होली त्यौहार पर निबंध (Holi Festival Essay In Hindi Language)

आज के इस लेख में हम होली त्यौहार पर निबंध (Essay On Holi In HIndi) लिखेंगे। होली त्यौहार का यह निबंध class 1, 2, 3, 4, 5, 6, 7, 8, 9, 10, 11, 12 और कॉलेज के विद्यार्थियों के लिए लिखा गया है।

होली पर लिखा हुआ यह निबंध आप अपने स्कूल या फिर कॉलेज प्रोजेक्ट के लिए इस्तेमाल कर सकते है। आपको हमारे इस वेबसाइट पर और भी कही विषयो पर हिंदी में निबंध मिलेंगे, जिन्हे आप पढ़ सकते है।

होली त्यौहार पर निबंध (Holi Festival Essay In Hindi)


प्रस्तावना

बुरा ना मानो होली है……!!!!!! ये शब्द होली के कुछ दिन पहले से ही हमारे कानो में गूँजने लगते है और हमे एहसास होने लगता है कि चलो वो खुशियां ओर उत्साह वाला दीन हमारे नजदीक ही है।
वैसे तो हमारे देश मे विभिन्न प्रकार के पर्व त्योहार मनाए जाते है। सभी पर्व और त्योहारो के अपने -अपने महत्व और आकर्षण है। इस प्रकार के आकर्षक और महत्वपूर्ण त्योहारो में दशहरा, दिवाली, रक्षाबंधन, रामनवमीं, आदि उल्लेखनीय है और इन त्योहारों में से ही एक त्योहार होली भी है।

होली एक ऐसा उल्लेखनीय त्योहार है जो हमारे भारतीय हिन्दू समाज के अति महत्वपूर्ण त्योहारों में से एक है।

होली कब मनायी जाती है?

यह हम भलीभाँति जानते और समझते है कि हमारे देश के पर्व और त्योहार किसी न किसी ऋतु या पौराणिक कथा से अवश्य सम्बंधित होते है। होली के त्योहार पर दो बातें स्पष्ट से कही जा सकती है।

पहली बात यह कि यह त्योहार या पर्व ऋतु से समन्धित है। शरद ऋतु की समाप्ति ओर ग्रीष्म ऋतु शुरू होने के मध्य का जो समय होता है, उसमें होली का त्योहार मनाया जाता है। इसे ऐसे भी कह सकते है कि इसे फाल्गुन पूर्णिमा को मनाया जाता है।

इंगलिश कैलेंडर के हिसाब से होली त्यौहार भारत में मार्च के महीने में मनाया जाता है। मान्यता है…कि देवता को बिना भोग लगाएं कोई वस्तु उपयोग में नहीं लायी जानी चाहिए। इस समय की फसल पक कर तैयार हो जाती है।

इस लिए इस दिन बने अन्न को देवता को समर्पित किया जाता है। दूसरे शब्दो मे अन्न को अग्नि में डाला जाता है, अन्न की आहुति दी जाती है। संस्कृत में अन्न को “होलक” ओर हिंदी में होला कहते है, जो कि होलिका दहन से शुरू हो जाता है।

इसी आधार पर इस पर्व का नाम होली पड़ा और इसी दिन लोग अन्न की आहुति देकर अन्न का प्रसाद एक दुसरे को देकर बड़ी खुशी से गले मिलते हैं ओर ग़ुलाल ओर अबीर लगाते है। इस दिन होलिका की परिक्रमा करके पूजा इत्यादि की जाती है ओर सब लोग मस्ती, मजाक ओर नाच, गाने आदि करते है और इस पावन पर्व का आनंद लेते है।

होली का प्रचलन पूरी दुनिया में

आज कल होली जैसे त्यौहार को हमारे भारत देश के अलावा भारत के पड़ोसी राज्य नेपाल आदि में अपने-अपने तरीके से मनाया जाता है, बस नाम कुछ और होता है। इसके अलावा अन्य देशों में भी होली का त्यौहार लोग बहुत धूमधाम से मनाते है।

पर्यटकों की संख्या होली के त्यौहार पर अत्यधिक हो जाती है। आखिर हमारे देश के त्योहार ही ऐसे है, जो लोगो को अपनी ओर खिंचे बगैर नहीँ मानते है।

होली मनाने के पीछे की पौराणिक कथा

होली मनाने के पीछे में एक पौराणिक कथा है। कहा जाता है कि प्राचीनकाल में हिरण्यकश्यप नामक अत्याचारी, दुराचारी ओर निरंकुश राजा का शासक था। उसने अपने शासक काल मे निरंकुशता को इतना बढ़ा दिया था कि उससे सारी प्रजा कांप उठती थी।

वह प्रजा को अपनी बात मनवाने के लिए विवश करने लगा था। उसने स्वयं को ही भगवान मान लिया था। अपनी सारी प्रजा को भी उसे भगवान के रूप में पूजने ओर मानने के लिए कहा करता था और ना बात ना मानने पर कठोरतापूर्वक दंड दिया करता था।

उसके ऐसा करने पर उसका पुत्र प्रहलाद उसका विरोध करता था। क्योंकि प्रहलाद परमेश्वर विष्णु जी का बहुत बड़ा उपासक था। इसलिए वो दिन रात केवल उनकी ही उपासना करता था।

उसे इस तरह देख कर हिरण्यकश्यप आग बबूला हो जाया करता था। साथ ही में प्रह्लाद हिरण्यकश्यप को भी भगवान की उपासना करने को कहता था। प्रह्लाद अपने पिता को कहता था कि आप भी भगवान की उपासना करके सत्कर्म करे।

लेकिन हिरण्यकश्यप को अपने शक्ति पर काफी घमंड हो गया था जिस कारन वो अपने आप को ही भगवान मानता ओर सभी पर अत्याचार करना था। लेकिन यह उसे महंगा पड़ गया, क्योंकि सच्चाई ओर भलाई का फल देर से ही सही पर मिलता जरूर है।

और ऐसा हुआ भी, हिरण्यकश्यप को उसके बुरे कर्मो की सज़ा उसके ही पुत्र प्रहलाद और भगवन विष्णु के अवतार नरसिम्हा द्वारा मिली।

होलिका दहन

अपने पुत्र प्रहलाद को अपना परम् विरोधी समझकर हिरण्यकश्यप ने उसे कई प्रकार की यातनाओं से प्रताड़ित किया। उसने जब यह देखा कि प्रहलाद पर किसी भी प्रकार की यातनाओं से उसकी भगवान विष्णु जी की उपासना से मन समाप्त नही हो रहा है ओर प्रह्लाद का मन भगवान विष्णु के उपासना में लीन है।

तब उसने अपनी बहन होलिका को बुलाकर यह आदेश दिया कि वह प्रहलाद को लेकर आग में बैठ जाए। जिससे वह जलकर भस्म हो जायेगा। ऐसा इसलिए कि होलिका को यह वरदान मिला था कि आग उसका कुछ नही बिगाड़ सकेगी।

होलिका प्रहलाद को लेकर अग्नि में बैठ गयी। लेकिन प्रहलाद की परम भक्ति ने प्रहलाद को बचा लिया और आग प्रहलाद का कुछ भी बाल-बांका न कर सकी। उल्टा उस अग्नि ने होलिका को ही जलाकर भस्म कर दिया ओर होलिका के वरदान को भी प्रहलाद के भक्ति के आगे फीका पड़ गया।

होलिका के बुरे कर्मो ओर प्रहलाद की अटल भक्ति ने यह साबित कर दिया कि वरदान अगर मिला है, तो उसका प्रयोग भी सही भावना से और सही जगह पर किया जाना चाहिए। लेकिन भावना गलत हो और चाहे कितने भी वरदान क्यों ना मिले हो, अच्छाई ओर सच्चाई के आगे काम नही आते है।

खेर वरदान तो सतयुग ओर भगवान और महान संत पुरुषो द्वारा दिया जाता था, जो कि अच्छे कार्यो के उद्देश्य के लिए होता था। पर कुछ लोग उसका गलत प्रयोग करते थे, जो कि वरदान की शक्ति भी कम कर देता था।

सच्चाई और अच्छाई की बुराई पर विजय होने के याद में फाल्गुन पूर्णिमा की रात को लोग होलिका दहन करते है। होलिका दहन करते समय वे बड़े आनंद ओर उत्साह मग्न दिखाई देते है।

इस अवसर पर युवाओं का उत्साह बड़ा ही अद्भुत दिखाई देता है। उन्हें देख कर ऐसा लगता है जैसे उन्होंने अपने सभी निजी शत्रुओ का दहन कर दिया है जैसे की क्रोध, इर्षा, लालच। इससे सारा वातावरण उल्लास से भरा हुआ दिखाई देने लगता है।

होलिका दहन का दूसरा दिन (दुल्हण्डी)

होलिका दहन के दुसरे दीन दुल्हण्डी मनाई जाती है। इस दिन सभी स्त्री-पुरुष ,बच्चे सुबह से दोपहर तक एक दुसरे पर रंग गुलाल ,अबीर ,पानी ,कलर,आदि डालते है। हमे प्राकृतिक रंगों का प्रयोग करना चाहिए।

जिस वजह से वह रंग हमारे शरीर के त्वचा को कोई हानिकारक प्रभाव नहीं पोहचा पाते। प्राकृतिक रंगो का इस्तेमाल करना इसलिए भी जरुरी है, ताकि हम रंगों का प्रयोग कर सके और आनद उठा सके ओर रासायनिक रंगो से होने वाले दुष्परिणाम से भी बचे रहे।

इस दिन सारा वातावरण विभिन्न प्रकार के रंगमंच दृश्यों में बदल जाता है और फिर दुश्मनी को दोस्ती में बदलने में ज्यादा समय नही लगता है। इस त्योहार में रंगों की पिचकारियों से जब एक दुसरे पर रंगों की वर्षा करने लगती है, तो उस समय ऐसा लगता है मानो रंगों की कभी न समाप्त होने वाली झड़ी लग गयी है जो कि देखते ही बनती है।

होली के त्योहार में होने वाले गलत काम

पुराने समय में होली खेलने के लिए लोग चंदन ओर प्रकृतिक रूप से बने ग़ुलाल का ही प्रयोग करते थे। लेकिन आजकल रासायनिक रंगों का प्रचलन बढ़ने से ये त्वचा के साथ -साथ आँखों पर भी बुरा प्रभाव डालती है।

और अच्छे खासे पवित्र त्योहार के दिन लोग भाँग ओर ठड़ाई की जगह नशेबाजी ओर अन्य लोक संगीत के अलावा फिल्मी गानों का प्रयोग करके अशलीलता आदि फैलाते है। जिसकी बजह से आजकल होली जैसे त्यौहार में वो पहले जैसी रोनक कम ही दिखने लगी है।

लोग जगह -जगह नशेबाजी करके एक दूसरे से मिलते है और गाड़ी की रफ्तार को तेज रखते है। जिसकी बजह से दुर्घटनाओं का शिकार हो जाते है ओर इस खुशी से मनाने वाले त्यौहार की रौनक कम हो जाती है।

उपसंहार

इस प्रकार होली का त्योहार दुश्मनी को खत्म करके दोस्ती में बदल जाने का नाम है। होलिका दहन का दिन हमे ये सिखाता है कि सारे बुरे कर्मो को होलिका की अग्नि में दहन करके अच्छे कर्मों को अपनाये।

जिस प्रकार होलिका जैसी बुराई प्रहलाद को अग्नि में नही जला पाई अपितु उसका खुद का अंत हो गया। इसलिए हमें भी सभी प्रकार की बुराई को अग्नि में दहन करके अच्छे कर्मों को प्रहलाद की भांति अपनाना चाहिए।

हम सब को होली जैसे त्यौहार को अपनो के साथ मिलकर खुशियों के साथ मनाना चाहिए और सभी दुश्मनी ओर लड़ाई को भूल के दोस्ती कर लेनी चाहिए। क्योंकि मज़ा तो अपनो के साथ ही ओर सबके साथ ही आता है, यही तो होली जैसे त्यौहार का मक़सद है, मिले और मिलकर खुशियां बाटे।


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तो यह था होली त्यौहार पर निबंध, आशा करता हूं कि होली पर हिंदी में लिखा निबंध (Hindi Essay On Holi) आपको पसंद आया होगा। अगर आपको यह लेख अच्छा लगा है, तो इस लेख को सभी के साथ शेयर करे।

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