आज हम नदी की आत्मकथा पर निबंध (Essay On Autobiography Of River In Hindi) लिखेंगे। नदी की आत्मकथा पर लिखा यह निबंध बच्चो (kids) और class 1, 2, 3, 4, 5, 6, 7, 8, 9, 10, 11, 12 और कॉलेज के विद्यार्थियों के लिए लिखा गया है।
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नदी की आत्मकथा पर निबंध (Autobiography Of River Essay In Hindi)
प्रस्तावना
मैं एक नदी हूँ और आज इस आत्मकथा के माध्यम से अपने भावनाओ को व्यक्त करने जा रही हूँ। मुझे लोगो ने कई तरह के नाम दिए है। जैसे सरिता, तटिनी, प्रवाहिनी इत्यादि। मैं स्वतंत्र रूप से बिना रोक टोक बहती रहती हूँ। मैं कभी रूकती नहीं हूँ, बस बहती रहती हूँ।
मैं कई बाधाओं से गुजर कर बहती हूँ। मेरे राह में बहुत सारे रुकावटें आती है। मेरे राह में जो भी पत्थर और मुश्किलें आती है, मैं उन्हें पार करके निकल जाती हूँ। मैं कभी तेज़ बहती हूँ और कभी थोड़ा धीरे। मैं जगह के अनुसार चौड़ी बहती हूँ। मैं हर मुसीबत को पार करके अपनी राह तय कर लेती हूँ।
भारत में गंगा, यमुना, गोदावरी, कृष्णा, ताप्ती, रावी, सतलुज, ब्रह्मपुत्री इत्यादि नदियाँ बहती है। मेरे कारण पौधे और पेड़ जीवित है। मेरे पानी द्वारा खेतो की सिंचाई होती है। किसान और सामान्य लोग मेरे पानी के बिना जीवित नहीं रह सकते है।
मेरे ही कारण सभी लोगो के घरो में पानी आता है। जल मनुष्य के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है। जल ना हो तो जीव जंतु समेत पूरी मानव जाति ही समाप्त हो जायेगी। मेरे से मनुष्य को जल प्राप्त होता है, जिसका उपयोग वह अपने दैनिक कार्यो में करता है। मनुष्य की प्यास मेरे जल से बुझती है।
खेतो की सिंचाई
मेरे पानी से किसान अपने फसलों की सिंचाई करता है। मनुष्य अपने स्वार्थ सिद्धि के लिए प्राकृतिक संसाधनों का दुरूपयोग करता है। इसलिए प्राकृतिक आपदाओं के कारण हर जगह नदियों का जल मनुष्यो को नसीब नहीं होता है। कई जगह नदियों का जल गर्मियों में सूख जाता है। जिसके कारण मनुष्य पानी की एक बूँद के लिए तरस जाता है।
मेरे गुण
मैं पर्वतो की गोद से निकलकर और कई चट्टानों से होकर बहती हूँ। मैं जल कल्याण में महत्वपूर्ण भूमिका अदा करती हूँ। मैं पहाड़ो से होकर टेढ़े मेढ़े रास्तो से गुजरकर अंत में समंदर में जाकर मिलती हूँ। मुझसे से छोटे छोटे नहरे निकलती है। मैं बंजर मिटटी को उपजाऊ बना सकती हूँ। मेरे इन्ही गुणों के कारण मुझे कई सारे नामो से पुकारा जाता है।
बिजली निर्माण
मेरे द्वारा बिजली का निर्माण होता है। बिजली के बिना मनुष्य का हर काम असंभव है। मनुष्य के घर और दफ्तर के तकरीबन हर कार्य में बिजली की आवश्यकता होती है। बिजली उत्पादन मेरे बैगर नहीं हो सकती है।
बिजली से मशीनों के अनगिनत काम होते है। यदि मेरे द्वारा बिजली उत्पन्न ना होती तो वह मनोरंजन भरे कार्यक्रम टेलीविज़न औऱ रेडियो पर देख नहीं पाते। बिजली का होना रात को सबसे ज़्यादा ज़रूरी होता है। रात के अधिकतर कार्य मनुष्य बिजली के मौजूदगी में करता है।
दैनिक कार्य
मनुष्य मेरे पानी का इस्तेमाल करके भोजन पकाते है। मेरे पानी का उपयोग करके लोग अपने हाथ धोते है, नहाते है और खाना भी बनाते है। मनुष्य अपने सभी कार्य मेरे जल द्वारा निपटाते है। आज लोगो को यदि घर पर पानी की सुविधा मिल रही है, तो इसकी वजह मैं ही हूँ।
पर्यावरण का संतुलन
मैं प्रकृति और पर्यावरण का संतुलन बनाये रखने में सहायता करती हूँ। मेरे वजह से ही किसानो के खेत हरे भरे रहते है। मैं मिटटी की उपजाऊ शक्ति को बनाये रखती हु और मिटटी को नमी प्रदान करती हूँ। मैंने अपने जल द्वारा धरती की सिंचाई की है।
धार्मिक महत्व
ऋषि मुनियों ने मेरे जन कल्याण की महिमा को जानकर मेरी अर्चना करते थे। मेरे कई तट पर लोग तीर्थ यात्रा करने आते है। इसी कारण कई लोग दूर दूर से मेरे दर्शन के लिए आते है। यहां बड़े बड़े मेले और त्यौहार भी मनाये जाते है।
कुम्भ के मेले के विषय में तो सभी जानते है। लोग अपने पापो का प्रायस्चित करने मेरे पास आते है। हज़ारो लोग मेरी पूजा करते है। मेरे पानी मैं डूबकी लगाकर उन्हें संतुष्टि मिलती है। मुझे देवी के रूप में पूजा जाता है। लोग पूरे मन औऱ श्रद्धा से मेरी पूजा करते है। मुझे अत्यंत ख़ुशी होती है।
विभिन्न त्योहारों में मेरे दर्शन
मेरे इस धार्मिक महत्व की वजह से लोग उत्सवों में मेरे दर्शन के लिए आते है। अमावस्या, पूर्णमासी, दशहरा इत्यादि शुभ मौके पर लोग मेरे दर्शन के लिए ज़रूर आते है। मेरे कल कल बह रहे जल और शान्ति का आंनद और अनुभव सभी करते है। मैं अपने सुंदरता से सबको अपनी ओर आकर्षित कर लेती हूँ।
कोई रोक नहीं सकता
मेरा कोई अंत नहीं है। कोई सरहद नहीं है। मुझे कोई चाहकर भी रोक नहीं सकता। जब चन्द्रमा की रोशनी मेरे ऊपर पड़ती है, तो मेरी सुंदरता में चार चाँद लग जाते है।
यातायात के साधन मेरे बैगर ना चलते
मेरे पानी में स्टीमर, नाव औऱ बड़े जहाज चलाये जाते है। सभी लोग एक स्थान से दूसरे स्थान तक पहुंचने के लिए जल मार्ग का उपयोग करते है। बड़े बड़े व्यवसायिक बस्तियां नदी के तटों पर बस गयी है।
बाढ़ का आना
मनुष्य प्रकृति का संतुलन बिगाड़ रहा है। जिसके कारण हर देश औऱ राज्यों के कई हिस्सों में बाढ़ जैसी स्थिति हर वर्ष बन रही है। ऐसा एक भी वर्ष नहीं है जब बाढ़ ना आती हो। कभी कभी मनुष्य इतना ज़्यादा प्रकृति पर दबाव बनाता है कि मैं रौद्र रूप धारण कर लेती हूँ औऱ किनारो को तोड़कर गाँवों औऱ तटीय इलाको को डूबा देती हूँ।
मेरे कारण बहुत लोगो के घर उजड़ जाते है। उसके बाद मैं शांत होकर वापस आ जाती हूँ औऱ मन ही मन पछताती हूँ।
मेरे अंदर बहुत से प्राणी है जीवित
मेरे अंदर बहुत से प्राणी जीवित है। वह पानी के बिना ज़िंदा नहीं रह सकते है। जब प्रदूषण बढ़ता है तब उनका नदी के जल में जीना मुश्किल हो जाता है।
प्रदूषित होना
मनुष्य औद्योगीकरण औऱ शहरीकरण के पीछे इतना अँधा हो गया है कि वह प्राकृतिक संसाधनों को नुकसान पहुंचा रहा है। लोग जहां मेरी पूजा करते है वहाँ बहुत लोग ऐसे भी है जो मेरे जल में कूड़ा कचरा फेंक देते है।
आये दिन मेरे जैसी कई नदियाँ प्रदूषण का शिकार हो रही है। बढ़ते प्रदूषण के कारण मेरे जैसी कई नदियाँ बर्बाद हो रही है। मेरे जल में कई प्राणी निवास करते है। अत्याधिक जल प्रदूषित होने के कारण उन्हें सांस लेने में तकलीफ होती है औऱ कुछ जल जीव मर जाते है। मुझे बहुत तकलीफ होती है। मैं चाहकर भी कुछ कर नहीं पाती।
आज ऐसे हालात पैदा हो गए है कि नदियों का संरक्षण महत्वपूर्ण हो गया है। क्यों कि आने वाले पीढ़ी को शुद्ध औऱ साफ़ जल नसीब नहीं होगा। प्लास्टिक, घर का कचरा, फैक्टरियों से निकलने वाला कचरा नदियों में बह रहा है।
खुशियों के पल
मुझे बहुत प्रसन्नता होती है जब कोई मुसाफिर लम्बा सफर तय करके मेरे पानी से प्यास बुझाता है। बच्चे भी कभी कभी नन्हे नन्हे हाथों से मेरे पानी से खेलते है और अपने हाथ और मुंह धोते है। मुझे बेहद ख़ुशी होती है। त्योहारों में मेरे तट के सामने सभी लोग ख़ुशी से अपना त्यौहार मनाते है।
मुश्किलों का सामना
जैसे जीवन में मनुष्य विभिन्न मुश्किलों का सामना करके आगे बढ़ता है। उसी तरह मैं भी विभिन्न गलियों और पहाड़ो से निकलकर बहती हूँ। जब मैं हिमालय से निकलती हूँ तब मैं थोड़ी संकरी हो जाती हूँ। जब मैं मैदानी इलाके तक पहुँचती हूँ तो बहुत चौड़ी हो जाती हूँ।
ना कोई अपेक्षा और ना कोई सीमित जीवन अवधि
मनुष्य की एक निश्चित जीवन अवधि होती है। मनुष्य की जब मौत होती है, तो उसकी अस्थियां नदियों में विसर्जित की जाती है। मैं बहुत उदास हो जाती हूँ। मनुष्य की इच्छाएं और सपने पानी में बहते है। लेकिन मेरी कभी मौत नहीं हो सकती। मैं हमेशा रहूंगी और मेरी कोई ख़ास अपेक्षाएं नहीं है।
हम प्रकृति के हिस्से है। प्रकृति है तो हम भी है। ऐसा कोई व्यक्ति या माध्यम नहीं जो मेरे प्राण ले सके। चाहे कितने भी अड़चने आये मैं निरंतर बहती रहूंगी। इसका अर्थ यह है कभी टूटना नहीं है कभी बिखरना नहीं है। परिस्थिति के अनुसार अपने आपको ढालना ज़रूरी होता है। जीवन में कभी रुकना नहीं है बस जीवन की गति को पकड़कर आगे बढ़ना है।
जब मनुष्य के साथ जीवन में अच्छा होता है, तो वह बेहद खुश रहता है और जब कठिन समय आता है तो कुछ मनुष्य कठिन परिस्थितियों से घबरा जाते है। परिस्थितियों से ना घबराकर उनका सामना करना चाहिए। यह जीवन का फलसफा है। अगर वह मेरे जैसा सोचेगा तो जीवन में कोई तनाव नहीं होगा।
निष्कर्ष
जहां मुझे देवी की तरह पूजा जाता है, वहाँ मुझे गन्दा किया जाता है। यह देखकर और सहन करके मुझे बहुत दुःख होता है। अब मनुष्य पहले से अधिक सचेत हुए है और नदियों को संरक्षित कर रहे है।
मगर यह काफी नहीं है। मैं यही चाहती हूँ कि लोग जागरूक हो जाए और नदियों को जानबूझकर प्रदूषित ना करे। मैं हमेशा इसी प्रकार बहती रहूंगी और जन कल्याण करुँगी। यदि मनुष्य पर्यावरण को इसी प्रकार नुकसान पहुंचाता रहा तो वह दिन दूर नहीं कि मेरा अस्तित्व भी खतरे में पड़ जाएगा।
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तो यह था नदी की आत्मकथा पर निबंध (Nadi Ki Atmakatha Essay In Hindi), आशा करता हूं कि नदी की आत्मकथा पर हिंदी में लिखा निबंध (Hindi Essay On Autobiography Of River) आपको पसंद आया होगा। अगर आपको यह लेख अच्छा लगा है, तो इस लेख को सभी के साथ शेयर करे।