जल प्रदूषण पर निबंध (Water Pollution Essay In Hindi)

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जल प्रदूषण पर निबंध (Water Pollution Essay In Hindi)


जीवन के लिए स्वच्छ जल का होना बहुत आवश्यक है। मनुष्य के शरीर में वजन के अनुसार 60 फीसदी जल होता है। वनस्पतियों में भी काफ़ी मात्रा में जल पाया जाता है। किसी-किसी वनस्पति में 95 प्रतिशत तक जल होता है।

पृथ्वी पर जल पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध है, परंतु ताजे जल की मात्रा 2 से 7 प्रतिशत तक ही है, शेष समुद्रों में खारे जल के रूप में है। इस ताजे जल का तीन चौथाई glacier तथा बर्फीली चोटियों के रूप में है। शेष एक चौथाई भाग surface water के रूप में है। पृथ्वी पर जितना जल है उसका केवल 0.3 प्रतिशत भाग ही स्वच्छ एवं साफ़ है।

जल प्रदूषण (Water pollution) क्या है?

जल में किसी बाहरी पदार्थ की उपस्थिति जो जल के प्राकृतिक गुणों को इस प्रकार बदल दे की जल स्वास्थ के लिए हानिकारक हो जाए या उसकी उपयोगिता कम हो जाए, तो उसे जल प्रदूषण ( water pollution) कहते है|

जल प्रदूषण की परेशानी सबसे अधिक विकसित देशों में होती है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार पिने के पानी का PH 7 से 8.5 के मध्य होना चाहिए। जीवन पानी पर निर्भर करता है। मनुष्य एवं जानवरो के लिए पीने के पानी के स्त्रोत नदियाँ, झीले, नलकूप आदि हैं।

वैसे जल में स्वत: शुद्धिकरण की क्षमता होती है, किन्तु जब शुद्धिकरण की गति से अधिक मात्रा में प्रदूषण पानी में पहुँचता हैं, तो जल प्रदूषण होने लगता है। यह परेशानी तब शुरू होती है जब पानी में पशु का मल, विषाक्त औद्योगिक रसायन, कृषि अपशिष्ट, तेल और तपिश जैसे पदार्थ मिलते हैं।

इनके कारण ही हमारे ज्यादातर पानी के त्रोत, जैसे झील, नदी, समुद्र, समुद्र, भूमिगत जल स्रोत धीरे-धीरे प्रदूषित होते जा रहे हैं। प्रदूषित जल का मानव तथा अन्य जीवों पर घातक प्रभाव पड़ता है|

जल प्रदूषण कैसे होता है?

वर्षा के जल में हवा में उपस्थित गैसों और धूल के कणों के मिल जाने आदि से उसका जल जहाँ भी जमा होता है वह जल प्रदूषित हो जाता है। इसके अलावा ज्वालामुखी आदि भी इसके कुछ कारण हैं। जब कुछ अपशिष्ट पदार्थ भी इसमे मिलते हैं तब भी ये जल गंदा तथा प्रदूषित हो जाता है।

उत्पादन को बढ़ाने के लिए किसान खेतों में chemical fertilizers का प्रयोग दिन-प्रतिदिन बहुत तेजी से कर रहे है। बढ़ती हुई औद्योगिक इकाइयों के कारण सफाई व धुलाई के नये नये अपमार्जक (डिटरजेण्ट) बाजार में आ रहे हैं और इनका उपयोग भी दिनोंदिन बढ़ता जा रहा है।

पेट्रोल आदि पदार्थों का रिसाव समुद्री जल प्रदूषण का बड़ा कारण है। पेट्रोल का आयात-निर्यात समुद्री मार्गों से किया जाता है। इन जहाजों में से कई बार रिसाव हो जाता है या किसी कारण से जहाज दुर्घटना का शिकार हो जाता है तो उसके डूबने आदि से या तेल के समुद्र में फैलने से जल प्रदूषित होता है।

समुद्रों के जल मार्ग में खनिज तेल ले जाने वाले जहाजों की दुर्घटना होने से अथवा उनके द्वारा भारी मात्रा में तेल को पानी के सतह पर छोड़ने से तो जल प्रदूषित होता है| अम्ल वर्षा (acid rain) से जलसाधन प्रदूषित होते हैं, जिससे जल में रहने वाले जीवों में से मछलियाँ सर्वाधिक प्रभावित होती है|

अम्ल वर्षा (acid rain) का एक अन्य कुप्रभाव संक्षारण (Corrosion) के रूप में देखा जाता है। इससे ताँबें की बनी नालियाँ प्रभावित होती हैं और मिट्टी में से अलमुनियम (Al) घुलने लगता है। यही नहीं सीसा (Pb), कैडमियम (Cd) तथा पारद (Hg) भी घुलकर जल को जहरीला बनाते हैं।

मानव एवं पशुओं के शव नदियों में प्रवाहित कर दिया जाता हैं। इससे नदियों का जल प्रदूषित हो जाता है। शवों के कारण जल के तापमान में भी वृद्धि होती है।

जल प्रदूषण से उत्पन्न समस्याएँ

जिस जल स्त्रोत का पानी जरा-भी प्रदूषित होता है, उसके आसपास रहने वाले प्रत्येक जीवन पर जल प्रदूषण का किसी न किसी हद तक प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। एक निश्चित स्तर पर प्रदूषित पानी फसलों के लिए भी नुकसानदेह साबित होता है। इससे जमीन की उर्वरक क्षमता कम होती है।

कुल मिलाकर जल प्रदुषण कृषि क्षेत्र और देश को भी प्रभावित करता है। समुद्र का पानी प्रदूषित होता है तो उसका बुरा असर समुद्री जीवन पर भी होता है। जल प्रदूषण का सबसे बड़ा कारण पानी की क्वालिटी में गिरावट होती है। इसके सेवन से कई तरह की बीमारियां हो सकती हैं।

जल प्रदूषण का भयंकर परिणाम राष्ट्र के स्वास्थ्य के लिये एक गम्भीर खतरा है। एक अनुमान के अनुसार भारत में होने वाली दो तिहाई बीमारियाँ प्रदूषित पानी से ही होती हैं। जल प्रदूषण का प्रभाव मानव स्वास्थ्य पर जल द्वारा जल के सम्पर्क से एवं जल में उपस्थित रासायनिक पदार्थों द्वारा पड़ता है।

जल प्रदूषण का गम्भीर परिणाम समुद्री जीवों पर भी पड़ता है। उद्योगों के प्रदूषणकारी तत्वों के कारण भारी मात्रा में मछलियों का मर जाना देश के अनेक भागों में एक आम बात हो गई है। मछलियों के मरने का अर्थ है प्रोटीन के एक उम्दा स्रोत का नुकसान, एवं उससे भी अधिक भारत के लाखों मछुआरों की अजीविका का छिन जाना है।

जल प्रदूषण का दुष्प्रभाव कृषि भूमि पर भी पड़ रहा है। प्रदूषित जल जिस कृषि योग्य भूमि से होकर गुजरता है, उस भूमि की उर्वरता को नष्ट कर देता है। जोधपुर, पाली एवं राजस्थान के बड़े नगरों के रंगाई- छपाई उद्योग से निःसृत दूषित जल नदियों में मिलकर किनारों पर स्थित गाँवों की उपजाऊ भूमि को नष्ट कर रहा है।

यही नहीं प्रदूषित जल द्वारा जब सिंचाई की जाती है, तो उसका दुष्प्रभाव कृषि उत्पादन पर भी पड़ता है। इसका कारण यह है कि जब गंदी नालियों का एवं नहरों के गंदे जल (दूषित जल) से सिंचाई की जाती है, तो अन्न उत्पादन के चक्र में धातुओं का अंश प्रवेश कर जाता है। जिससे कृषि उत्पादन में 17 से 30 प्रतिशत तक की कमी हो जाती है।

इस तरह जल प्रदूषण से उत्पन्न उपर्युक्त समस्याओं के विश्लेषण के आधार पर यह कहा जा सकता है कि, प्रदूषित जल से उस जल स्रोत का सम्पूर्ण जल तंत्र ही अव्यवस्थित हो जाता है।

जल प्रदूषण से होने वाली बीमारियां

जल प्रदूषण के कारण पूरे विश्व में कई प्रकार की बीमारियाँ और लोगों की मौत हो रही है। इसके कारण लगभग प्रतिदिन 14,000 लोगों की मौत हो रही है। इससे मनुष्य, पशु तथा पक्षियों के स्वास्थ्य को खतरा उत्पन्न होता है। इससे टाईफाइड, पीलिया, हैजा, गैस्ट्रिक आदि बीमारियां पैदा होती हैं।

दूषित पानी के सेवन से चर्म रोग, पेट रोग, पीलिया, हैजा, दस्त, उल्टीयां, टाइफाईड बुखार आदि रोग हो सकते हैं। गर्मी व बरसात के दिनों में इनके होने का खतरा ज्यादा होता है।

जल प्रदूषण रोकने के उपाय

जल प्रदूषण पर नियंत्रण हेतु नालों की नियमित रूप से साफ सफाई करना चाहिए। ग्रामीण इलाकों में जल निकास हेतु पक्की नालियों की व्यवस्था नहीं होती है, इस कारण इसका जल कहीं भी अस्त-व्यस्त तरीके से चले जाता है और किसी नदी नहर आदि जैसे स्रोत तक पहुँच जाता है।

इस कारण नालियों को ठीक से बनाना और उसे जल के किसी भी स्रोत से दूर रखने आदि का कार्य भी करना चाहिए। मल, घरेलू त्याज्य पदार्थों एवं कूडे़ कचरे का युक्त वैज्ञानिक परिष्कृत साधनों द्वारा निकास करना चाहिए।

संदूषित वाहित जल के उपचार की विधियों पर निरन्तर अनुसंधान होते रहना चाहिए। विशिष्ट विषों, विषाक्त पदार्थों को नि:स्पन्दन (Filtration) अवसादन एवं रासायनिक क्रियाओं द्वारा निकाल कर बहि:स्त्रावों को नदी एवं अन्य जल स्त्रोतों में मिलाना चाहिए।

कुओं, तालाबों एवं अन्य जल स्त्रोत के साधनों में कपडे़ धोने, अन्दर घुसकर पानी लेने, पशुओ के नहलाने तथा मनुष्य के नहाने, बर्तनों को साफ करनेपर प्रतिबंध लगाना चाहिए। तथा नियम का कठोरता से पालन होना चाहिए।

कुओं, तालाबों एवं अन्य जल स्त्रोतों से प्राप्त जल का जीवाणुनाशन/विसंक्रमण (Sterilization) करना चाहिए।  मानव को जल प्रदूषण के कारणों, दुष्प्रभावों एवं रोकथाम की विभिन्न विधियों के बारे में जानकारी प्रत्येक स्तर पर देकर जागरूक बनाना चाहिए।

पर्यावरण संरक्षण की चेतना का विकास, पर्यावरणीय शिक्षा के माध्यम के द्वारा करना चाहिए। जल स्त्रोतों में इस प्रकार के मछलियों का पालन करना चाहिए ,जो कि जलीय खरपतवार (Weeds) का भक्षण करती हों।

कृषि, खेतों, बगीचों में कीटनाशक, जीवनाशक एवं अन्य रासायनिक पदार्थों, उर्वरकों को कम से कम उपयोग करने के लिए उत्साहित करना चाहिए। जिससे कि यह पदार्थ जल स्त्रोतों में नहीं मिल सकें और जल को कम प्रदूषित करें।

तालाबों एवं अन्य जल स्त्रोतों की नियमित जाँच/परीक्षण, सफाई, सुरक्षा करना आवश्यक है। सिंचाई वाले क्षेत्रों, खेतों में जलाधिक्य, क्षारीयता (alkalinity), लवणीयता (Salinity), अम्लीयता (acidity) आदि विभिन्न समस्याओं से निपटने के लिए उचित प्रकार के जल शोधन, प्रबंधन विधियों का ही उपयोग करना चाहिए।

शासन द्वारा निर्धारित जल प्रदूषण नियंत्रण कानूनों का कठोरता से पालन करना एवं करवाना चाहिए।


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तो यह था जल प्रदूषण पर निबंध, आशा करता हूं कि जल प्रदूषण पर हिंदी में लिखा निबंध (Hindi Essay On Water Pollution) आपको पसंद आया होगा। अगर आपको यह लेख अच्छा लगा है, तो इस लेख को सभी के साथ शेयर करे।

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