाती है। फिर इनकी पूजा करि जाती है, लेकिन उससे पहले गणेश जी की पूजा करि जाती है।

ब्रह्मा जी से विघ्नों का नाश और पूरे वर्ष के कल्याण के लिए ब्रह्मा जी से विनम्र प्राथना करि जाती है। ब्रह्मा जी से प्रार्थना की जाती है की वो हमारे विघ्न और दुख और कष्ठों को दूर करे और हमे सुख और सम्रद्धि प्रदान करें।

पूजा करने के बाद अच्छा और सात्विक भोजन पहले ब्राह्मणों को कराया जाता है। उसके बाद ही स्वयं भोजन करते है। गुड़ी पड़वा वाले दिन से नए पंचाग का शुभारंभ किया जाता है।

इस दिन अपनी स्वच्छता के साथ ही हमारे आस पास का वातावरण और हमारे घर आंगन को भी स्वच्छ और साफ किया जाता है। इस दिन ध्वज, पताका, वंदनवार आदि से घर को और घर के द्वार को सजाया जाता है। नए वस्त्र धारण किये जाते।

महाराष्ट्र में गुड़ी पड़वा कैसे मनाते है?

ये तो हमे पता ही है की गुड़ी पड़वा वाले दिन की शुरुआत तेल स्नान से करि जाती है। इसके बाद घर के मंदिर में पूजा करि जाती है। फिर निम के पत्तो का सेवन किया जाता है। वो इसलिए क्योंकि इससे हमारे मुंह को भी पवित्र और साफ करा जाता है। निम मुंह के लिए लाभकारी और पुण्यकारी भी मॉनी जाति है।

महाराष्ट में इस दिन घरों के दरवाजों पर तोरण टांगे जाते है। साथ ही घरों के आगे एक गुडी यानी झंडा रखा जाता है। एक बर्तन चाहे वो लोटा या कुछ भी हो उस पर स्वास्तिक बनाकर उस पर रेशम का लाल कपड़ा लपेटा जाता है और उसे उस झंडे के ऊप्पर रखते है।

इसे किसी ऊंचे स्थान या घरों की छत पर भी रखा जाता है। घर को तरह तरह के फूलों से सजाया जाता है। सुंदर सी रंगोली बनाई जाती है। इस दिन मराठी महिलाएं नौ गज लम्बी नोवारी साड़ी पहनती है और नोवारी साड़ी पहनकर ही पूजा अर्चना करती है।

प्रत्येक महाराष्ट्र के घर मे एक ही तरह के पकवान बनाने की परंपरा है। इसके साथ ही मंदिरों में जाकर पूजा उपासना करने की परंपरा महाराष्ट राज्य और मराठी संस्क्रति में विशेष तौर से महत्वपूर्ण है।

गुड़ी पड़वा के दिन व्यंजन

गुड़ी पड़वा को महाराष्ट्र में बहुत अधिक धूम धाम के साथ मनाते है। इस दिन के व्यंजन स्वादिष्ट तो होते ही है साथ ही स्वास्थ के लिए भी लाभप्रद होते है। महाराष्ट्र में बनाये जाने वाले व्यंजन इस प्रकार है।

  • पूरणपोली
  • आमपना
  • श्रीखंड
  • केशरी भात
  • मिठाई
  • आलू की सब्जी

ये महाराष्ट्र में विशेष रूप से बनाये जाने वाले व्यंजन है। ये स्वादिष्ट तो होते ही है, स्वास्थ्यवर्धक भी होते है। जैसे पूरणपोली इस मीठी रोटी को गुड़, निम के फूल, इमली, आम आदि से बनाया जाता है, जो हमारे स्वास्थ्य के लिए अति उत्तम है।

उसी प्रकार आंध्रप्रदेश की पच्चडी, जिसके बारे में कहा जाता है कि इसे खाली पेट खाने से चर्मरोग नहीं होते और स्वास्थ्य भी अच्छा रहता है।

गुड़ी पड़वा, नाम एक अर्थ अनेक

हमारे भारत वर्ष में नवरात्री को धूमधाम के साथ मनाया जाता है। चेत्र नवरात्री में उत्तर भारत के लोग अपना नव वर्ष मनाते है। इसी नवरात्री को हर प्रान्त में अलग- अलग राज्य में अलग अलग नाम से जाना जाता है।

जैसे कि चेत्र नवरात्री का प्रारम्भ होता है, जब घट स्थापना की जाती है। जँहा हम माता रानी के नौ रूपो की उपासना करते है। उसी प्रकार महाराष्ट में इसे गुड़ी पड़वा के नाम से जाना जाता है, जिसे महाराष्ट का नव वर्ष प्रारम्भ माना जाता है।

तो कोंकण में भी उसे गुड़ी पड़वा के नाम से ही जाना जाता है। कर्नाटक और आंध्रप्रदेश में उगादि के नाम से जाना जाता है। गुड़ी पड़वा के प्रारम्भ होते ही लोग अपने घरों को फूलों से सजाते है। अपने आंगन में रंगोली डालते है। नए वस्त्र, व्यंजन और साज श्रृंगार से गुड़ी पड़वा को मनाते है।

खुशयो को मनाने के नाम भले ही अनेक हो, परंतु त्यौहार और खुशयो की रौनक हमारे भारत देश के प्रत्येक प्रान्त और राज्य में एक ही होती है। परंतु इसकी रौनक देखते ही बनती है।क्योंकि ये त्यौहार इतने पावन और पवित्र होते है की इसकी मधुर खुशबू से हम हमारे मन से प्रफुल्लित होकर खुशियों के साथ मनाते है।

उपसंहार

गुड़ी पड़वा या चेत्र नवरात्री पूजा करना सबसे महत्वपूर्ण होता है, ना कि नाम। परंतु कुछ त्यौहार उस स्थान की पहचान बन जाते है। जैसे यदि हमारे भारत देश मे गुड़ी पड़वा का नाम लेते ही हमारे सामने महाराष्ट राज्य और मराठी समाज के लोग आ जाते है। परंतु यही नाम चेत्र नवरात्री के रूप में प्रत्येक स्थान पर देखा जाता है।

इन त्यौहारो को हम हर जात, पात और प्रान्त को छोड़कर धूमधाम से मनाते है। यही तो खासियत है हमारे भारत देश की, की गुड़ी पड़वा हो या चेत्र नवरात्री या उगादि खुशियां तो मिलकर और सबके साथ ही है। क्युकी नाम परिवर्तन से त्यौहार की खुशियो में कभी कोई कमी नही आती।


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तो यह था गुड़ी पड़वा पर निबंध (Gudi Padwa Essay In Hindi), आशा करता हूं कि गुड़ी पड़वा पर हिंदी में लिखा निबंध (Hindi Essay On Gudi Padwa) आपको पसंद आया होगा। अगर आपको यह लेख अच्छा लगा है, तो इस लेख को सभी के साथ शेयर करे।

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