आज के इस लेख में हम दुर्गा पूजा पर निबंध (Essay On Durga Puja In Hindi) लिखेंगे। दुर्गा पूजा पर लिखा यह निबंध बच्चो और class 1, 2, 3, 4, 5, 6, 7, 8, 9, 10, 11, 12 और कॉलेज के विद्यार्थियों के लिए लिखा गया है।
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दुर्गा पूजा पर निबंध (Durga Puja Essay In Hindi)
प्रस्तावना
भारत में त्योहारों का सामाजिक, सांस्कृतिक, ऐतिहासिक, धार्मिक, मनोवैज्ञानिक महत्व है। यहां मनाए जाने वाले सभी त्योहार मानवीय गुणों को स्थापित कर लोगों में प्रेम, एकता व सद्भावना को बढ़ाने का संदेश देते हैं। दरअसल, ये त्योहार ही हैं जो परिवारों और समाज को जोड़ते हैं।
दुर्गा पूजा भी भारत का प्रसिद्ध त्यौहार है। इस त्यौहार को दुर्गोत्सव या षष्ठोत्सव भी कहते हैं। हर वर्ष पतझड़ की ऋतु में ये त्यौहार आता है। ये हिन्दुओं का मुख्य त्यौहार है अतः वे इसे धूमधाम और हर्ष उल्लास के साथ मनाते हैं।
सभी लोग इस अवसर पर खुश होते हैं क्योंकि ऑफिस और विद्यालयों में अवकाश रहता है और सभी मिलजुलकर एक साथ इस उत्सव को मना सकते हैं। हम आज इसी विशेष उत्सव दुर्गापूजा के बारे में जानेंगे।
दुर्गा पूजा
दुर्गा पूजा हिंदूओं का विशेष व काफी बड़े स्तर पर मनाया जाने वाला त्योहार है। ये बंगालियों का खास त्योहार है। इसकी तैयारियां करीब एक महीने पहले से ही शुरु कर दी जाती है।जिस प्रकार से गणेश जी की मूर्ति की स्थापना करके दस दिनों के बाद उसे विसर्जित करते हैं, वैसे ही दुर्गा माता के मूर्ति को भी विसर्जित किया जाता है।
दुर्गा पूजा को बहुत नामों से जाना जाता है। दुर्गा माता शक्ति की देवी होती है। दुर्गा माँ मेनका और हिमालय की पुत्री थीं वह सती का अवतार थीं। दुर्गा पूजा को पहली बार तब किया गया था, जब भगवान श्री राम ने रावण पर विजय पाने के लिए दुर्गा माँ से शक्ति पाने के लिए पूजा की थी।
इस दिन लोगों द्वारा दुर्गा देवी की पूरे नौ दिन तक पूजा की जाती है। उत्सव की समाप्ति पर दुर्गा माँ की मूर्ति को नदीयों में अथवा अन्य किसी जल स्त्रोत में ले जाकर विसर्जन किया जाता है।
कई लोग इस त्यौहार पर नौ दिवस का व्रत रखते हैं और कई लोग केवल सिर्फ पहले और अंतिम दिवस व्रत रखते हैं। वे ऐसा मानते है कि इस व्रत से उन्हें माँ दुर्गा जी का आशीर्वाद मिलेगा।
वे ये भी मानते हैं कि दुर्गा मां उनको सारी परेशानियों से दूर रखेंगी और नकारात्मक उर्जा भी उनके पास नहीं आएगी। श्री दुर्गा माँ की स्तुति के लिए सभी ये मंत्र जप करते हैं –
सर्वमंगल मांगल्ये शिवे सवार्थ साधिके, शरंयेत्र्यंबके गौरी नारायणी नमोस्तुते।
दुर्गा पूजा में पंडाल लगाकर दुर्गा मां की मूर्ति रखी जाती है और माता का श्रृंगार करते हैं। इस उपलक्ष्य में विभिन्न पंडालों को देखकर उनमें से जो सबसे अच्छा, रचनात्मक, सजावटी और आकर्षक पंडाल होता है उसे पुरस्कार प्रदान किया जाता है।
इन पंडालों की भव्य छटा कोलकाता में और सारे पश्चिम बंगाल में नवरात्रि के दौरान दिखाई देती है। दुर्गा पूजा के लिए बनाए गए इन पंडालों में दुर्गा मां की मूर्ति महिषासुर को मारते हुए बनवाई जाती है और दूसरे देवी देवताओं की मूर्तियां भी बनवाकर दुर्गा मां के साथ विराजित किया जाता है।
वे त्रिशूल पकड़े होती हैं और उनके चरणों में महिषासुर गिरा होता है। इस पूरी झांकी को वहां चाला कहते हैं। माता के पीछे की तरफ उनके वाहन शेर की मूर्ति होती है। दाईं तरफ सरस्वती और कार्तिकेय व बाईं तरफ लक्ष्मीजी, गणेशजी होते हैं। छाल पर शिवजी की मूर्ति या तस्वीर भी बनी होती है।
इस मौके पर अलग अलग तरह के सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं, कई प्रकार की प्रतियोगिताओं का आयोजन होता है। सभी लोग इस विशेष उत्सव पर पारंपरिक वेशभूषाएं पहनते हैं। कहा जाता है कि राजा महाराजा तो इस पूजा को बहुत ही बड़े स्तर पर किया करते थे।
दुर्गा पूजा की कथाएं
नवरात्रियों में देवी दुर्गा की पूजा इसलिए की जाती है, क्योंकि यह माना जाता है कि देवी दुर्गा ने 10 दिन और रात तक युद्ध करने के बाद महिषासुर नाम के राक्षस को मारा था। दुर्गा पूजा को असत्य पर सत्य की विजय के लिए मनाया जाता है।
जब दुर्गा पूजा का आयोजन होता है तब उत्तरी भारत में नवरात्र मनाये जाते हैं और दसवें दिन विजयदशमी यानी दशहरा मनाया जाता है। उत्तर भारत में इस समय रामलीला की जाती है। दुर्गा पूजा की सबसे प्रचलित कथा इस प्रकार से है।
बहुत समय पहले देवता और असुर स्वर्ग पाने के लिए लड़ते रहते थे। देवता हर बार असुरों को किसी ना किसी तरीके से पराजित कर देते थे। एक दिन एक राक्षस जिसका नाम महिषासुर था उसने ब्रह्मा जी को तपस्या करके उन्हें प्रसन्न कर लिया। तब उसने ब्रह्मा जी से अमर होने का वरदान देने को कहा।
परन्तु ब्रह्मा जी ने उसे ये वरदान नहीं दिया और कहा कि वे अमरता का वरदान नहीं दे सकते, लेकिन ये वर देता हूं कि तुम्हे कोई पुरुष नहीं मार सकता केवल स्त्री ही मार सकती है।
अब महिषासुर इस वरदान से बहुत प्रसन्न हुआ उसने सोचा कि मैं इतना ताकतवर हूं मुझे कोई स्त्री क्या हरा पाएगी। इसके बाद सारे असुरों ने देवताओं पर आक्रमण कर दिया, वे महिषासुर को नहीं मार सकते थे अतः अपनी व्यथा लेकर त्रिदेवों के पास गए।
ब्रह्मा विष्णु और महेश तीनों ने मिलकर अपनी शक्तियों से शक्ति की देवी दुर्गा को जन्म दिया और उनसे महिषासुर का वध करने को कहा।
मां दुर्गा और महिषासुर में युद्ध हुआ और आश्विन मास के शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि को मां दुर्गा ने इस पापी महिषासुर का वध कर दिया। उसी दिन से इस दिन को बुराई पर अच्छाई की विजय का त्यौहार और शक्ति की पूजा के उत्सव के रूप में मनाया जाता है।
दुर्गा पूजा का महत्व
त्योहार जीवन में विश्रंखलता को दूर कर एकसूत्रता स्थापित करते हुए मंगल भावना का प्रसार करते है। यह माना जाता है कि, दुर्गा मां की पूजा करने से समृद्धि, आनंद, अंधकार का नाश और बुरी शक्तियां दूर होती है।
ये हिन्दू धर्म का महत्वपूर्ण त्योहार है जिसका धार्मिक, सांस्कृतिक, आध्यात्मिक और सांसारिक महत्व है। लोग जो विदेशों में रहते हैं खासकर दुर्गा पूजा के लिए छुट्टियाँ लेकर आते हैं। दुर्गा पूजा के लिए स्कूलों, कॉलेजों और सरकारी दफ्तरों में 10 दिनों का अवकाश भी होता है।
दुर्गा पूजा के दौरान कई कार्यक्रम भी आयोजित किये जाते हैं। ये त्यौहार हमारे देश में ही नहीं बल्कि विदेशों में मनाया जाता है। नवरात्र में डांडिया और गरबा नृत्य करना शुभ मानते है। बहुत से स्थानों पर सिन्दूरखेलन की प्रथा भी है।
जिसमें विवाहित महिलाएं पूजा स्थल पर से खेलती है। गरबा की प्रतियोगिताएं रखी जाती है और विजेता को ईनाम दिए जाते हैं।
दुर्गा पूजा की विधि
दुर्गा पूजा का उत्सव अश्विन शुक्ल षष्ठी से लेकर दशमी तिथि तक मनाया जाता है। इस त्यौहार पर मां दुर्गा की नौ दिन तक पूजा की जाती है। इस दिन लोग इच्छानुसार पूरे नौ दिनों तक या फिर सिर्फ पहले या अंतिम दिन व्रत रखते हैं। दसवें दिन विजयदशमी मनाई जाती है।
इस दिन मां दुर्गा जी की मूर्ति को सजाकर पूजा की जाती है और प्रसाद बांटा जाता है। लोग अपनी पसंद के अनुसार वस्तुएं अर्पित करके पूजा करते हैं। दुर्गा मां की पूजा करने से आनन्द और समृद्धि मिलती है, अंधकार तथा बुरी शक्तियों का विनाश होता है।
इस दिन पूरी रात पूजा, स्तुति, अखण्ड पाठ और जप तप चलता है। देवी मां की मूर्तियों को श्रृंगारित करके हर्षोल्लास पूर्वक भक्तजन उनकी झांकी निकालते हैं। अंत में दुर्गा मां की ये मूर्तियां स्वच्छ जलाशय, नदी अथवा तालाब में विसर्जित कर दी जाती हैं।
चूंकि दशहरे का त्यौहार राम और रावण युद्ध से जुड़ा है इसलिए इसे दिखाने के लिए रामलीला का आयोजन होता है। इन दिनों बाजारों में खूब भीड़ रहती है। कई स्थानों पर मेले लगते हैं। गरबा और डांडिया रास की प्रतियोगिताएं आयोजित की जाती हैं।
किसान इस विशेष त्यौहार के समय खरीफ की फसल काटते हैं। विजयादशमी पर शस्त्रागारों से शस्त्र निकालकर उनका शास्त्रीय विधि से पूजन भी किया जाता है। कोलकाता में संपूर्ण पूजा के दौरान देवी दुर्गा की पूजा विभिन्न रूपों में की जाती है।
इन रूपों में सबसे प्रसिद्ध रूप है कुमारी। इस उत्सव में दुर्गा देवी के सामने कुमारी की पूजा की जाती है, क्योंकि उन्हें शुद्ध और पवित्र रूप मानते है। देवी के इस रूप की पूजा करने के लिए 1 से 16 वर्ष की कुआंरी बालिकाओं का चयन किया जाता है और उनकी पूजा होती है।
उपसंहार
हमें पूर्ण निष्ठा और पवित्र भावना रखकर इस त्यौहार को मनाना चाहिए। धार्मिक दृष्टि से देखा जाए तो विजयादशमी का त्यौहार आत्मशुद्धि का त्यौहार है। दुर्गा पूजा के दिन शक्ति पाने की कामना की जाती है ताकि बुरी शक्तियों और नकरात्मकता का नाश हो जाए।
जैसे भगवान ब्रह्मा, विष्णु और महेश की शक्तियों से मिलकर सर्वशक्तिमान माँ दुर्गा बनी और उन्होंने बुराई का अंत किया, उसी तरह हमें भी अपनी बुराईयां खोजकर उनका अंत करना चाहिए और मानवता की रक्षा करनी चाहिए।
दुर्गपूजा एक ऐसा त्योहार है, जिससे हमारे जीवन में उत्साह और ऊर्जा का संचार होता है। मां दुर्गा की प्रसन्नता के लिए कभी भी उनकी पूजा स्तुति की जा सकती है, पर नवरात्रि में इस पूजा की विशेष महत्ता है।
हिन्दू धर्म में जो भी त्यौहार मनाए जाते हैं उनके पीछे कोई सामाजिक कारण होता है। दुर्गापूजा भी अन्याय, अत्याचार तथा आसुरी शक्तियों के विनाश के लिए मनाते हैं।
जयंती मंगला काली भद्रकाली कपालिनी।
दुर्गा क्षमा शिवा धात्री स्वाहा स्वधा नमोस्तुते।।
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तो यह था दुर्गा पूजा पर निबंध, आशा करता हूं कि दुर्गा पूजा पर हिंदी में लिखा निबंध (Hindi Essay On Durga Puja) आपको पसंद आया होगा। अगर आपको यह लेख अच्छा लगा है, तो इस लेख को सभी के साथ शेयर करे।